क्या आपकी कुंडली में भी प्रेम विवाह का योग है?

क्या आपका भी प्रेम विवाह सफल हो जाएगा?
प्रेम-विवाह के लक्षण और सफलता!

वाराणसी। बहुत से जातक-जातिका यह जानने को उत्सुक रहते हैं कि उनका प्रेम विवाह (लव-मैरिज) होगा या नहीं? विवाह को लेकर उनके मन में कई प्रकार की शंकाएं होती हैं, कहीं हमारा विवाह असफल तो नहीं होगा या तीसरे व्यक्ति के कारण जीवन में संघर्ष तो शुरू नहीं हो जाएगा? इसके लिए अक्सर मुझे इनबॉक्स में या मोबाइल पर सम्पर्क करते रहते हैं | बच्चों के माता-पिता भी उनके भविष्य को लेकर चिंतित रहते हैं की उनको प्रेम-विवाह की अनुमति दे या न दें।

जब तक दो लोगों की कुंडली में मंगल व शुक्र में आकर्षण नहीं होगा, तब तक उनमें प्रेम नहीं हो सकता। जन्म कुंडली में विवाह कारक ग्रह पंचम के साथ संबंध बनाता हो अथवा 5 का 2, 7, 11 से संबंध हो तो विवाह होता है। परन्तु यदि प्रेम विवाह कारक ग्रह 1, 4, 6, 8, 10, 12 से जुड़ा हो तो प्रेम विवाह नहीं होता है अथवा विवाह कारक एवं अकारक दोनों से संबंध बनता हो तो ऐसा प्रेम विवाह नहीं चलता है।

किसी भी जातक की कुंडली में पंचम भाव से प्रेम संबंधों का पता चलता है जबकि सप्तम भाव विवाह से संबंधित है। शुक्र सप्तम भाव का कारक ग्रह है अतः जब पंचमेश-सप्तमेश एवं शुक्र का शुभ संयोग होता है तो पति-पत्नी दोनों में घनिष्ठ स्नेह संबंध होता है। ऐसी ग्रह स्थिति में प्रेम विवाह भी संभव है।

1) शुक्र सप्तमेश से संबंधित होकर पंचम भाव में बैठा हो तो भी प्रेम विवाह संभव होता है।
2) पंचमेश व सप्तमेश की युति या राशि परिवर्तन हो तो भी प्रेम विवाह संभव होता है।
3) मंगल, शुक्र का परस्पर दृष्टि प्रेम विवाह का परिचायक है।

4) जन्म पत्रिका में मंगल यदि राहू या शनि से युति बना रहा हो तो प्रेम-विवाह की संभावना होती है।
5) जब राहू प्रथम भाव यानी लग्न में हो परंतु सातवें भाव पर बृहस्पति की दृष्टि पड़ रही हो तो व्यक्ति परिवार के विरुद्ध जाकर प्रेम-विवाह की तरफ आकर्षित होता है।
6) जब पंचम भाव में राहू या केतु विराजमान हो तो व्यक्ति प्रेम-प्रसंग को विवाह के स्तर पर ले जाता है।

7) जब राहू या केतु की दृष्टि शुक्र या सप्तमेश पर पड़ रही हो तो प्रेम-विवाह की संभावना प्रबल होती है।
8) पंचम भाव के मालिक के साथ उसी भाव में चंद्रमा या मंगल बैठे हों तो प्रेम-विवाह हो सकता है।
9) सप्तम भाव के स्वामी के साथ मंगल या चन्द्रमा सप्तम भाव में हो तो भी प्रेम-विवाह का योग बनता है।

10) पंचम व सप्तम भाव के मालिक या सप्तम या नवम भाव के स्वामी एक-दूसरे के साथ विराजमान हों तो प्रेम-विवाह का योग बनता है।
11) जब सातवें भाव का स्वामी सातवें में हो तब भी प्रेम-विवाह हो सकता है।
12) शुक्र या चन्द्रमा लग्न से पंचम या नवम हों तो प्रेम विवाह कराते हैं।

13) लग्न व पंचम के स्वामी या लग्न व नवम के स्वामी या तो एक साथ बैठे हों या एक-दूसरे को देख रहे हों तो प्रेम-विवाह का योग बनाते हैं यह।
14) सप्तम भाव में यदि शनि या केतु विराजमान हों तो प्रेम-विवाह की संभावना बढ़ती है।
15) जब सातवें भाव के स्वामी यानी सप्तमेश की दृष्टि द्वादश पर हो या सप्तमेश की युति शुक्र के साथ द्वादश भाव में हो तो प्रेम-विवाह की उम्मीद बढ़ती है।

ज्योतिर्विद रत्न वास्तु दैवज्ञ
पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री
मो. 99938 74848

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