महाराष्ट्र में महायुति को जबरदस्त चुनावी रणनीति ने अभूतपूर्व जीत का इतिहास रचाया!

कार्यकर्ताओं से पर्चियों में फीडबैक, लाडली बहन योजना व दो नारों ने जबर्दस्त जीत का उपहार दिया
भारत की खुबसुरत लोकतांत्रिक प्रणाली व बुद्धिजीवी सटीक मतदाताओं की निर्णय क्षमता पर दुनिया हैरान- अधिवक्ता के.एस. भावनानी

अधिवक्ता किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र। वैश्विक स्तर पर सारी दुनिया विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के चुनावी महापर्व को हैरत भरी नजरों से देखती है कि, उनके पूरे देश के नागरिकों या जनसंख्या वाला तो भारत में एक ही राज्य है, ऐसे 29 राज्य 8 केंद्र शासित प्रदेश हैं तो कितना बड़ा चुनावी महापर्व होता होगा, आज हम इस विषय पर इसलिए चर्चा कर रहे हैं क्योंकि कल दिनांक 23 नवंबर 2024 को महाराष्ट्र व झारखंड राज्यों व अनेक राज्यों के उपचुनाव परिणामों का ऐलान हुआ, जिसके लिए मैंने तीन सटीक विश्लेषण दिए थे, तीनों विश्लेषण सौ प्रतिशत सटीक साबित हुए। अब हम इसे आगे बढ़ा कर राज्यों में सरकारी बनाने का विश्लेषण व जीत के कारणों पर चर्चा करेंगे, चूँकि झारखंड में तो सीएम झामुमो का ही होगा परंतु सबकी नजरें महाराष्ट्र पर लगी हुई है।

मेरा व्यक्तिगत रूप से मानना है कि सीएम एकनाथ शिंदे ही रहेंगे, हालांकि बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी यानी 288 में से 132 सीटें शिवसेना 57 व एनसीपी को 41 सीटें मिली है, सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी है, जिस पर सबकी नजर है कि बीजेपी का सीएम होगा। 23 नवंबर 2024 को उद्धव ठाकरे साहब ने भी सीएम बीजेपी का होने होना चाहिए ऐसी बातें कहीं। मेरा व्यक्तिगत मानना है कि सीएम एकनाथ शिंदे साहब ही हो सकते हैं क्योंकि बीजेपी की यह सटीक रणनीति का हिस्सा हो सकता है, जिसका आगे अन्य राज्यों में चुनावों में बीजेपी को बहुत फायदा व महाराष्ट्र में अनेक मुद्दों पर भी फायदा होगा, जिसकी चर्चा हम नीचे पैराग्राफ में करेंगे। चुकी भारत की खूबसूरत लोकतंत्र प्रणाली व बुद्धिजीवी सटीक मतदाताओं पर दुनिया हैरान है। इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आलेख के माध्यम से चर्चा करेंगे, महाराष्ट्र में महायुति को जबरदस्त चुनावी रणनीति ने, अभूतपूर्व जीत का इतिहास रचाया।

साथियों बात अगर हम 23 जुलाई 2024 को आए महाराष्ट्र के चुनावी परिणामों की करें तो, बीजेपी के नेतृत्व वाले गठबंधन महायुति ने शानदार जीत दर्ज की है, राज्य में एक बार फिर उसकी सरकार बन रही है।288 सीटों वाले महाराष्ट्र विधानसभा में महायुति को 230 से ज्यादा सीट मिल रही हैं, वहीं एमवीए को 47 सीटें मिली हैं। राज्य में बंपर बहुमत के बाद महायुति में अब सीएम पद को लेकर माथापच्ची होगी। एकनाथ शिंदे ने कहा है कि तीनों पार्टियां मिलकर फैसला लेंगी। उन्होंने ये भी कहा कि ये तय नहीं है कि जिसकी ज्यादा सीटें आई हैं सीएम उसका ही बनेगा।महाराष्ट्र में बंपर जीत पर आयोजित आभार कार्यक्रम में पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा कि बीते 50 साल में किसी भी पार्टी या किसी भी गठबंधन के लिए ये सबसे बड़ी जीत है, ये लगातार तीसरी बार है जब भाजपा की लीडरशिप में किसी गठबंधन को महाराष्ट्र ने आशीर्वाद दिया है, ये लगातार तीसरी बार है जब भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। महाराष्ट्र की गुत्थी महायुति ने सुलझा ली और बंपर जीत के साथ वापसी की है।

महायुति का हिस्सा बीजेपी, एकनाथ शिंदे की शिवसेना और अजीत पवार की एनसीपी तीनों ने जबरदस्त प्रदर्शन किया और महायुति का स्ट्राइक रेट करीब 73 प्रतिशत तक पहुंचा दिया। महायुति का मुकाबला महा विकास अघाड़ी से था। इस गठबंधन की मुख्य पार्टियां कांग्रेस, उद्धव ठाकरे की शिवसेना और शरद पवार की एनसीपी हैं। महा विकास अघाड़ी की कोई भी पार्टी सही प्रदर्शन नहीं कर पाई और महा विकास अघाड़ी का स्ट्राइक रेट करीब 17 प्रतिशत के आसपास रहा। महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा सीटों पर यानी 149 सीटों पर बीजेपी ने चुनाव लड़ा था। बीजेपी का स्ट्राइक रेट 88 प्रतिशत के आसपास है। एकनाथ शिंदे की शिवसेना 81 सीटों पर लड़ी थी और इनका स्ट्राइक रेट भी करीब 69 प्रतिशत रहा। अजीत पवार की एनसीपी 66 सीटों पर लड़ी थी और स्ट्राइक रेट करीब 63 पर्सेंट रहा। महायुति की जो सबसे बड़ी टेंशन थी वह इसे लेकर थी कि अजीत पवार की पार्टी कैसा प्रदर्शन करेगी और क्या वह अपना वोट बीजेपी को ट्रांसफर कर पाएगी। नतीजों से लगता है कि वोट ट्रांसफर हुआ है। अजीत पवार भी इस चुनाव में मजबूत बनकर उभरे हैं। एकनाथ शिंदे की इमेज का भी महायुति को बहुत फायदा पहुंचा।

साथियों बात अगर हम महाराष्ट्र के 5 माह पूर्व लोकसभा चुनाव में आए खराब प्रदर्शन को बड़ी ऐतिहासिक जीत में पलटने की रणनीति की करें तो, महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव के दौरान 48 में सिर्फ 18 सीटें पाने वाली भाजपा नीत महायुति गठबंधन ने छह महीने में ही बाजी पलट दी। अचूक रणनीति और सफल चुनाव प्रबंधन से अबकी बार 200 पार का नारा सफल हुआ और महायुति की महा विजय हुई। महायुति ने छह माह में बाजी पलटने पर संगठन और सरकार के स्तर पर एक साथ और कारगर प्रयास किए जिसका नतीजा रेकॉर्ड तोड़ जीत के रूप में सामने आया। लोकसभा चुनाव में जीत से उत्साहित विपक्ष का माहौल बदलने के लिए उसका नैरेटिव तोडऩा बड़ी चुनौती थी लेकिन महायुति इसमें सफल रही।

भाजपा नेतृत्व ने 10 हजार आम कार्यकर्ताओं से पर्चियों के जरिए 5 से 6 सुझाव मांगे थे। हर जिले के कार्यकर्ताओं से पार्टी ने फीडबैक लेकर समय रहते कमियां दूर कीं। खास बात है कि भाजपा ने हर विधानसभा में गठबंधन के तीनों दलों के नेताओं की कॉर्डिनेशन कमेटियां बनाई। जिससे तालमेल का संकट खड़ा नहीं हुआ। महिला मतदाताओं को साधने के लिए चलाई गई लाडक़ी बहिन योजना सफल रही। चुनाव से पहले तक ढाई करोड़ महिलाओं के खाते में तीन बार 1500-1500 रुपये भेजकर महायुति सरकार ने विश्वसनीयता हासिल की। उसे इसका लाभ मिला। टोल टैक्स हटाने, वृद्धावस्था पेंशन बढाने और प्याज एक्सपोर्ट से जुडी़ शर्तें हटाने, ऋण माफी आदि एलानों से महायुति सरकार किसानों और मध्यवर्गीय मतदाताओं को भी साधने में सफल रही।

यही वजह रहा कि पश्चिम महाराष्ट्र् और मराठवाड़ा में भी महायुति ने शानदार प्रदर्शन किया।लोकसभा चुनाव में जिस तरह से महाराष्ट्र् में विपक्ष के संविधान खतरे में नैरेटिव के कारण दलित और बौद्ध मतदाताओं का बड़ा वर्ग कांग्रेस नेतृत्व महाविकास अघाड़ी की तरफ शिफ्ट हुआ था। ऐसे में भाजपा ने नतीजों के तुरंत बाद दलित और ओबीसी वर्ग की 350 प्रमुख जातियों के नेताओं से मीङ्क्षटग शुरू की। दलित बहुल इलाकों में भाजपा ने संविधान यात्राएं निकाली। गृहमंत्री के निर्देशन में चुनाव प्रभारी ने 3 महीने तक लगातार अलग-अलग जातियों के नेताओं के साथ बैठकें कर उन्हें पार्टी के साथ लाने में सफल रहे और जिसके जरिए वंचित समाज में संविधान और आरक्षण को लेकर फैले भ्रम को पाटने में सराहनीय सफल रहे।

साथियों बात अगर हम महा विकास अघाड़ी की असफलता के कारणों की करें तो, लोकसभा चुनाव में महा विकास अघाड़ी ने जो प्रदर्शन किया था, उसका फायदा यह गठबंधन नहीं ले पाया। यह न तो सत्ताधारी गठबंधन को मद्दों पर घेर पाया न ही उनके नेरेटिव के जवाब में कोई काउंटर नेरेटिव सेट कर पाया। शिवसेना में बगावत के बाद जब राज्य की महा विकास अघाड़ी सरकार गिरी थी और शिवसेना टूटी, फिर एनसीपी टूटी को उद्धव ठाकरे और शरद पवार को लेकर सहानुभूति थी जिसका फायदा लोकसभा चुनाव में दिखा। लेकिन यह गठबंधन विधानसभा चुनाव में इसे भुनाने में असफल रहा। महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दे इन्होंने उठाए लेकिन उसे लेकर माहौल नहीं बना पाए।

लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी द्वारा आक्रामकता से जातिगत जनगणना और संविधान पर खतरे को मुद्दा बनाने के मुद्दे से माहौल बनाया गया था। भाजपा इस नैरेटिव को तोडऩे में लगी थी लेकिन अति आत्मविश्वास में डूबे एमवीए नेता इसका जवाब नहीं तलाश पाए। उन्होंने भाजपा ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ और ’एक हैं तो सेफ हैं’ जैसे नारों का माकूल जवाब भी समय पर नहीं दिया गया। ऐसे में यह नारे लोगों को लुभा गए। कांग्रेस की गारंटियों जैसे पुराने वादे भी मतदाताओं को आकर्षित नहीं कर पाए साथ ही तालमेल में कमी और शिवसेना से वैचारिक भिन्नता भी कहीं न कहीं नुकसानदेह साबित हुई। कुर्सी की खींचतान दरअसल, लोकसभा चुनाव में इंडिया ब्लॉक ने एकजुटता से चुनाव लड़ते हुए महाराष्ट्र की 48 में से 30 सीटें जीती। इस दौरान करीब 150 से अधिक विधानसभा सीटों पर इंडिया ब्लॉक की बढ़त रही।

एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी : संकलनकर्ता, लेखक, कवि, स्तंभकार, चिंतक, कानून लेखक, कर विशेषज्ञ

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन करें इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि महाराष्ट्र में महायुति को ज़बरदस्त चुनावी रणनीति ने अभूतपूर्व जीत का इतिहास रचाया!कार्यकर्ताओं से पर्चियां में फीडबैक, लाडली बहन योजना व दो नारों ने जबर्दस्त जीत का तोहफ़ा दिया। भारत की ख़ूबसूरत लोकतांत्रिक प्रणाली व बुद्धिजीवी सटीक मतदाताओं की निर्णय क्षमता पर दुनिया हैरान है।

(स्पष्टीकरण : इस आलेख में दिए गए विचार लेखक के हैं और इसे ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया गया है।)

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