प्रेमचंद का साहित्य : समाज और संस्कृति के सरोकार पर केंद्रित राष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न

उज्जैन । राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना, हिंदी परिवार एवं भारतीय ज्ञानपीठ महाविद्यालय, उज्जैन द्वारा प्रेमचंद जयंती के अवसर पर उज्जैन में संचेतना महोत्सव, राष्ट्रीय संगोष्ठी एवं साहित्यकार सम्मान समारोह का आयोजन किया गया। संगोष्ठी प्रेमचंद का साहित्य : समाज और संस्कृति के सरोकार पर केंद्रित थी। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर अखिलेश कुमार पांडेय, सारस्वत अतिथि पूर्व संभागायुक्त वरिष्ठ आईएएस अशोक कुमार भार्गव, भोपाल, मुख्य वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा, विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ गांधीवादी समाजसेवी कृष्णमंगल सिंह कुलश्रेष्ठ, सुवर्णा जाधव, मुंबई एवं शिक्षाविद ब्रजकिशोर शर्मा थे।

कार्यक्रम में संस्था के मासिक पत्र संचेतना समाचार और डॉ. अनिल चतुर्वेदी, मुम्बई की पुस्तक वंशवृक्षम् का लोकार्पण किया। वक्ताओं ने विश्वविख्यात उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद जी के योगदान पर प्रकाश डाला। कुलपति प्रो. अखिलेश कुमार पांडेय ने कहा कि प्रेमचंद जी के साहित्य में भारतीय परिवार और समाज जीवन के अनेक पहलू उद्घाटित हुए हैं जो आज भी प्रासंगिक हैं। उन्होंने पीड़ित मानवता के उद्धार के लिए साहित्य रचा। नए साहित्यकार उनके लेखन से प्रेरणा लेकर समाज और राष्ट्र के निर्माण में अपना योगदान दें।

कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि भारतीय स्वाधीनता आंदोलन में प्रेमचंद ने अपनी लेखनी से अविस्मरणीय योगदान दिया। ब्रिटिश हुकूमत द्वारा उनकी अभिव्यक्ति पर अंकुश लगाया जा रहा था, तब उन्होंने प्रतिरोध का रास्ता अपनाया। अभी के दौर में उभरे कई विमर्शों के मूल सूत्र उनके यहां मौजूद हैं। वे भारतीय जमीन खड़े रचनाकार हैं, उन्हें की सुनिश्चित वाद या विचारधारा के दायरे में बांधा नहीं जा सकता है। सारस्वत अतिथि अशोक कुमार भार्गव ने उनके व्यक्तित्व और साहित्य के कई पक्षों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि प्रेमचंद आजीवन शोषित और वंचितों के पक्ष में आवाज उठाते रहे।

यह आयोजन आजादी के अमृत महोत्सव की कड़ी में संपन्न हुआ। राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के 200 आभासी संगोष्ठी संपन्न होने पर संस्था के राष्ट्रीय मुख्य संयोजक डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, मार्गदर्शक डॉ. हरिसिंह पाल, नई दिल्ली की ज्यूरी ने पाँच व्यक्तियों को सम्मानित करने की अनुशंसा की। इसके अंतर्गत श्रेष्ठ विचारक के रूप में प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा, उज्जैन, मार्गदर्शक के रूप में सुवर्णा जाधव, मुंबई, श्रेष्ठ संयोजक डॉ. अनुसूया अग्रवाल, महासमुंद, श्रेष्ठ आयोजक डॉ. प्रभु चौधरी एवं श्रेष्ठ संचालक डॉ. मुक्ता कौशिक, रायपुर को अतिथियों द्वारा प्रशस्ति पत्र, स्मृति चिह्न, शॉल और श्रीफल अर्पित कर उन्हें सम्मानित किया गया।

राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा कोरोना संकट और लॉक डाउन के दौरान पर दो सौ से अधिक आभासी संगोष्ठी, महापुरुषों की जयंती समारोह, साहित्यिक संगोष्ठी, राष्ट्रीय शिक्षा नीति, काव्य गोष्ठी आदि सहित अनेक विषयों पर व्याख्यानमालाएँ आयोजित की गईं। इसके माध्यम से संपूर्ण विश्व से लगभग 50 अतिथि एवं 200 वक्ताओं ने अपने उद्गार व्यक्त किए। आयोजन समिति के अलावा 100 विशेष अतिथियों एवं 150 विशिष्ट वक्ताओं का भी योगदान रहा।

सम्मान समारोह में अतिथियों द्वारा साहित्यकार और संस्कृतिकर्मियों को सम्मान-पत्र अर्पित कर उनका सम्मान किया गया। इनमें प्रमुख रूप से अशोक जाधव, पुणे, राजकुमार यादव, मुम्बई, विनोद दुबे, मुम्बई, डॉ. अनिल चतुर्वेदी, मुम्बई, राकेश छोकर, सहरानपुर, सुनीता राठौर, उज्जैन, कल्पना शाह, कुक्षी, मनीषा खंडेकर, धार, दाखा कारपेन्टर, बागली, सुनीता श्रीवास्तव, इन्दौर, प्रतिमा सिंह, सरदारपुर, प्रभा बैरागी, उज्जैन, लेखराज शिवहरे, बागली, प्रगति बैरागी, उज्जैन, करुणा प्रजापत, इन्दौर, ऋचा तिवारी, देवास, ज्योति चौहान, मंदसौर, मणिमाला शर्मा, इन्दौर सम्मिलित थे।

संगोष्ठी का संचालन राष्ट्रीय महासचिव डॉ. प्रभु चौधरी ने किया। सरस्वती वंदना मणि माला शर्मा ने, स्वागत भाषण राजकुमार यादव ने एवं आभार सुनीता राठौर ने माना। इस अवसर पर देशभर के अनेक साहित्यकार, कवि और कवयित्री उपस्थित रहे। काव्य गोष्ठी के आयोजन में सुगन चंद जैन, अनिल पांचाल सेवक, अशोक शर्मा, बिंदु मेहता इंदौर, नंद किशोर पांचाल, अनुज पांचाल, डॉ. मनीषा दुबे, दिलीप जोशी, सुनीता राठौर, जितेन्द्र पाण्डे, कल्पना शाह, राकेश छोकर, सहारनपुर, प्रतिमा सिंह, सरदारपुर आदि ने अपनी कविताएँ सुनाई। काव्य गोष्ठी का संचालन सुनीता राठौड़ एवं बिंदु मेहता ने किया। आभार राष्ट्रीय महासचिव डॉ. प्रभु चौधरी ने माना।

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