श्रीराम एवं रामकथा : लोक संस्कृति से वैश्विक प्रभाव तक पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न

उज्जैन। सम्राट विक्रमादित्य विश्वविद्यालय उज्जैन की हिंदी अध्ययनशाला में श्रीराम एवं रामकथा : लोक से विश्व व्याप्ति तक पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी के मुख्य वक्ता मध्यप्रदेश तीर्थ स्थान एवं मेला प्राधिकरण, भोपाल के मुख्य कार्यपालन अधिकारी, डॉ. राजेश श्रीवास्तव थे।

अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने की। संगोष्ठी के विशिष्ट अतिथि सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक ओस्लो नॉर्वे, प्रो. गीता नायक, प्रो. जगदीश चंद्र शर्मा, डॉ. सी.एल. शर्मा, रतलाम ने विचार व्यक्त किए।

दीपावली पर्व पर आयोजित इस संगोष्ठी में डॉ. राजेश श्रीवास्तव को अंगवस्त्र, साहित्य और पुष्पमाल अर्पित कर उनका सारस्वत सम्मान किया गया।

रामायण केंद्र भोपाल के निदेशक डॉ. राजेश श्रीवास्तव ने अपने मुख्य वक्तव्य में कहा कि वाल्मीकि के बाद तुलसीदास जी ने रामकथा को एक नया स्वरूप दिया है। रामायण के ऐसे बहुत से पात्र है जिन्होंने राम को नहीं देखा, लेकिन यदि उन पात्रों को रामकथा ने निकाल दिया जाए तो रामकथा अधूरी रह जाएगी।

रामकथा के लोक प्रसार में बुंदेलखंड की भूमि का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। विविध अंचलों के लोग आज भी अपनी संस्कृति में रामकथा को आधार बनाए हुए हैं। विवाह के शगुन राम- सीता के विवाह पद्धति के अनुसार ही कराए जाते हैं। रामकथा सिर्फ भारतीय कथा नहीं है अपितु यह संपूर्ण विश्व की कथा बन गई है।

अध्यक्षता करते हुए विभागाध्यक्ष प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि श्रीराम कण कण से जन मन तक व्याप्त हैं। उनकी कथा का विश्व सभ्यता पर गहरा प्रभाव दिखाई देता है। किसी भी समाज में गहराई तक व्याप्त गुणों का के समावेश से संस्कृति बनती है।

श्रीराम कथा भारत की लोक संस्कृति को आधार देती है। हमारी मूल्य चेतना का विकास बिना संस्कृति के संभव नहीं है। लोक संस्कृति में श्री राम का प्रतिबिंबन तीन रूपों में हुआ है। वे विविध अंचलों में बसे लोक और जनजातीय समुदायों की स्मृति में बसे हैं।

श्रीराम के बिना जीवन के विविध संस्कार तथा पर्वोत्सव अधूरे हैं। लोक जीवन में विविध कर्म करते हुए जीविका का निर्वाह करने वाले लोगों के साथ श्री राम उपस्थित दिखाई देते हैं।

प्रवासी लेखक सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक, नॉर्वे ने अपने उद्बोधन में कहा कि नॉर्वे में श्रीराम के कई मंदिर हैं और यहाँ के लोग रामकथा में बहुत आस्था रखते हैं। उन्होंने स्वयं हनुमान चालीसा का नॉर्वेजियन भाषा में अनुवाद किया है, जिसका वहाँ के लोग पाठ करते हैं। नॉर्वे के लोग रामायण, गीता आदि का पाठ करते हैं। पश्चिम में जो परिवार टूटने की समस्या बढ़ती जा रही है वह रामचरित मानस से जुड़ कर ही कम की जा सकती है।

प्रो. जगदीशचंद्र शर्मा ने कहा कि भारतीय साहित्य की यह विशेषता है कि वाल्मीकि और वेदव्यास जैसे महान कवियों ने रामायण और महाभारत की कथा को रचा, उनसे प्रेरित हो कर फिर बाद के कवियों ने अनेक महत्वपूर्ण रचनाएँ कीं। नारद स्वयं वाल्मीकि को यह कथा सुनाते हैं, इसलिए हम समूची मूल रामकथा का स्रोत नारद को माने तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।

इस अवसर पर अतिथियों द्वारा प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा को प्रतीक चिह्न, पुस्तक एवं पुष्पमाल अर्पित कर उनके जन्मदिवस पर सारस्वत सम्मान किया गया। डॉ. राजेश श्रीवास्तव द्वारा उन्हें रामायण के संदर्भ में रक्षायन पुस्तक अर्पित की गई।

कार्यक्रम में डॉ. बी.एल. मालवीय शाजापुर की पुस्तक नवगीतकार डॉक्टर विष्णु विराट : व्यक्ति और अभिव्यक्ति का लोकार्पण अतिथियों द्वारा किया गया। इस अवसर पर अनेक साहित्यकार, शिक्षाविद, शोधार्थी एवं विद्यार्थी उपस्थित थे।

कार्यक्रम का संचालन शोधार्थी पूजा परमार ने किया और आभार प्रदर्शन डॉ. सी.एल. शर्मा रतलाम ने किया।

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