उज्जैन। प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में साहित्यकार, संगीतज्ञ एवं पूर्व संयुक्त संचालक, शिक्षा ब्रजकिशोर शर्मा से साक्षात्कार एवं संवाद महत्वपूर्ण कार्यक्रम हुआ। आयोजन की अध्यक्षता कवयित्री सुवर्णा अशोक जाधव, पुणे ने की। मुख्य अतिथि विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। नागरी लिपि परिषद के महामंत्री डॉ. हरिसिंह पाल नई दिल्ली थे।
साहित्यकार ब्रजकिशोर शर्मा ने संवाद के दौरान कहा कि समाज निर्माण में शिक्षक का महत्व और दायित्व बहुत बड़ा है। शिक्षक का स्थान हमेशा बड़ा होता है। भारत के पूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने अपना जन्म दिन शिक्षक दिवस के रूप में अर्पित किया। सभी शिक्षक एक समान हैं। सभी नई पीढ़ी के विकास में अहम भूमिका निभाते हैं। इसी दृष्टि से राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना की स्थापना दो दशक पहले की गई थी। बृजकिशोर शर्मा ने स्वरचित कविता और गीत की प्रस्तुति की।
विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक डॉ. शैलेन्द्र कुमार शर्मा ने कहा कि बृजकिशोर शर्मा ने मालवा की लोक सांगीतिक परम्परा, विशेष तौर पर तुर्रा कलंगी के क्षेत्र में विशेष कार्य किया है। उन्हें यह कला, विरासत अपने पिता से प्राप्त हुई थी। राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना ने अल्प अवधि में विशिष्ट पहचान बना ली है। इस संस्था ने समाज और संस्कृति के प्रायः सभी सरोकारों पर संवाद और विमर्श के लिए लोगों को तैयार किया है।
डॉ. प्रभु चौधरी, राष्ट्रीय संगठन महामंत्री, ने प्रारम्भ में ब्रजकिशोर शर्मा का परिचय दिया। उन्होंने कहा कि ब्रजकिशोर शर्मा सदैव सामाजिक विषयों को लेकर कार्य करते रहे हैं।

साक्षात्कार में ब्रजकिशोर शर्मा के प्रारंभिक जीवन, संस्कार और प्रेरणा आदि को लेकर डॉ. रश्मि चौबे, गाजियाबाद, डॉ. प्रभु चौधरी आदि ने प्रश्न किए। रूबरू चर्चा के समय राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के पदमचंद गांधी, डॉ. शहनाज शेख, श्वेता मिश्रा, डॉ. दक्षा जोशी, डॉ. मुमताज पठान, डॉ. अनसूया अग्रवाल, डॉ. अरुणा सराफ आदि उपस्थित रहे। संचालन डॉ. रश्मि चौबे गाजियाबाद ने किया। आभार श्वेता मिश्रा बरेली ने माना।
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