कोलकाता | 21 अक्टूबर 2025 : जब दीपावली की रात रोशनी से जगमग होती है, तब कोलकाता के केवड़ातला महाश्मशान में काली पूजा की एक 154 साल पुरानी परंपरा निभाई जाती है। यह पूजा कालीघाट मंदिर के पास स्थित महाश्मशान में होती है, जहां चौबीस घंटे चिताएं जलती हैं।
🕯️ पूजा की अनोखी परंपरा
- जब तक कोई शव नहीं आता, देवी को भोग नहीं चढ़ाया जाता
- एक चिता को प्रतीक रूप में पंडाल में रखा जाता है
- पूजा का माहौल रहस्यमय और साधनात्मक होता है
- यह पूजा केवल कालीघाट पर ही होती है, पूरे बंगाल में कहीं और नहीं
🗣️ आयोजक उत्तम दत्त का बयान
काली पूजा के आयोजक उत्तम दत्त बताते हैं कि जब तक श्मशान में कोई शव नहीं आता, तब तक देवी को हम भोग नहीं चढ़ाते। पूरे बंगाल में यह पूजा सिर्फ कालीघाट पर ही होती है।
इसके अलावा, उनकी पूजा के समय यहां जलने के लिए आने वाली एक चिता भी पंडाल में रखी जाती है। इन्हीं परंपरा के चलते ही श्मशान का माहौल रहस्यमय बन जाता है।
अमूमन काली माता की मूर्तियों में 8 से 12 हाथ होते हैं, देवी की जीभ भी बाहर निकली होती है, लेकिन काली पूजा की मूर्ति में सिर्फ दो हाथ होते हैं और जीभ भी मुंह के अंदर रहती है।

दत्त के मुताबिक चिताओं के बीच ही यह सबसे बड़ी पूजा होती है। इसकी शुरुआत 1870 में एक कापालिक ने की थी। उन्होंने दो स्थानीय ब्राह्मणों की मदद ली थी।
🧘♀️ देवी की मूर्ति: परंपरा से हटकर
| विशेषता | पारंपरिक मूर्ति | महाश्मशान की मूर्ति |
|---|---|---|
| हाथों की संख्या | 8 से 12 | केवल 2 |
| जीभ | बाहर निकली | मुंह के अंदर |
| भाव | उग्र और रौद्र | शांत और साधक रूप |
- यह रूप कापालिक परंपरा से जुड़ा है
- पूजा की शुरुआत 1870 में एक कापालिक साधक ने की थी
- उन्होंने दो स्थानीय ब्राह्मणों की मदद से यह परंपरा शुरू की
ताज़ा समाचार और रोचक जानकारियों के लिए आप हमारे कोलकाता हिन्दी न्यूज चैनल पेज को सब्स्क्राइब कर सकते हैं। एक्स (ट्विटर) पर @hindi_kolkata नाम से सर्च कर, फॉलो करें।





