झारखंड ने 17 हजार एकड़ वाले मसानजोर डैम पर मालिकाना हक का दावा ठोका, बंगाल सरकार को लिखा पत्र

रांची : झारखंड सरकार ने दुमका में 17 हजार एकड़ क्षेत्र में फैले मसानजोर डैम पर मालिकाना हक का दावा ठोंका है। 1955 में झारखंड की जमीन पर बनकर तैयार हुए इस डैम के पानी से लेकर इससे चलने वाली पनबिजली परियोजना तक पर पश्चिम बंगाल सरकार का नियंत्रण कायम है। अब झारखंड सरकार ने पश्चिम बंगाल की सरकार को पत्र लिखकर कहा है कि डैम हमारी जमीन पर है, इसलिए इस पर दोनों राज्यों का संयुक्त तौर पर नियंत्रण होना चाहिए। झारखंड सरकार के जल संसाधन विभाग के सचिव द्वारा लिखे गये पत्र में डैम निर्माण से लेकर आज तक की परिस्थितियों का जिक्र किया गया है।

माना जा रहा है कि झारखंड सरकार की दावेदारी से दोनों राज्यों के बीच एक बार फिर विवाद की स्थिति खड़ी हो सकती है। इसके पहले 2018 में भी डैम की दीवारों और गेट पर बंगाल सरकार द्वारा रंगाई-पुताई को लेकर विवाद खड़ा हुआ था। मसानजोर डैम के पानी की हिस्सेदारी को लेकर झारखंड में सियासी तौर पर बयानबाजी तो बहुत होती रही है, लेकिन यह पहली बार है जब झारखंड सरकार ने आधिकारिक तौर पर मालिकाना हक पर अपना दावा जताया है।

बता दें कि मसानजोर डैम बनाये जाने के दौरान झारखंड की 12000 एकड़ खेती लायक जमीन जलमग्न हो गयी थी। दुमका जिले के 144 गांवों की जमीन बांध में समा गई। 1955 में बांध बन कर तैयार हुआ तो इसका उद्घाटन भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने किया था। ताजा स्थिति यह है कि मसानजोर डैम के पानी से पश्चिम बंगाल के वीरभूम व मुर्शिदाबाद जिले की पांच लाख साठ हजार एकड़ जमीन की सिंचाई होती है।

जबकि झारखंड में दुमका जिले के दरबारपुर, रानीबहाल और रानीश्वर की आठ पंचायतों की मात्र 18000 एकड़ जमीन को ही सिंचाई का पानी मिल रहा है। डैम का नियंत्रण पूरी तरह बंगाल सरकार के पास होने के कारण इसके लिए भी किसानों को बंगाल सरकार की मर्जी पर रहना पड़ता है। इस डैम पर हाइड्रल परियोजना से उत्पादित होने वाली 04 मेगावाट बिजली पर भी बंगाल का ही अधिकार है। मसानजोर डैम का डूब क्षेत्र झारखंड में ही है।

दस्तावेजों के अनुसार मसानजोर डैम बनते समय बिहार और बंगाल के बीच 12 मार्च 1949 को मयूराक्षी जल बंटवारे पर पहला समझौता हुआ था। करार दस बिंदुओं पर हुआ था, लेकिन आरोप है कि बंगाल सरकार की तरफ से करार की एक भी शर्त पूरी नहीं की गयी। करार में मसानजोर जलाशय से तत्कालीन बिहार (अब झारखंड) में 81000 हेक्टेयर जमीन की खरीफ फसल और 1050 हेक्टेयर पर रबी फसल की तथा पश्चिम बंगाल में 226720 हेक्टेयर खरीफ और 20240 हेक्टेयर रबी फसलों की सिंचाई होने का प्रावधान किया गया था। समझौते के अनुसार निर्माण, मरम्मत तथा विस्थापन का पूरा व्यय बंगाल सरकार को वहन करना है। इतना ही नहीं विस्थापितों को सिंचित जमीन भी देनी थी।

मसानजोर डैम को लेकर बंगाल और बिहार सरकार के बीच दूसरा समझौता 19 जुलाई 1978 को हुआ था। इस करार में मयूराक्षी के अलावा इसकी सहायक नदियों सिद्धेश्वरी और नून बिल के जल बंटवारे को भी शामिल किया गया था। इसके अनुसार मसानजोर डैम का जलस्तर कभी भी 363 फीट से नीचे नहीं आए, इसका ध्यान बंगाल सरकार को पानी लेते समय हर हालत में रखना था, ताकि झारखंड के दुमका की सिंचाई प्रभावित नहीं हो।

बंगाल सरकार को एक अतिरिक्त सिद्धेश्वरी-नूनबिल डैम बनाना था, जिसमें झारखंड के लिए डैम के ऊपरी जलग्रहण क्षेत्र का 10000 एकड़ फीट पानी दुमका जिला के रानीश्वर क्षेत्र के लिए रिजर्व रखना था। सिंचाई आयोग ने पाया था कि मसानजोर डैम के पानी का जलस्तर हर साल 363 फीट से काफी नीचे आ जाता था, क्योंकि बंगाल डैम से ज्यादा पानी लेता था। मसानजोर डैम से दुमका जिला की सिंचाई के लिए पंप लगे थे, वे हमेशा खराब रहते थे, जबकि इनकी मरम्मत बंगाल सरकार को करनी है। आरोप है कि बंगाल सरकार ने करार के मुताबिक न तो दो नए डैम बनाये, और न बिजली दे रही है और न ही पानी।

1991 में गठित द्वितीय बिहार राज्य सिंचाई आयोग की उपसमिति ने तत्कालीन बिहार राज्य और पड़ोसी राज्यों तथा नेपाल के बीच हुए द्विपक्षीय- त्रिपक्षीय समझौतों पर पुनर्विचार किया था और इनमें संशोधन का सुझाव दिया था। आयोग ने अपनी अनुशंसा में तत्कालीन बिहार (अब झारखंड) सरकार को सुझाव दिया था कि इन समझौतों में इस राज्य के हितों की उपेक्षा हुई है और जनहित में इनपर नए सिरे से विचार होना आवश्यक है।

बता दें कि मसानजोर डैम से मिलने वाली सुविधाओं में झारखंड की उपेक्षा को लेकर भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने झारखंड हाईकोर्ट में एक याचिका दायर कर रखी है, जिसपर पिछली सुनवाई के दौरान अदालत ने झारखंड सरकार को यह बताने को कहा था कि मसानजोर डैम निर्माण के समय हुए समझौते के अनुसार झारखंड के सिंचाई के लिए पानी और जल विद्युत परियोजना का लाभ मिल रहा है या नहीं? हाईकोर्ट ने मौखिक तौर पर टिप्पणी की थी कि अगर ऐसा है तो झारखंड सरकार को स्वयं ही अपने अधिकार की लड़ाई लड़नी चाहिए। कोर्ट ने कहा था कि प्रदेश की सरकार को नींद से जागना चाहिए।

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