इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स ने किया दूसरे रेल इंडिया सम्मेलन का आयोजन

सम्मेलन में अत्याधुनिक नवाचार और राष्ट्रीय रेल योजना 2030 के कार्यान्वयन के तौर-तरीकों पर हुई चर्चा

कोलकाता। इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स (आईसीसी) ने दूसरे रेल इंडिया सम्मेलन का आयोजन किया, जिसका विषय ‘रेलवेज इन मोशन : विजन 2030 टू विकसित भारत 2047’ था। गति शक्ति विश्वविद्यालय (भारत सरकार के रेल मंत्रालय के अधीन केंद्रीय विश्वविद्यालय) के कुलपति प्रोफेसर डॉ. मनोज चौधरी ने मुख्य अतिथि के रूप में कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय, भारत सरकार के संयुक्त सचिव डॉ. सुरेन्द्र कुमार अहीरवार; आईसीसी के चेयरमैन व जिंदल स्टेनलेस के प्रबंध निदेशक अभ्युदय जिंदल; राष्ट्रीय रेलवे समिति आईसीसी के चेयरमैन और ज्यूपिटर वैगंस के निदेशक विकाश लोहिया जैसे प्रख्यात नीति-निर्माताओं, उद्योग जगत के नेताओं व प्रौद्योगिकी विशेषज्ञों समेत विभिन्न प्रमुख हितधारकों ने सम्मेलन में भाग लिया और आधुनिक, वहनीय व मजबूत रेलवे ईकोसिस्टम बनाने के बारे में अपने विचार साझा किए।

आईसीसी के चेयरमैन और जिंदल स्टेनलेस के प्रबंध निदेशक अभ्युदय जिंदल ने स्वागत संबोधन में कहा, “मुझे यह जानकर बहुत खुशी हुई कि आज, भारतीय रेलवे वित्तीय वर्ष 2024 तक 2.56 लाख करोड़ रुपये का राजस्व अर्जित कर चुका है। भारतीय रेलवे 132,000 किलोमीटर लंबे दुनिया के चौथे बड़े रेल नेटवर्क का प्रबंधन करता है। रेलवे से 12 लाख लोगों को रोजगार मिलता है। भारत में सबसे अधिक रोजगार देने वाले क्षेत्रों में भारतीय रेलवे दूसरे स्थान पर है।

भारत वर्ष 2047 तक 40 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था वाला देश बनने की ओर तेजी से अग्रसर है, ऐसे में विनिर्माण उद्योग, व्यापार और आवश्यक सामग्रियों की ढुलाई में तेज वृद्धि होने की उम्मीद है। इस दौरान कई औद्योगिक क्षेत्र स्थापित किए जाएंगे और नए विनिर्माण स्थलों के बीच परिहवन की आवश्यकता होगी। इसके अतिरिक्त, माल ढुलाई में रेल परिवहन की हिस्सेदारी बढ़ाने पर सरकार के ध्यान केंद्रित करने से इस प्रयास में मदद मिलेगी।”

रेलवे उद्योग के वर्तमान रूझानों और भविष्य के परिदृश्य पर बात करते हुए, गतिशक्ति विश्वविद्यालय, भारत सरकार के कुलपति प्रोफेसर (डॉ.) मनोज चौधरी ने कहा, “भौतिक बुनियादी ढांचे के संदर्भ में हम जो करने जा रहे हैं केवल उससे रेलवे का आधुनिकीकरण नहीं होगा, बल्कि नई सोच की वजह से बहुत अधिक विकास होगा। विकसित भारत दृष्टिकोण से जुड़ीं प्राथमिक चीजों में से एक चीज यह है कि हमारा विकास समावेशी होना चाहिए।

इसके दो पहलू हैं- यात्रियों का सफर और माल ढुलाई। महत्वपूर्ण बात यह है कि यात्रियों के सफर को अधिक सुविधाजनक, किफायती, सुलभ बनाने के लिए बहुत सी चीजें हो रही हैं, जिनमें वंदे भारत जैसी नई ट्रेनों की शुरूआत शामिल है और 100 से अधिक ट्रेनों का संचालन पहले ही शुरू हो चुका है।

इसके अलावा सामान्य श्रेणी की बोगियों का वंदे भारत मानकों के अनुरूप रूपांतरण और स्टेशनों का पुनर्विकास भी हो रहा है। दूसरा पहलू माल ढुलाई है। यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे आर्थिक विकास होता है – घरेलू कीमतें नियंत्रण में रहती हैं और देश की निर्यात प्रतिस्पर्धा क्षमता का भी ख्याल रखा जाता है। हालांकि आज भी, हमारे पास आधुनिक प्रौद्योगिकी को अपनाने और उसका लाभ उठाकर आगे बढ़ने का अवसर है।

आज भी, हमारे देश में मालगाड़ी के एक डिब्बे में जितना वजन ले जाया जा सकता है, उससे अधिक ले जाया जाता है। दुनियाभर में हमेशा संभावनाएं और उदाहरण मौजूद रहते है, सबसे बड़ा उदाहरण संभवत: पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में देखने को मिलेगा, जहां मालगाड़ी के एक डिब्बे में 45 टन वजन ले जाया जा सकता है। फिलहाल हम इसमें काफी पीछे हैं। लिहाजा, इस संबंध में कुछ कर दिखाने के लिए संभावनाएं हैं।”

वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय, भारत सरकार के संयुक्त सचिव डॉ. सुरेन्द्र कुमार अहीरवार ने कहा, “भारत में प्रतिभाशाली लोगों की भरमार है। एक चीज जो नहीं हो रही वह है ज्ञान का आदान-प्रदान। हम इस पर काम कर रहे हैं। इसके अलावा उद्योग की अच्छी समझ कायम करने की भी जरूरत है। हालांकि हमने अपनी समझ के आधार पर कई पहल शुरू की हैं, जिनमें पीएम गति विश्वविद्यालय (जीएसवी) जैसे विश्वविद्यालय खोलना और भारत के विश्वविद्यालयों में आपूर्ति श्रृंखला, लॉजिस्टिक्स परिवहन पर आधारित 105 पाठ्यक्रम शुरू करना शामिल हैं। आज हमें नए ज्ञान की आवश्यकता है, जो अनुसंधान व विकास से हासिल होगा।

अनुसंधान शायद नहीं हो रहे या जो हो रहे हैं उनका उन समस्याओं से कोई लेना-देना नहीं है, जिनका हम समाज, उद्योग या अर्थव्यवस्था के रूप में सामना कर रहे हैं। इसलिए शायद सोच में बदलाव होना चाहिए और मुझे लगता है कि इसमें जीएसवी जैसे संस्थान अग्रणी भूमिका निभा सकते हैं। मेरा मानना है कि अनुसंधान विकास के लिए होने चाहिए। लिहाजा, अनुसंधान और विकास के बजाय विकास के लिए अनुसंधान की आवश्यकता है।”

सम्मेलन में सुरक्षा और वहनीयता को प्राथमिकता मानते हुए यात्रियों के अनुभव बेहतर बनाने की रणनीतियों पर चर्चा हुई। सम्मेलन के अंत में उद्योग हितधारकों ने भारतीय रेलवे को वैश्विक रेल प्रणालियों के लिए एक मानक बनाने में सहयोग प्रदान करने की प्रतिबद्धता जताई।

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