जयंती विशेष : याद किये गए भारतीय सिनेमा के पितामह दादा साहेब फाल्के

काली दास पाण्डेय, मुंबई। गोरेगाँव स्थित दादा साहेब फाल्के चित्रनगरी, फिल्म सिटी स्टूडियो में भारतीय सिनेमा के पितामह दादा साहेब फाल्के की जन्म जयंती दिवस (30 अप्रैल) के अवसर पर फिल्मसिटी स्टूडियो प्रबंधन द्वारा एक भव्य समारोह आयेजित किया गया। इस समारोह में भारतीय फिल्म जगत से जुड़ी संस्थाओं के प्रतिनिधियों, बॉलीवुड के नामचीन शख्सियतों व महाराष्ट्र सरकार के प्रशाशनिक पदाधिकारियों के अलावा दादा साहेब फाल्के  के ग्रैंडसन चंद्रशेखर कुशेलकर भी अपने पूरे परिवार के सदस्यों के साथ, अपनी उपस्थिति दर्ज कराई और सभी ने दादा साहेब  फाल्के की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया।

इसी तरह हिन्द माता दादर मुम्बई में दादा साहेब फाल्के प्रतिष्ठान द्वारा आयोजित समारोह में भी दादा साहेब फाल्के  के ग्रैंडसन चंद्रशेखर कुशेलकर भी अपने पूरे परिवार के सदस्यों के साथ जा कर  दादा साहेब  फाल्के की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया। फिल्मकार राजेश मित्तल और दादा साहेब फाल्के प्रतिष्ठान के गजानंद जी ने भी माल्यार्पण किया।

विदित हो कि दादासाहब फाल्के का असल नाम धुंडीराज गोविंद फाल्के था। उनका जन्म 30 अप्रैल, 1870 को महाराष्ट्र के त्रिम्बक (नासिक) में एक मराठी परिवार में हुआ था। दादा साहब ने ना सिर्फ हिंदी सिनेमा की नींव रखी बल्कि बॉलीवुड को पहली हिंदी फिल्म भी दी. दादा साहब का जन्म 30भारतीय सिनेमा के जन्मदाता दादा साहब ने फिल्म इंडस्ट्री में अपने 19 साल के करियर में दादा साहब ने 121 फिल्में बनाई, जिसमें 26 शॉर्ट फिल्में शामिल हैं। दादा साहेब सिर्फ एक निर्देशक ही नहीं बल्कि एक मशहूर निर्माता और स्क्रीन राइटर भी थे।

उनकी आखिरी मूक फिल्म ‘सेतुबंधन’ थी और आखिरी फीचर फिल्म ‘गंगावतरण’ थी। उनका निधन 16 फरवरी 1944 को नासिक में हुआ था। उनके सम्मान में भारत सरकार ने 1969 में ‘दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड’ देना शुरू किया। यह भारतीय सिनेमा का सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार है। सबसे पहले यह पुरस्कार पाने वाली देविका रानी चौधरी थीं। 1971 में भारतीय डाक विभाग ने दादा साहेब फाल्के के सम्मान में एक डाक टिकट भी जारी किया। भारतीय सिनेमा का कारोबार आज करीब डेढ़ अरब का हो चला है और हजारों लोग इस उद्योग में लगे हुए है।

दादा साहब फाल्के ने महज 20-25 हजार की लागत से इसकी शुरुआत की थी। आज भले ही दादा साहेब फाल्के हमारे बीच नहीं है लेकिन आज भी उनका संदेश व उनके संघर्षों को बयां करते पदचिन्ह भारतीय फिल्म जगत के फिल्मकारों  को कर्मपथ पर धैर्य के साथ अग्रसर रहने के लिए सदैव प्रेरित  करता है और युगों युगों तक करता रहेगा।

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