
खड़गपुर। पूर्व मेदिनीपुर जिला अंतर्गत कोलाघाट थर्मल पावर प्लांट के प्रथम चरण की इकाई 1 और 2 के बॉयलरों की चिमनियां भयानक, जानलेवा प्रदूषण के कारण अंततः आज ध्वस्त कर दी गई।
कृषक संग्राम परिषद के सचिव एवं कोलाघाट थर्मल पावर प्लांट पर्यावरण प्रदूषण निवारण समिति के प्रवक्ता नारायण चंद्र नायक ने बताया कि उक्त आदेश के बाद थर्मल पावर प्लांट के अधिकारियों ने दूसरे चरण की तीन चिमनी और पहले चरण की तीसरी चिमनी के मुहाने पर आधुनिक ईएसपी मशीनें लगा दीं, लेकिन पहले चरण की पहली और दूसरी चिमनी को आधुनिक नहीं बनाया जा सका, जो पुराने मॉडल की बनी हुई थी।
इसी कारण से बोर्ड ने उन दो चिमनियों में बिजली उत्पादन बंद करने का आदेश दिया। दूसरी ओर, इस तथ्य के कारण कि राज्य के अन्य बिजली संयंत्र कम उत्पादन लागत पर बड़ी मात्रा में बिजली पैदा कर रहे थे।
डब्ल्यूबीपीडीसीएल अधिकारियों ने इस संयंत्र की पहली दो इकाइयों में कई वर्षों तक बिजली उत्पादन बंद कर दिया था। कुल मिलाकर, विद्युत संयंत्र के अधिकारियों ने कुछ महीने पहले इकाई एक और दो के बॉयलरों को ध्वस्त करने के बाद आज दोनों चिमनियों को ध्वस्त करने का निर्णय लिया।
थर्मल पावर प्लांट के सूत्रों के अनुसार, पहले ही एक नोटिस जारी कर दिया गया था, जिसमें क्षेत्र में बाहरी लोगों के प्रवेश पर रोक लगा दी गई थी और कैंटीन से भोजन की आपूर्ति पर भी रोक लगा दी गई थी। इकाई 1 और 2 की चिमनियों को अंततः आज दोपहर 1:30 बजे उन्नत तकनीक का उपयोग करके ध्वस्त कर दिया गया।
कोलाघाट-मेचेदा क्षेत्र के हजारों लोगों ने अपने घरों की छतों या ऊंचे स्थानों से इसे देखा। कुछ महीने पहले उन दोनों इकाइयों के बॉयलर भी नष्ट कर दिए गए थे। 1984 में राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्योति बसु ने एशिया के सबसे बड़े कोलाघाट थर्मल पावर प्लांट की पहली तीन इकाइयों का उद्घाटन किया।
1992 में दूसरे चरण की तीन इकाइयां, चौथी, पांचवीं और छठी, चालू की गईं।
210 मेगावाट प्रति यूनिट बिजली उत्पादन क्षमता वाला यह बिजली संयंत्र कभी प्रतिदिन कुल 1,260 मेगावाट बिजली पैदा करता था। इतनी बड़ी मात्रा में बिजली पैदा करने के लिए प्रतिदिन लगभग 12,000 मीट्रिक टन कोयले की आवश्यकता थी। चूँकि यह विद्युत संयंत्र बहुत निम्न गुणवत्ता वाला कोयला जला रहा था, इसलिए इससे प्रतिदिन लगभग 6 से 7 हजार मीट्रिक टन राख उत्पन्न होती थी।
परिणामस्वरूप, कुछ वर्ष पहले कोलाघाट, मेचेदा और पड़ोसी पूर्व मेदिनीपुर और हावड़ा जिलों में लगभग 500 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र थर्मल पावर प्लांटों से उत्सर्जित राख प्रदूषण के कारण गंभीर प्रदूषण का शिकार हो गया था।
इस स्थिति में, राख प्रदूषण के निवारण की मांग को लेकर क्षेत्र के प्रभावित निवासियों ने ‘कृषक संग्राम परिषद’ और ‘कोलाघाट थर्मल पावर प्लांट पर्यावरण प्रदूषण निवारण समिति’ की ओर से लगातार विरोध प्रदर्शन किया है, और पश्चिम बंगाल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में शिकायत भी दर्ज कराई है। यहां तक कि ग्रीन बेंच में भी शिकायतें दर्ज की गईं।
इस कारण बोर्ड ने करीब 25 सुनवाई की और कई चरणों में थर्मल पावर प्लांट अधिकारियों पर करीब 1 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया। यही नहीं निर्देश दिए गए – राख प्रदूषण के स्तर को नियंत्रित करने के लिए सभी 6 इकाइयों में अत्याधुनिक निस्पंदन उपकरण (इलेक्ट्रोस्टेटिक प्रीसिपिटेटर या ईएसपी) लगाए जाएं।
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