कबीर जयंती : लोकमनीषी पद्मश्री पं. रामनारायण उपाध्याय पर केंद्रित कलासमय के विशेषांक और कर्मयोगिनी अहिल्याबाई होलकर पुस्तक का लोकार्पण सम्पन्न

अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में हुआ कबीर वाणी का प्रदेय : समकालीन सन्दर्भों में पर गहन मंथन

उज्जैन। विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन में कबीर जयंती के अवसर पर अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की गई। यह संगोष्ठी कबीर वाणी का प्रदेय: समकालीन सन्दर्भों में पर अभिकेंद्रित थी। मुख्य अतिथि डॉ. मीरा सिंह फिलाडेल्फिया यूएसए थीं। अध्यक्षता विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक एवं हिंदी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा ने की।

सारस्वत अतिथि ओस्लो, नॉर्वे के वरिष्ठ साहित्यकार सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक, डॉ. उमा गगरानी, मन्दसौर, प्रो. गीता नायक, प्रो. जगदीश चंद्र शर्मा, डॉ. प्रभु चौधरी आदि ने कबीर वाणी के विविध पक्षों पर प्रकाश डाला।

विक्रम विश्वविद्यालय की हिंदी अध्ययनशाला, ललित कला अध्ययनशाला द्वारा राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के सहयोग से आयोजित इस संगोष्ठी में लोकमनीषी पद्मश्री पं. रामनारायण उपाध्याय पर केंद्रित कलासमय पत्रिका के विशेषांक का लोकार्पण किया गया।

पत्रिका का अतिथि संपादन प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा एवं सम्पादन भंवरलाल श्रीवास, भोपाल ने किया है। डॉ. प्रभु चौधरी द्वारा संपादित पुस्तक कर्मयोगिनी अहिल्याबाई होल्कर लोकार्पित की गई।

संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए कुलानुशासक डॉ. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि संत कबीर ने अपनी वाणी और आचरण के माध्यम से बाहर ओर भीतर – दोनों दुनिया को बदला। उन्होंने निरन्तर श्रम करते हुए भक्ति का महान सन्देश दिया, जो वर्तमान विश्व में अधिक प्रासंगिक है।

उन्होंने आत्मतत्व को समस्त संसार के मूल तत्व के रूप में पहचानने पर बल दिया। कबीर के साथ चलना स्व से जुड़ना है। उनकी वाणी देश विदेश में लोक वाणी के रूप में प्रसारित हो रही है। वे ऐसे मूल्यों की खोज करते हैं जिनसे मनुष्यों को विभाजित करने वाली दीवारों को ध्वस्त किया जा सके।

मुख्य अतिथि डॉ. मीरा सिंह, फिलाडेल्फिया यूएसए ने कहा कि विद्यार्थियों को कबीर से प्रेरणा लेकर स्वतंत्र चिंतन रखना चाहिए, लेकिन अपने गुरु के संदेशों को ध्यान में रखते हुए। जीवन में सद्गुरु की बातों पर चिंतन मनन जरूरी है। कबीर के मार्ग पर चलकर वर्तमान युग में मन में एकाग्रता के साथ सतर्क रहना आवश्यक है।

डॉ. उमा गगरानी मंदसौर ने कहा कि कबीर ऐसे लोकनायक रहे, जिन्होंने समाज का सुधार किया। वे बंधन मुक्त थे, बंधन मुक्त भाषा लोक की भाषा बन जाती है। उन्होंने गीत की पंक्तियाँ सुनाई, हर गायक का अपना स्वर है। हर स्वर की अपनी मादकता। ऐसा नियम न बांधो…।

प्रो. गीता नायक ने अपने उद्गार व्यक्त करते हुए कहा कि साहित्य समाज का दर्पण है। कबीर ने इसे अपने जीवन में चरितार्थ किया। वे ऐसी वाणी बोलिये मन का आपा खोए के माध्यम से संसार को मधुर वाणी का उपदेश देते हैं। वे समन्वयवादी थे।

साहित्यकार सुरेशचन्द्र शुक्ल ‘शरद आलोक’ ओस्लो नॉर्वे ने कहा कि कबीर ने पूरी दुनिया को अपने संदेश से लाभान्वित किया है। मुझे लगता है नार्वे ने भी कबीर के संदेश को अपने ढंग से समाज में उतारा है और पाखण्ड और कुरीतियों को समाप्त कर दिया है।

प्रो. जगदीश चंद्र शर्मा ने कहा कि कबीर ने प्राचीन ज्ञान परम्परा के बहुमूल्य तत्वों को आत्मसात करने पर बल दिया। साथ ही सामाजिक जड़ता को तोड़कर नए मनुष्य के निर्माण की संभावनाओं को उद्घाटित किया।

संस्था के संगठन मंत्री डॉ. प्रभु चौधरी ने कहा कि संस्था का परिचय देते हुए संगोष्ठी की पीठिका प्रस्तुत की। डॉ नेत्रा रावणकर ने हिंदी एवम मराठी संत परंपरा पर प्रकाश डाला और सन्त ज्ञानेश्वर की वाणी सुनाई। प्रारम्भ में अतिथियों द्वारा वाग्देवी का पूजन किया गया।

आयोजन में वरिष्ठ कलाकार लक्ष्मीनारायण सिंहरोड़िया, लता राव, मुंबई; सुनीता कुमावत, बड़नगर सहित अनेक राज्यों के शोधार्थियों ने भाग लिया। संगोष्ठी का संचालन शोधार्थी अजय सूर्यवंशी ने किया। आभार प्रदर्शन ललित कला अध्ययनशाला के विभागाध्यक्ष प्रो. जगदीश चंद्र शर्मा ने किया।

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