79वें संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत का आगाज – पड़ोसी मुल्क को खरी खरी व संयुक्त राष्ट्र में सुधार की बात

भारत का यूएन की थीम, किसी को पीछे ना छोड़ने का पुरजोर समर्थन- वैश्विक शांति समृद्धि का आगाज
संयुक्त राष्ट्र द्वारा वैश्विक आतंकवादियों को प्रतिबंधित करने व इसके सभी रूपों अभिव्यक्तियों का दृढ़ता से विरोध की हुंकार भरना सराहनीय- एड. के.एस. भावनानी

एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र। वैश्विक स्तर पर आज पूरी दुनियाँ में भारत की छवि वैश्विक गुरु, बहुमुखी प्रतिभाओं का धनी, शांति दूत व विकसित देश की ओर अग्रसर, पूरी दुनियाँ में सबका साथ सबका विकास के प्रणेता की बनती जा रही है, यही कारण है कि आज जब भारत बोलता है तो पूरी दुनियाँ गंभीरता से ध्यान देकर सुनती है, व उसके सकारात्मक मायने निकालकर उस पर डिबेट करती है, उसे मुख्य विषय में शामिल करने की चेष्टा की जाती है, जिसे हमने शनिवार दिनांक 28 सितंबर 2024 को देर रात्रि या यूं कहें कि दिनांक 29 सितंबर 2024 को सुबह भोर संयुक्त राष्ट्र महासभा के जनरल असेंबली में भारत के विदेश मंत्री ने अनेक मुद्दों पर अपने विचार रखते हुए पड़ोसी मुल्क, जिसने एक दिन पहले ही कश्मीर राग अलापा था, उसे ऐसी हुंकार भरी व उसकी एक-एक कही उसकी बातों को ऐसा धोया कि दुनिया सुनते रह गई।

भारत ने वैश्विक चुनौतियों से लेकर कोविड महामारी, रूस यूक्रेन युद्ध से लेकर इजरायल गाजा युद्ध के प्रभाव पर जोर दिया, व पड़ोसी मुल्क की आतंकवाद नीति की आलोचना करते हुए टिकाऊ विकास और बहूपक्षवाद में सुधार की आवश्यकता पर जोर दिया व भारत के विकास मॉडल को साझा करने का प्रस्ताव भी रखा। चूँकि भारत का यूएन की थीम, किसी को पीछे ना छोड़ने का पुरजोर समर्थन, वैश्विक शांति व समृद्धि का आगाज किया व संयुक्त राष्ट्र द्वारा वैश्विक आतंकवादियों को प्रतिबंधित करने व इसके सभी रूपों अभिव्यक्तियों का दृढ़ता से विरोध की हुंकार भरना सराहनीय है। इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आलेख के माध्यम से चर्चा करेंगे, 79वें संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत का आगाज, पढ़ोसी मुल्क को खरी-खरी व संयुक्त राष्ट्र में सुधार की बात कही।

साथियों बात अगर हम शनिवार दिनांक 28 सितंबर 2024 को देर रात विदेश मंत्री द्वारा यूएन महासभा को संबोधित करने की करें तो, उन्होंने कहा कि आज की दुनियाँ में, संवाद कठिन हो गया है, और सहमति तो उससे भी कठिन, यह बैठक बहुत कठिन दौर में हो रही है, यूक्रेन का युद्ध तीसरे वर्ष में चल रहा है और गाजा युद्ध के भी व्यापक और भीषण नतीजे हो रहे हैं। उधर वैश्विक दक्षिण में, विकास योजनाएँ पटरी से उतर गई हैं और टिकाऊ विकास लक्ष्य पीछे की तरफ जा रहे हैं। उन्होंने कहा, पक्षपातपूर्ण व्यापार प्रथाओं ने रोजगारों के लिए जोखिम उत्पन्न कर दिया। प्रोद्योगिकियों में उन्नति लम्बे समय से आशा की स्रोत रही है, मगर अब वो समान रूप से चिन्ता का एक कारक भी बन गई है।

जलवायु परिवर्तन की घटनाएँ अब कहीं अधिक सघनता और जल्दी-जल्दी हो रहे हैं। खाद्य सुरक्षा और स्वास्थ्य सुरक्षा भी विशाल चिन्ताओं के मुद्दे हैं।उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के समय विचार-विमर्श, विश्व शान्ति सुनिश्चित करने के इर्दगिर्द केन्द्रित थी, जो वैश्विक समृद्धि के लिए एक पूर्व आवश्यकता है। आज हम शान्ति व समृद्धि दोनों को ही समान रूप से खतरे में पड़ा हुआ पाते हैं और ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि भरोसा दरक गया है और प्रक्रियाएँ बिखर चुकी हैं। देशों ने, अन्तरराष्ट्रीय व्यवस्था को योगदान करने की तुलना में, कहीं अधिक उसका शोषण किया है। जिससे वो निर्बल हो गई है उन्होंने कहा कि यह स्थिति आज हर एक चुनौती और हर एक संकट में नजर आती है। इसलिए बहुपक्षवाद में सुधार करना अनिवार्य हो गया है।

साथियों बात अगर हम संबोधन में पड़ोसी देश के एक दिन पहले के अपने संबोधन में कश्मीर राग अलापने पर खरा खरा जवाब देने की करें तो, उन्होंने बीते दिन पाकिस्तान के बेतुके बयान का जवाब दिया। उन्होंने पड़ोसी मुल्क के पीएम को उनके कश्मीर राग के लिए जमकर लताड़ा। उन्होंने कहा कि हमने कल इसी मंच से कुछ अजीबोगरीब और विचित्र बातें सुनी। मैं भारत की स्थिति को बहुत स्पष्ट कर देना चाहता हूं। पाकिस्तान की सीमा पार आतंकवाद की नीति कभी सफल नहीं होगी। उसे सजा से बचने की कोई उम्मीद भी नहीं करनी चाहिए। इसके विपरीत कार्रवाई के निश्चित रूप से परिणाम होंगे। हमारे बीच हल किया जाने वाला मुद्दा केवल पाकिस्तान की ओर से अवैध रूप से कब्जाए गए भारतीय क्षेत्र को खाली करना और निश्चित रूप से आतंकवाद के साथ पाकिस्तान के लंबे समय से चले आ रहे लगाव को छोड़ना है। पाकिस्तान के लिए बोले- यह केवल कर्म है। उन्होंने कहा कि कई देश अपने नियंत्रण से परे परिस्थितियों के कारण पीछे छूट जाते हैं, लेकिन कुछ देश जानबूझकर ऐसे फैसले लेते हैं, जिनके परिणाम विनाशकारी होते हैं।

इसका एक बेहतरीन उदाहरण हमारा पड़ोसी देश पाकिस्तान है। दुर्भाग्य से उनके कुकृत्यों का असर दूसरों पर भी पड़ता है, खास तौर पर पड़ोस पर। जब यह राजनीति अपने लोगों में इस तरह की कट्टरता भरती है। इसकी जीडीपी को केवल कट्टरता और आतंकवाद के रूप में इसके निर्यात के संदर्भ में मापा जा सकता है। आज हम देखते हैं कि दूसरों पर जो बुराइयां लाने की कोशिश की गई, वे उसके अपने समाज को निगल रही है। यह दुनियाँ को दोष नहीं दे सकता। यह केवल कर्म है। दूसरों की जमीनों पर लालच करने वाले एक बेकार देश को उजागर किया जाना चाहिए और उसका मुकाबला किया जाना चाहिए। आतंकवाद दुनियाँ की हर तरह की भलाई के खिलाफ है। इसके सभी रूपों और अभिव्यक्तियों का दृढ़ता से विरोध किया जाना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र द्वारा वैश्विक आतंकवादियों को प्रतिबंधित करने में भी राजनीतिक कारणों से वास्तविक बाधा नहीं डाली जानी चाहिए।

साथियों बात अगर हम विदेश मंत्री के यूएन संबोधन में संयुक्त राष्ट्र में की बात की करें तो, दुनियाँ बहुत बदल गई है। उन्होंने कहा, वैश्विक व्यवस्था स्वाभाविक रूप से बहुलवादी और विविधतापूर्ण है। संयुक्त राष्ट्र की शुरुआत 51 सदस्यों के साथ हुई थी, अब हम 193 हैं। दुनियाँ बहुत बदल गई है और इसलिए इसकी चिंताएं और अवसर भी बदल गए हैं। दोनों को संबोधित करने और व्यवस्था को मजबूत करने के लिए, यह आवश्यक है कि संयुक्त राष्ट्र आम जमीन खोजने के लिए केंद्रीय मंच बने और यह निश्चित रूप से काल बाह्य बने रहकर नहीं हो सकता। जब हमारे समय के प्रमुख मुद्दों पर निर्णय लेने की बात आती है तो दुनियाँ के बड़े हिस्से को पीछे नहीं छोड़ा जा सकता। एक प्रभावी, कुशल और अधिक प्रतिनिधि संयुक्त राष्ट्र, समकालीन युग में उद्देश्य के लिए उपयुक्त संयुक्त राष्ट्र आवश्यक है।

इसलिए आइए हम इस यूएनजीए सत्र से एक स्पष्ट संदेश दें- हम पीछे नहीं रहने के लिए दृढ़ हैं। एक साथ आकर, अनुभव साझा करके, संसाधनों को एकत्रित करके और अपने संकल्प को मजबूत करके, हम दुनिया को बेहतर के लिए बदल सकते हैं। हम यहां कठिन समय में जुटे हैं। दुनियाँ अभी भी कोविड महामारी के कहर से उबर नहीं पाई है। यूक्रेन में युद्ध तीसरे वर्ष में प्रवेश कर चुका है। गाजा में संघर्ष व्यापक रूप ले रहा है। पूरे ग्लोबल साउथ में विकास योजनाएं पटरी से उतर गई है और टिकाऊ विकास लक्ष्य पीछे छूट रहे हैं। लेकिन और भी बहुत कुछ है। अनुचित व्यापार प्रथाओं से नौकरियों को खतरा है, ठीक वैसे ही जैसे अव्यवहार्य परियोजनाओं से कर्ज का स्तर बढ़ता है।

कोई भी संपर्क जो संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का उल्लंघन करता है, रणनीतिक अर्थ प्राप्त करता है। खासकर तब जब इसमें साझा प्रयास न हो। लंबे समय से आशा का स्रोत रही टेक्नॉलजी प्रोग्रेस अब चिंता का विषय भी बन गई है। जलवायु संबंधी घटनाएं अधिक तीव्रता और आवृत्ति के साथ होती हैं। खाद्य सुरक्षा उतनी ही चिंताजनक है जितनी स्वास्थ्य सुरक्षा। सच में, दुनिया विक्षुब्ध, ध्रुवीकृत और निराश है। बातचीत मुश्किल हो गई है; समझौते और भी मुश्किल। यह निश्चित रूप से वह तो नहीं है जो संयुक्त राष्ट्र के संस्थापक हमसे चाहते थे। लगभग आठ दशक पहले, संयुक्त राष्ट्र के गठन की दिशा में पहला कदम यहीं, डंबर्टन ओक्स में उठाया गया था। उसके बाद याल्टा सम्मेलन में परिष्कृत होकर, उन्हें अंततः सैन फ्रांसिस्को में मंजूरी दी गई। उस युग की बहसें इस बात पर केंद्रित थीं कि विश्व शांति कैसे सुनिश्चित की जाए, जो वैश्विक समृद्धि के लिए एक पूर्वापेक्षा है।

आज हम शांति और समृद्धि दोनों को समान रूप से खतरे में पाते हैं और ऐसा इसलिए है क्योंकि विश्वास खत्म हो गया है और प्रक्रियाएं टूट गई हैं। देशों ने अंतरराष्ट्रीय प्रणाली में जितना निवेश किया है, उससे कहीं अधिक निकाला है और इस प्रक्रिया में इंटरनैशल सिस्टम को कमजोर कर दिया है। हम इसे हर चुनौती और हर संकट में स्पष्ट रूप से देखते हैं। इसलिए, बहुपक्षवाद (मल्टिलैटरलिजम) में सुधार एक अनिवार्यता है। इस सत्र के विषय से इस आह्वान की तात्कालिकता उजागर होती है। किसी को पीछे न छोड़ना शांति को बढ़ावा देना, सतत विकास सुनिश्चित करना और मानवीय गरिमा को मजबूत करना है। संयुक्त राष्ट्र ये सब नहीं कर सकता जब विभाजन, संघर्ष, आतंकवाद और हिंसा का सामना हो, न ही इसे आगे बढ़ाया जा सकता है यदि भोजन, ईंधन और उर्वरक तक पहुंच खतरे में हो।

जब बाजारों पर कब्जा करने में संयम की कमी होती है, तो यह दूसरों की आजीविका और सामाजिक ताने-बाने को नुकसान पहुंचाता है। विकसित देशों द्वारा क्लाइमेट एक्शन की जिम्मेदारियों से बचना विकासशील देशों की विकास संभावनाओं को कमजोर करता है। वास्तव में, जब संसाधन की कमी टिकाउ विकास लक्ष्यों की प्राप्ति को सीमित करती है, तो केवल अर्थव्यवस्था ही नहीं बल्कि मानवीय गरिमा भी खतरे में पड़ती है। यदि दुनिया ऐसी स्थिति में है, तो इस निकाय को खुद से पूछना चाहिए- यह कैसे हुआ? समस्याएं संरचनात्मक कमियों, राजनीतिक गणनाओं, निर्लज्ज स्वार्थ और हां, पीछे छूट गए लोगों के प्रति उपेक्षा के संयोजन से उत्पन्न होती हैं।

एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी : संकलनकर्ता, लेखक, कवि, स्तंभकार, चिंतक, कानून लेखक, कर विशेषज्ञ

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि 79वें संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत का पड़ोसी देश को खरी-खरी व संयुक्त राष्ट्र में सुधार की बात। भारत का यूएन की थीम, किसी को पीछे ना छोड़ने का पुरजोर समर्थन वैश्विक शांति समृद्धि का आगाज। संयुक्त राष्ट्र द्वारा वैश्विक आतंकवादियों को प्रतिबंधित करने व इसके सभी रूपों अभिव्यक्तियों क़ो दृढ़ता से विरोध की हुंकार भरना सराहनीय है।

(स्पष्टीकरण : इस आलेख में दिए गए विचार लेखक के हैं और इसे ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया गया है।)

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