
अशोक वर्मा “हमदर्द”, कोलकाता। भारत एक लोकतांत्रिक देश है, जहाँ विभिन्न विचारधाराओं और राजनीतिक दृष्टिकोणों को स्थान मिलता है। यहां के नेता जनता द्वारा चुने जाते हैं और देश की गरिमा को बनाए रखने की उनकी नैतिक और संवैधानिक जिम्मेदारी होती है। लेकिन जब वही नेता विदेश जाकर भारत की छवि को धूमिल करने का प्रयास करते हैं, तो यह न केवल देश की गरिमा को ठेस पहुंचाता है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की प्रतिष्ठा को भी नुकसान पहुंचाता है। हाल ही में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की लंदन यात्रा के दौरान उनके बयानों ने यही सवाल खड़ा कर दिया है।
ममता बनर्जी ने लंदन की अपनी हालिया यात्रा के दौरान एक विदेशी पत्रकार से बातचीत में भारत की आर्थिक स्थिति और लोकतांत्रिक व्यवस्था को लेकर कई ऐसे बयान दिए, जो भारत की वास्तविक स्थिति को नकारने वाले थे। जिस समय दुनिया के कई आर्थिक विश्लेषक और अंतरराष्ट्रीय संस्थान भारत की अर्थव्यवस्था की मजबूती और प्रगति की सराहना कर रहे थे, उस समय ममता बनर्जी का यह कहना कि भारत आर्थिक असमानता और राजनीतिक अस्थिरता का शिकार हो रहा है, पूरी तरह से तथ्यों के विपरीत और भारत विरोधी मानसिकता को दर्शाने वाला था। आर्थिक विकास पर नकारात्मक टिप्पणी ये भारत के छवि को कमजोर करने का एक तरीका था जहां अपने की श्रेष्ठ दिखाकर भारत के प्रति भ्रम की स्थिति पैदा की गई।
भारत ने हाल के वर्षों में अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है। विश्व बैंक, IMF (अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष) और अन्य आर्थिक संस्थाओं ने भारत की अर्थव्यवस्था को तेजी से उभरती हुई बताया है। वैश्विक मंचों पर भारत की अर्थव्यवस्था को लेकर सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाया जा रहा है, लेकिन ममता बनर्जी ने लंदन में भारत की आर्थिक वृद्धि को कमतर दिखाने का प्रयास किया। उन्होंने दावा किया कि भारत में आर्थिक विषमता बढ़ रही है और गरीबी लगातार बढ़ रही है।
हालांकि, सच्चाई इसके विपरीत है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, आत्मनिर्भर भारत जैसे अभियानों के माध्यम से आर्थिक सशक्तिकरण की दिशा में मजबूत कदम उठाए हैं। भारत आज दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है और कई अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट्स में भारत को आर्थिक विकास का नया केंद्र बताया गया है। ऐसे समय में ममता बनर्जी का यह बयान कि भारत की अर्थव्यवस्था में कोई प्रगति नहीं हो रही, देश की उपलब्धियों को नकारने जैसा है।
राजनीतिक स्थिरता पर भ्रम फैलाना भारत के एक कद्दावर नेत्री की कतई शोभा नहीं देता।ममता बनर्जी ने भारत की राजनीतिक स्थिरता पर भी सवाल उठाए। उन्होंने यह आरोप लगाया कि भारत में लोकतांत्रिक मूल्यों का हनन हो रहा है और अल्पसंख्यकों के अधिकारों का उल्लंघन किया जा रहा है। जबकि सच्चाई यह है कि भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था आज भी उतनी ही मजबूत है जितनी स्वतंत्रता के समय थी। भारतीय संविधान सभी नागरिकों को समान अधिकार देता है और हर व्यक्ति को स्वतंत्र रूप से अपने विचार प्रकट करने का अधिकार है।
भारत में विभिन्न धर्मों, संस्कृतियों और भाषाओं का संगम देखने को मिलता है। लोकतंत्र का यही गुण भारत को विश्व में सबसे अलग बनाता है। लेकिन ममता बनर्जी का यह कहना कि भारत में लोकतांत्रिक मूल्यों का हनन हो रहा है, न केवल देश के आंतरिक मामलों में विदेशी दखल को न्योता देने जैसा है, बल्कि भारत की छवि को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर धूमिल करने का प्रयास भी है।
ममता बनर्जी द्वारा विदेशी मंच पर भारत की आलोचना और अस्वीकार्य रवैया भारत के लोगों को मर्माहत किए हुए है। लोकतंत्र में आलोचना का अधिकार सबको है, लेकिन इसकी भी एक सीमा होती है। जब कोई भारतीय नेता विदेशी धरती पर जाकर अपने ही देश की आलोचना करता है, तो वह आलोचना न रहकर देशद्रोह की सीमा को पार करने लगती है। ममता बनर्जी ने भारत की आलोचना करने के लिए लंदन जैसे मंच का चयन किया, जहां उनकी बातें भारत-विरोधी ताकतों को बल देने का कार्य कर सकती हैं।
इससे भारत की छवि एक अस्थिर और विफल लोकतंत्र के रूप में पेश होती है, जो वास्तविकता से बिल्कुल परे है। भारत की शिक्षित और जागरूक जनता ऐसे नेताओं के इरादों को भली-भांति समझती है। देशहित से ऊपर उठकर व्यक्तिगत और राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को तरजीह देने वाले नेता जनता के विश्वास को ठेस पहुंचाते हैं। ममता बनर्जी का यह रवैया भारत की जनता को आहत कर गया है। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि भारत की शिक्षित जनता शायद उन्हें माफ कर दे, लेकिन उनकी इस भूल को भुलाया नहीं जा सकता।
भारत की वैश्विक पहचान और प्रगति आज जग जाहिर है। भारत ने पिछले कुछ वर्षों में वैश्विक मंच पर अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई है। G20 शिखर सम्मेलन की अध्यक्षता करना, चंद्रयान-3 की सफलता, डिजिटल भारत का वैश्विक स्तर पर स्वीकार्य होना और आत्मनिर्भर भारत की अवधारणा को साकार करना- यह सब भारत की बढ़ती ताकत और वैश्विक पहचान का प्रमाण है। ऐसे समय में जब भारत एक नई ऊंचाई पर पहुंच रहा है, किसी भारतीय नेता का देश को कमजोर दिखाना न केवल गैर-जिम्मेदाराना है, बल्कि राष्ट्र विरोधी मानसिकता को दर्शाता है।
भारत विरोधी मानसिकता जनता की अस्वीकार्यता को उजागर करती है भारत की जनता अब बहुत जागरूक हो चुकी है। वह जानती है कि कौन देशहित में काम कर रहा है और कौन अपने राजनीतिक स्वार्थों के लिए देश की छवि को नुकसान पहुंचा रहा है। ममता बनर्जी की यह मानसिकता कि वह अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की छवि को धूमिल करके राजनीतिक लाभ उठा सकती हैं, जनता द्वारा स्वीकार नहीं की जाएगी।ममता बनर्जी जैसी वरिष्ठ और अनुभवी नेता से अपेक्षा थी कि वे भारत की प्रगति और उपलब्धियों को गर्व से प्रस्तुत करें।
लेकिन उन्होंने इसके विपरीत कार्य किया, जो न केवल भारत की छवि को नुकसान पहुंचाने वाला था, बल्कि भारतीय जनता की भावनाओं को भी आहत करने वाला था। अब समय आ गया है कि ऐसे नेताओं को आत्मविश्लेषण करना चाहिए और यह समझना चाहिए कि विदेश में अपने देश की छवि को नुकसान पहुंचाना किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं है। भारत की जनता को यह अधिकार है कि वह अपने नेताओं से जवाब मांगे और यह सुनिश्चित करे कि देश का मान-सम्मान किसी भी स्तर पर गिरने न पाए।
(स्पष्टीकरण : इस आलेख में दिए गए विचार लेखक के हैं और इसे ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया गया है।)

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