बदहाल हैं बंगाल की लाइब्रेरियां, दो साल से धूल फांक रहीं लाइब्रेरियन नियुक्ति की फाइलें

कोलकाता। पश्चिम बंगाल में तमाम सरकारी लाइब्रेरियां अनदेखी के चलते बदहाली से गुजर रही हैं। सरकार के लचर रवैए का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि लाइब्रेरियन नियुक्ति को लेकर 21 महीने पहले विज्ञप्ति जारी होने के बावजूद आज तक प्रक्रिया एक कदम भी आगे नहीं बढ़ पाई है। राज्य पुस्तकालय विभाग के एक सूत्र ने बताया है कि 21 महीने पहले वित्त विभाग से हरी झंडी मिलने के बाद 738 रिक्त पदों पर लाइब्रेरियन की नियुक्ति के लिए अधिसूचना जारी हुई थी। उसी साल जुलाई महीने में ही नियुक्ति प्रक्रिया पूरी कर ली जानी थी।

इसके लिए सर्च कमेटी का भी गठन किया जाना था। हालांकि 21 महीने बीतने के बाद भी आवेदनपत्रों से धूल की माेटी परत जमी है और अधिसूचना सिर्फ कागजी बनकर ही रह गई। सूत्रों ने बताया है कि नियुक्ति प्रक्रिया शुरू होने संबंधी दस्तावेज फाइलों में पड़ी धूल फांक रहे हैं। इस बारे में एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि नियुक्ति की प्रक्रिया चल रही है। विलंब होने के सवाल पर उन्होंने फोन काट दिया।

राज्य के पुस्तकालय मंत्री सिद्दिकुल्लाह चौधरी हैं, जो जमीयत ए उलेमा ए हिंद के बंगाल चैप्टर के अध्यक्ष भी हैं। यह संगठन हिंसक गतिविधियों के लिए देशभर में जांच के घेरे में है। उन्होंने 2020 के मई महीने में बजट भाषण के दौरान विधानसभा में कहा था कि राज्य की सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त 738 पुस्तकालयों में लाइब्रेरियन की नियुक्ति होगी।बदइंतजामी से बंद हो चुके हैं 12 सौ पुस्तकालयजानकार बताते हैं कि राज्यभर में करीब 2480 सरकारी पुस्तकालय हैं, जिनमें से करीब 12 सौ बंद हो चुके हैं।

इसकी वजह है कि उनकी देखरेख और रखरखाव के लिए कर्मचारी नहीं हैं। जैसे तैसे चल रहे कुछ पुस्तकालयों में फिलहाल बांग्ला सहायता केंद्र खोल दिए गए हैं।विपक्ष ने उठाए सवालराज्य सरकार के इस टालमटोल भरे रवैया पर राज्य के जनसाधारण ग्रंथागारकर्मी करबी कल्याण समिति के प्रधान सलाहकार तथा राज्य के कर्मचारी फेडरेशन के वरिष्ठ नेता मनोज चक्रवर्ती ने सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि सरकार फिलहाल किसी भी तरह से अपनी साख बचाने में जुटी हुई है। शिक्षक नियुक्ति भ्रष्टाचार को लेकर देशभर में बंगाल सरकार की किरकिरी हुई है।

ऐसे में सरकार यह कह कर अपनी जान छुड़ा रही है कि नियुक्ति की प्रक्रिया चल रही है। मनोज ने कहा कि बदहाली ऐसी है कि उन पुस्तकालयों में नियमित अखबार भी नहीं मिल रहे हैं।पुस्तकालय आंदोलन से लंबे समय से जुड़े रहे सुकोमल भट्टाचार्य ने बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में जो सरकारी पुस्तकालय हैं, वह वहां गरीबी में पढ़ने वाले बच्चों के लिए सहारा हैं। इसके अलावा गांव के प्रबुद्ध लोगों के लिए अखबार पढ़ने की एक जगह भी है। राज्य में पिछले सात-आठ सालों से जिस तरह से कर्मचारियों की नियुक्ति को लेकर लापरवाही बरती गई है वह दुर्भाग्यजनक है।

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