IRES ने नेशनल कुकिस डे के उपलक्ष में मनाया 261वां आयुष समृद्धि इंटरनेशनल वेबीनार

कोलकाता : नेशनल कुकीस डे के उपलक्ष में 261वां आयुष समृद्धि इंटरनेशनल वेबिनार, इंडिपेंडेंट रिसर्च एथिक्स सोसाइटी ने ‘आयुर्वेद कांसेप्ट ऑफ़ कूकीज एंड कुकिंग’ विषय पर आयोजित किया। प्रतिदिन आयुर्वेद के संग मिशन में IRES के साथ झंडू, ईमामी, विश्व आयुर्वेद परिषद् , एमपी मेड फार्मा तथा पूरी ऑर्गेनाइजिंग टीम की सहयोग से कार्यक्रम सफलता पूर्वक संपन्न हुआ। होस्ट डॉ. पवन कुमार शर्मा, प्रेसिडेंट समेत अनेकों आयुर्वेदिक संगठनों के अध्यक्षों ने ईश्वर वंदना से कार्यक्रम की शुरुआत की और कहा कि आज एक और अनोखे विषय के साथ हमलोग आये हैं। उन्होंने कुकीज शब्द का जिक्र किया। बाजार में अनेकों बिस्कुट कुकीज कंपनी आयुर्वेदिक कह कर मार्केटिंग कर रहे हैं, परंतु इसमें अभी आयुर्वेद कंपनी और डॉक्टरों की भूमिका की शुरुआत होना बाकी है।

मॉडरेटर डॉ. ज्योति लखानी, आयुर्वेद पंचकर्मा क्लिनिक, कोलकाता ने अपना वक्तव्य शुरू करते हुए कहा की नेशनल कुकीज डे मनाने की शुरुआत अमेरिका से हुई। वहां पर कुकीज का प्रचलन विशेष उपहार देने से ले कर सामान्य खाने तक है। अब तो हमारे यहाँ भी मार्केटिंग और आसानी से उपलब्ध होने के कारण नाश्ते से लेकर खाने तक में इसका इस्तेमाल शुरू हो गया है। इसका जायका मीठे और नमकीन होने से बच्चों से लेकर बड़ों तक को भाता है। पर इसमें हमे स्वास्थ और आयुर्वेद को समझना जरूरी हैं।

प्रथम वक्ता डॉ. मीरा बी सपारिया, जो कि इनोवेटिव आयुर्वेदिक क्यूज़ीन विशेषज्ञ, प्रोफेसर आरके यूनिवर्सिटी, सूरत से थी। मैडम ने में कहा कि करीबन दो ढाई सौ सालों से कूकीज बनाने का ट्रेंड अमेरिका से शुरू हुआ था। आयुर्वेद और भारतीय पाक शास्त्र की बात करे तो पीलू पीत्थर पाक इत्यादि उल्लेख है। लेकिन सीधे बेकरी का नहीं। हमारे खाद्य पदार्थ जैसे राजस्थान की बाटी भी निर्धूम से बनायीं जाती है। डॉ. शर्मा ने कहा कि इंदौर में उबाल कर फिर सेक कर बनाया जाने वाला रसम है। डॉ. मीरा जी ने वक्त भी जारी रखते हुए कहा कि, बिहार की लिट्टी और समय के साथ कूकीज नए खाद्य पदार्थ में आ गया, आसानी से बनाना, आराम से संग ले जाना, कभी भी और कहीं भी खा लेना।

लेकिन ये कूकीज जो साधारणतह: उपलब्ध है को स्वस्थ तो नहीं कह सकते, क्योंकी हज़म होने में समय लगता है। आइए पहले समझते हैं कि कैसे और किससे कुकीज बनते हैं? मैदा, शुगर, फ़ूड कलर, आर्टिफीसियल प्रेज़रवेटिव, आयल व नमकीन बटर मिक्स। इसमें तो प्रेसेर्वटिवेस तो अनेक देशों में बंद हैं, और साधारणत: पैकेट फ़ूड बनाने के लिए पाम आयल का इस्तेमाल होता है, लेकिन क्या हम जानते हैं कि कनाडा जैसे देसो में पाम आयल अंदर या बाहरी प्रयोग उसेमें भी अनेक पाबंदियां है। आज के ये पैकेट फूड्स बच्चों का पसंदीदा स्वाद है और बच्चों में हम इसे खाने पर पाबन्दी तो नहीं लगा सकते हैं लेकिन उन्हें समझा जरूर सकते हैं।

इस बात पर डॉ. ज्योति जी ने कहा कि हमें अपने बच्चो को पहले पाम आयल इत्यादि हानिकारक चीजों के बारे में पढाये और समझाए। फिर उन्हें कहें कि क्यों खाये इसे? तो इससे वो बार-बार नही मांगेगे, कुछ काम सही हो वो भी भला, डॉ. मीरा जी ने कहा कि बच्चों में बढ़ते रोग जैसे ADHD, मोटापा और भी अनेकों रोगों का कारण ये खाद्य पदार्थ है। यह धीमा जहर है और आज हमे इसको स्वास्थ्य वर्धक बनाना ही पड़ेगा! हमें जानना जरूरी है कि शेल्फ लाइफ बढ़ाने के लिए नाइट्रोजन तकनीक से पैकिंग हो कर ये कुकीज महीनों ठीक रखे जाते हैं! लोगों को समझ आयी तो वे मैदा के जगह पर आटा लिखने लगे, पर क्या यह सही में आटा का इस्तेमाल करते हैं? इन्हे तो सॉफ्टनेस के लिए चेलटिंग एजेंट देने होते हैं।

आज की तारीख में 50% अमेरिकन कुकीज घर में ही बनाते हैं। अपने यहाँ यह पहले से था जैसे गुजरातियों में भाकरी, मारवाड़ीयों में स्वाली इत्यादि तो हममें से भी हेल्थी ऑप्शन वाले कुकीज बनाना चाहे, भले वो छोटे पैमाने पर ही हो। आयुर्वेद के डॉक्टर भी बनाये जैसे वो खुद आयुर्वेदिक नानखटाई बनती है। इसमें देसी गाय का घी, रागी मिलेट नेचुरल आर्गेनिक कोको पाउडर व आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों का इस्तेमाल होता है। प्राकृतिक आर्गेनिक कलर, प्राकृतिक फ़्लवोरस, सुगंधी द्रव्य का आयुर्वेद शास्त्र में उल्लेख है। कपूर, केसर, इलाइची मौसम के अनुसार इंग्रेडिएंट्स, इम्युनिटी कांसेप्ट से गुडुची, यष्टिमधु, कस्टोमीसेड प्रिपरेशन अस्थमा रोगी भिन्न-भिन्न के लिए दवाई से मिक्स और तो और ओवन के जगह पर चारकोल ओवन भट्टी!

हमारे पाक शास्त्र आयुर्वेद में कहा गया है कि जो खाना सूर्य और वायु के स्पर्श से बनता है वो अच्छे से पचता है। इसलिए प्रेशर कुकर, ओवन का कम से कम इस्तेमाल करें। स्वास्थ के लिए हमें कुकीज में जो नेगेटिव या गलत हैं जैसे विरुद्ध अन्न (रॉंग कॉम्बिनेशन) नमक दूध के साथ, मधु को गरम करना ये सब तरीके हटाए, ताकि वो स्वास्थ्यवर्धक हो। अगले वक्ता डॉ. शीतल वि ठक्कर, आयुर्वेद कंसलटेंट और म्यूजिक थेरेपिस्ट मुंबई से, जो खुद आयुर्चेफ अवार्डी हैं, आयुर्वेदिक पानी पूरी के लिए उन्होंने पहले ही कहा हम सही में आयुर्वेदिक कुकीज की नहीं स्वस्थ कुकीज के बारे में चर्चा करेंगे। क्योंकि हम आयुर्वेदिक इंग्रेडिएंट्स हर्ब्स दे कर कुकीज को आयुर्वेदिक नहीं बना सकते हैं पर हम उन्हें स्वस्थ बनाने का तरीका दे सकते हैं। उन्होंने स्वस्थ्य कुकीज जो हम घर पर बना सकते हैं, उसका डेमो वीडियो भी दिखाया।

हममें कोल्ड प्रेस कुकिंग आयल या फ्रोजेन घी लेना है, मैदा की जगह रागी, ज्वार, ओट्स या तो बार्ली, आटा लेना है। चीनी के बदले केन शुगर या फिर आर्गेनिक जग्गेरी (गुड़) पाउडर लें। पूरी पद्धति दिखाते हुए उन्होंने कहा कि पूरी पद्धति को मिठाई की तरह धैर्य वह प्यार से बनाएं। स्वाद और पोस्टिक वर्धन के लिए हम बादाम पाउडर, सीड्स ड्राई फ्रूट्स दे, फ्लेवर में सौफ (वरियरी) भी अच्छा है। हम तवे के ऊपर बना सकते हैं। उन्होंने शार्ट वीडियो में स्वस्थ कुकीज कैसे बनाये दिखाया। बहुत ही स्वादिष्ट और आसान तरीके से बने कुकीज 20 से 40 दिनों तक अच्छे रहते हैं। लेकिन स्वादिस्ट होने के कारण पहले ही खत्म हो जाते हैं! गुड़ पापड़ी की तरह यह बच्चों के लिए पसंदीदा और स्वस्थ विकल्प है।

डॉ. पवन शर्मा ने पूरे कार्यक्रम के दौरान दोनों वक्ताओं को सुनने के बाद कहा कि आज मानो माँ अन्नपूर्णा ने कृपा की। उन्होंने को-होस्ट डॉ. जयेश ठक्कर को वक्तव्य देने के लिए आमंत्रित किया। डॉ. जयेश ठक्कर ने सहजता से कहा कि ये तो आयुर्वेद के रत्न हैं, ऐसे अनेकों हैं, जिन्हें हमें सब तक ले जाना है, जिससे कि आम आदमी को पता चले और वो स्वस्थ रहें। आयुर्वेद का ज्ञान सबके लिए है। हम आयुर्वेद चिकित्सक भी यह समझे कि आयुर्वेद शास्त्र में सिर्फ औषधि ही नहीं आहार-विहार का भी काफी महत्व है। हम अपने रोगियों को सही खाने को बतलाये ताकि वो स्वस्थ रहे। इस तरह के कार्यक्रम और भी आगे हम करते रहे। सभी ने सहमति जताई और अंत में टेक्निकल टीम समदूर जी, शिबानी जी, सुष्मिता जी और डॉ. परीक्षित जी समेत वेबेक्स से जुड़े 30 से अधिक और यूट्यूब पर 50 से भी अधिक लाइव लोगों को धन्यवाद दिया।

प्रोग्राम का लिंक https://www.youtube.com/watch?v=SekWtD6xh7M&t=16s पर उपलब्ध हैं

 

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