
तारकेश कुमार ओझा, खड़गपुर। कोलकाता का टाटा मेडिकल सेंटर मानवता का साक्षी बना। क्योंकि इसके माध्यम से मानवता का चरम प्रदर्शन देखा गया। अविभाजित मिदनापुर जिले के मूल निवासी तथा वर्तमान में कोलकाता में कार्यरत प्रसिद्ध भारतीय वैज्ञानिक डॉ. अनिर्वाण दास, कैंसर से पीड़ित भूटान के एक युवा भिक्षु को रक्तदान करने के लिए आगे आए, जिसका कोलकाता के टाटा मेडिकल सेंटर में इलाज चल रहा है।
17 वर्षीय प्रतिभाशाली युवा बौद्ध भिक्षु, तंदिन वांगचुक, भूटान के निवासी हैं। एक व्यक्ति जो भूटान के एक शांत पहाड़ी गांव में एकांत बौद्ध मठ में बादलों से घिरे आसमान के नीचे ध्यान और प्रार्थना में अपना दिन बिताता है। कठोर तप का मार्ग अपनाने वाला यह किशोर स्वयं को शांति के मार्ग पर समर्पित करने का सपना देखा करता है। लेकिन आज वह रक्त कैंसर से पीड़ित हैं।
वह दिल्ली और मुंबई होते हुए कोलकाता स्थित टाटा मेमोरियल सेंटर पहुंचे। ज्ञात लोगों की कमी के कारण वांगचुक के शुभचिंतकों के लिए कोलकाता में रक्तदाता ढूंढना मुश्किल हो गया। अनिर्वाण दास को टाटा मेमोरियल अस्पताल से रक्त की आवश्यकता के बारे में पता चला। सूचना मिलते ही वे रक्तदान करने के लिए आगे आए। इस रक्तदान से समय और स्थान की सीमाएं मिट गई। मानवता का इतिहास रचा गया।
अनिर्बान दास ने कहा कि वह मानवता के नाते रक्तदान करने के लिए आगे आए हैं। उन्होंने यह भी कहा, “इस युवा भिक्षु के संघर्ष में, आइए हम सभी शांति और करुणा की रक्त बूंदें बनें।” पश्चिम मेदिनीपुर जिला अंतर्गत मेदिनीपुर में रक्तदान आंदोलन के कार्यकर्ता सुदीप कुमार खाड़ा ने अनिर्वाण दास को इसके लिए बधाई दी और कहा, “यह एक और सबूत है कि रक्त की कोई जाति, धर्म या देश नहीं होता।
इसका केवल एक रक्त समूह होता है।” जैसे ही यह खबर सोशल मीडिया पर फैली, कई लोगों ने दास को बधाई दी। गौरतलब है कि कुछ महीने पहले मेदिनीपुर निवासी सुरजीत सरकार चेन्नई में एक बांग्लादेशी बच्चे को रक्तदान करने के लिए इसी तरह से आगे आए थे।
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