Climate कहानी, कोलकाता | 31 अक्टूबर 2025 — Lancet Countdown on Health and Climate Change की 2025 रिपोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि गर्मी अब सिर्फ़ मौसम नहीं, बल्कि एक गंभीर स्वास्थ्य और आर्थिक चुनौती बन चुकी है। रिपोर्ट के अनुसार, 2024 न केवल अब तक का सबसे गर्म साल रहा, बल्कि सबसे महँगा भी, जिसमें दुनियाभर में 350 अरब डॉलर का आर्थिक नुकसान हुआ।
🔥 भारत में गर्मी का असर: आंकड़े डराते हैं
- 2024 में भारत में प्रति व्यक्ति औसतन 20 हीटवेव दिन दर्ज किए गए, जिनमें से 6.5 दिन सीधे जलवायु परिवर्तन से जुड़े थे
- 247 अरब श्रम घंटे का नुकसान हुआ — प्रति व्यक्ति 420 घंटे, जो 1990 के दशक की तुलना में 124% अधिक है
- कृषि क्षेत्र में 66% और निर्माण क्षेत्र में 20% श्रम हानि हुई, जिससे 194 अरब डॉलर की संभावित आय का नुकसान हुआ
रिपोर्ट में कहा गया है कि 2024 वैश्विक तापमान का नया रिकॉर्ड लेकर आया। इस साल औसत तापमान 1.4°C तक पहुँच गया, जिसने न सिर्फ़ फसलें झुलसाईं, बल्कि काम करने की क्षमता भी घटा दी।
भारत सहित दक्षिण एशिया के कई हिस्सों में हीटवेव के कारण औसत श्रम-घंटे घटे, जिससे कृषि और निर्माण क्षेत्र पर भारी आर्थिक असर पड़ा।

🧓 हर उम्र के लिए बढ़ता खतरा
- 65 वर्ष से ऊपर की आबादी में हीटवेव से मृत्यु दर दोगुनी हो गई है
- बच्चे, बुजुर्ग और मज़दूर वर्ग सबसे अधिक प्रभावित
- प्रदूषण से जुड़ी बीमारियाँ जैसे क्रॉनिक रेस्पिरेटरी डिज़ीज़ और हृदय रोग भी बढ़े हैं
रिपोर्ट का भारत-केंद्रित विश्लेषण बताता है कि देश में अब हीटवेव की अवधि और तीव्रता दोनों बढ़ रही हैं। इससे बुजुर्गों, बच्चों और मज़दूर वर्ग के लिए जोखिम कई गुना बढ़ गया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में 2010 की तुलना में 2024 में गर्मी से संबंधित मौतें दोगुनी हुईं, और 65 वर्ष से ऊपर की आबादी में यह खतरा सबसे ज़्यादा देखा गया। इसी के साथ, प्रदूषण से जुड़ी बीमारियों, जैसे कि क्रॉनिक रेस्पिरेटरी डिजीज़ और हार्ट प्रॉब्लम्स , में भी लगातार बढ़ोतरी दर्ज की गई।
🌾 खाद्य सुरक्षा पर दोहरी मार
- गर्मी और अनियमित वर्षा के कारण भारत में कृषि उत्पादकता में 7% की गिरावट
- चावल और गेहूं जैसी मुख्य फसलों का उत्पादन घटा
- इससे भोजन की कीमतें बढ़ीं और कुपोषण का खतरा बढ़ा
रिपोर्ट ने आगाह किया है कि जलवायु परिवर्तन अब भोजन की उपलब्धता और पौष्टिकता दोनों पर असर डाल रहा है। 2024 में भारत, बांग्लादेश और पाकिस्तान में अनाज उत्पादन घटा, खासकर चावल और गेहूं जैसी मुख्य फसलों में।
रिपोर्ट के मुताबिक, गर्मी और अनियमित वर्षा के कारण भारत में कृषि उत्पादकता में 7% की गिरावट दर्ज की गई, और इससे भोजन की कीमतें और कुपोषण का खतरा बढ़ गया।
💰 आर्थिक और नीतिगत दबाव
- जलवायु-जनित बीमारियों और काम की हानि से भारत की अर्थव्यवस्था पर करोड़ों डॉलर का बोझ
- स्वास्थ्य व्यवस्था पर दबाव, खासकर ग्रामीण और शहरी गरीबों पर
- National Clean Air Programme (NCAP), Renewable Energy Targets, और Heat Action Plans जैसे प्रयासों की प्रशंसा, लेकिन क्रियान्वयन की गति धीमी
रिपोर्ट बताती है कि 2024 में जलवायु-जनित आपदाओं से दुनियाभर में 350 अरब डॉलर का आर्थिक नुकसान हुआ, जिसमें एशिया का हिस्सा सबसे बड़ा था। भारत में हीट-संबंधी बीमारियों के इलाज और काम की हानि से देश की अर्थव्यवस्था पर करोड़ों डॉलर का बोझ बढ़ा है।
Lancet Countdown की Executive Director डॉ. रेचल आर्सेनॉल्ट कहती हैं, “हर डिग्री तापमान बढ़ना सिर्फ़ मौसम की बात नहीं, यह स्वास्थ्य, आय और समानता — तीनों पर सीधा हमला है।”
🧭 अब जलवायु नीति = स्वास्थ्य नीति
Lancet की रिपोर्ट का स्पष्ट संदेश है:
“हर डिग्री तापमान बढ़ना सिर्फ़ मौसम की बात नहीं, यह स्वास्थ्य, आय और समानता — तीनों पर सीधा हमला है।” — डॉ. रेचल आर्सेनॉल्ट
भारत को अब ऊर्जा, स्वास्थ्य और खाद्य नीतियों को एकीकृत दृष्टिकोण से देखना होगा। क्योंकि सवाल अब यह नहीं कि मौसम कितना बदलेगा, बल्कि यह है कि हम उस बदलते मौसम में कितने स्वस्थ रह पाएँगे।
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