मंगू की व्यथा… (व्यंग्य कथा) : विनय कुमार

विनय कुमार, युवा पत्रकार व लेखक

सुबह-सुबह अखबार में खबर छपी थी, जिसमें सरकार ने घोषणा की है कि लॉकडाउन के दरम्यान कोई भी भारतीय भूखा नहीं सोयेगा। सरकार घर-घर जाकर लोगों को राशन पहुंचायेगी। यह सुनकर आम लोगों की तरह मंगू भी काफी खुश था और हो भी क्यों न सरकार ने रोजी-रोटी का बंदोबस्त जो कर दिया था। लेकिन कुछ देर बाद उसकी खुशी ऐसे झड़ गई, जैसे पतझड़ में पेड़ के पत्ते। मंगू के दुखी होने का कारण पूछने पर उसने बताया कि सरकार ने घर-घर जाकर राशन देने का वादा तो किया है लेकिन मेरा घर तो है ही नहीं। जब से मैंने होश संभाला तब से फुटपाथ ही मेरा घर है। मेरे ख्याल से अब आप समझ गये होंगे कि मंगू कौन है। खैर मैं मंगू से आपका परिचय कराता हूं। मंगू शहर के एक रिहायशी इलाके में भीख मांगने का काम रहा है। भीख मांगने में वह काफी कुशल है, शक्ल ऐसी है कि लोग देखते ही उसकी तरफ मदद का हाथ बढ़ा देते। वैसे तो मंगू की उम्र 45 है लेकिन बदकिस्मती और हालात के कारण 60 का दिखता है। फिलहाल लॉकडाउन की वजह से उसका भी काम बंद चल रहा है। इस बीच 12 दिन से भूखे मंगू को अब यह चिंता सताने लगी थी कि कही आज उसकी तेरहवीं न हो जाये। इस बारे में सोच ही रहा था कि तभी एक चमचमाती कार उसके पास आकर रुकी। उसके पीछे और भी कई गाड़ियां थी। कार के रुकते ही मंगू ने तीन मीटर की दूरी बना ली क्योंकि लोगों ने उसे बताया था कि कोरोना वायरस से बचने के लिये सोशल डिस्टेंसिंग (लोगों से दूरी बनाना) बहुत जरूरी है। कार के निकट लोगों का मजमा लग गया। मंगू को समझ नहीं आ रहा था कि कुछ दिन पहले जो लोग उसे दूरी बनाने की नसीहत दे रहे थे वे आज खुद उसका पालन नहीं कर रहें। लोग चमचमाती कार के चक्कर लगाने में मशगूल थे।

कुछ देर बाद कार से सफेद लिबास पहना एक भारी भरकम व्यक्ति उतरा। लोग आपस में बात कर रहे थे कि मंत्री आये जी हैं। मंत्री जी के साथ कुछ हितैषी कलमकार भी थे, जो मंत्री जी के तारीफ की कसीदे लिखते नहीं थकते। इसके अलावा एक एक अदना सा फोटोग्राफर भी था, जिसे इस बात का गुमान था कि उसने अपने कैमरे में मंत्री जी की हर गतिविधि कैद की है। बहरहाल, लोगों की भीड़ को चीरते हुए मंत्री जी मंगू के पास पहुंचे उसका हाल-चाल पूछा और अपने गले का हार उसे पहना दिया। मंगू ने बताया कि वह तेरह दिनों से भूखा है। यह सुनकर मंत्री जी बेहद नाराज हुए और अपने कार्यकर्ताओं को फटकार भी लगाई। इसके बाद उन्होंने मंगू के लिये जल्द से जल्द खाने का इंतजाम करने को कहा और एक सफेद लिफाफा उसकी ओर बढ़ाया। मंगू ने वह लिफाफा दबी हंसी के साथ ग्रहण कर लिया।

इधर, कलमकार और फोटोग्राफर पूरी निष्ठा से अपने-अपने काम को अंजाम दे रहे थे। कुछ देर बाद मंत्री जी वहां से चले गये। मंत्री जी के जाने के बाद आसपास के लोग मंगू के पास पहुंचे और कहा, क्या मंगू तेरा तो भाग्य खुल गया। जिनसे मिलने के लिये बड़े-बड़े लोग तरसते है वे खुद तेरे से मिलने को आये। बहुत भाग्यशाली है तू। मंगू उनकी बातें सुनकर मुस्करा रहा था। मंगू लोगों को कैसे समझाये कि मंत्री जी या नेता से मिलना उसके लिये बड़ी बात नहीं थी। जब से लॉकडाउन हुआ है वह तीसरी बार किसी मंत्री से मिला और हर बार की तरह इस बार भी खाली लिफाफा हाथ लगा। एक दिन बाद अखबार में हार पहने हुए मंगू की तस्वीर मंत्री जी के साथ पहले पन्ने पर छपी थी लेकिन अफसोस की इस बात की है कि तस्वीर को देखने के लिये मंगू इस लोक में नहीं रहा।

5 thoughts on “मंगू की व्यथा… (व्यंग्य कथा) : विनय कुमार

  1. Aditi singh says:

    इस कहानी ने हमारे आज के सो कॉल्ड कर्ण की वास्तविकता को उजागर किया है जो महाभारत के कर्ण की तरह दानी तो नहीं बन सकते पर उनके जैसा बनने का ढोंग जरूर करते हैं।

  2. Sanchita Saxena says:

    बहुत ही अच्छी कहानी है और आज कल जो देश में चल रहा उसकी पूरी तरह बयान करती है ।

  3. राज कुमार गुप्त says:

    बहुत ही बढ़िया आज के परिपेक्ष्य में किया गया व्यंग्य है लेखक द्वारा आज के तथाकथित नेताओं पर।

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