New thermal power projects after 2032 are a loss-making proposition, renewables a reliable option

2032 के बाद नए थर्मल पावर प्रोजेक्ट घाटे का सौदा, रिन्यूएबल भरोसेमंद विकल्प

Climate कहानी, कोलकाता | 30 अक्टूबर 2025  भारत के बिजली क्षेत्र में एक ऐतिहासिक बदलाव की शुरुआत हो चुकी है। ऊर्जा थिंक-टैंक Ember की नई रिपोर्ट “Coal’s Diminishing Role in India’s Electricity Transition” के अनुसार, 2032 के बाद नए थर्मल पावर प्रोजेक्ट्स आर्थिक रूप से घाटे का सौदा साबित होंगे। इसकी वजह है रिन्यूएबल ऊर्जा की बढ़ती क्षमता और गिरती कोयला उपयोग दर

📉 कोयले की घटती भूमिका

  • National Electricity Plan (NEP) 2032 के लक्ष्यों को पूरा करने पर नई कोयला क्षमता की आवश्यकता नहीं रहेगी
  • Plant Load Factor (PLF) 2024-25 में 69% से घटकर 2031-32 में 55% तक गिरने की संभावना
  • 10% नई कोयला यूनिटें पूरी तरह बेकार, और 25% आधी क्षमता पर चलेंगी
  • कोयला बिजली की लागत 25% तक बढ़ेगी, जिससे DISCOMs पर बोझ बढ़ेगा

New thermal power projects after 2032 are a loss-making proposition, renewables a reliable option

भारत के बिजली क्षेत्र में एक बड़ा मोड़ आ गया है। नई रिपोर्ट बताती है कि 2032 के बाद अगर देश ने और कोयला बिजलीघर जोड़े, तो वो “घाटे का सौदा” साबित होंगे। क्योंकि तब तक देश की ऊर्जा ज़रूरतें — अगर मौजूदा योजनाएँ पूरी हुईं, सौर, पवन और बैटरी स्टोरेज से ही पूरी की जा सकती हैं।

यह निष्कर्ष सामने आया है ऊर्जा थिंक-टैंक Ember की नई रिपोर्ट “Coal’s Diminishing Role in India’s Electricity Transition” में।

🔋 रिन्यूएबल: अब सस्ती और भरोसेमंद

  • Firm and Dispatchable Renewable Energy (FDRE) — सौर/पवन + बैटरी स्टोरेज — अब 24×7 बिजली देने में सक्षम
  • टैरिफ ₹4.3 से ₹5.8 प्रति यूनिट के बीच
  • सोडियम-आयन बैटरियाँ बिना क्रिटिकल मिनरल के बन रही हैं, जो लंबे समय तक चलती हैं
  • भारत बैटरी मैन्युफैक्चरिंग में आत्मनिर्भरता की दिशा में बढ़ रहा है

The sun of renewable energy has risen in the energy sector; the 'Surya Ghar Yojana' has accelerated the pace, but the road remains long.

रिपोर्ट के मुताबिक, अगर भारत अपने National Electricity Plan (NEP) 2032 के सौर, पवन और स्टोरेज के लक्ष्यों को पूरा कर लेता है, तो नई कोयला क्षमता जोड़ने की कोई ज़रूरत नहीं रहेगी, न भरोसेमंद बिजली के लिए, न पीक डिमांड के लिए।

Ember के सीनियर एनर्जी एनालिस्ट नेशविन रोड्रिग्स कहते हैं, “भारत का पावर सेक्टर अब ट्रांज़िशन के नए दौर में है। जैसे-जैसे सोलर और स्टोरेज सस्ते होते जा रहे हैं, कोयले की भूमिका घट रही है। मौजूदा योजना से ज़्यादा कोयला बनाना अब न ज़रूरी है, न आर्थिक।”

💸 कोयला बिजली की बढ़ती लागत

राज्य मौजूदा टैरिफ (₹/यूनिट) अनुमानित लागत 2032 (₹/यूनिट)
बिहार ₹6.00 ₹7.25
मध्य प्रदेश ₹5.85 ₹7.10
  • ₹4 प्रति यूनिट से ज़्यादा हिस्सा फिक्स्ड कॉस्ट का
  • कम PLF के कारण कोयला प्लांट्स “stranded assets” बन सकते हैं

New thermal power projects after 2032 are a loss-making proposition, renewables a reliable option

0% नई यूनिटें बंद पड़ी रहेंगी, 25% आधी क्षमता पर चलेंगी

रिपोर्ट में 2031-32 के वित्तीय वर्ष के लिए एक least-cost operations model के ज़रिए आकलन किया गया है।

अगर भारत ने अपने रिन्यूएबल और स्टोरेज लक्ष्यों को हासिल कर लिया, तो:

  • 2024-25 में जो नई कोयला यूनिट्स बनेंगी, उनमें से 10% 2032 तक पूरी तरह बेकार (unutilised) हो जाएँगी,
  • और करीब 25% यूनिट्स आधी क्षमता पर चलेंगी।

इसकी वजह है गिरती Plant Load Factor (PLF), जो 2024-25 में 69% से घटकर 2031-32 में 55% रह जाएगी। कम उपयोग का मतलब है ज़्यादा लागत। रिपोर्ट के मुताबिक, 2032 तक कोयले से मिलने वाली बिजली 25% महँगी हो जाएगी क्योंकि फिक्स्ड कॉस्ट और अक्षम संचालन (inefficiency) दोनों बढ़ेंगे।

🧠 नीति सुझाव: समझदारी की ज़रूरत

Ember की रिपोर्ट में तीन प्रमुख सुझाव दिए गए हैं:

  1. बैटरी स्टोरेज प्रोजेक्ट्स को तेज़ी से लागू करना
  2. पुराने थर्मल प्लांट्स को लचीला बनाने के लिए रेट्रोफिट करना
  3. ग्रिड और रिज़र्व सिस्टम को मज़बूत करना, ताकि सौर और पवन को बेहतर तरीके से जोड़ा जा सके
Coal has become old, now renewable is cheaper

Ember की रिपोर्ट बताती है कि अब भारत में Firm and Dispatchable Renewable Energy (FDRE) — यानि सौर या पवन के साथ बैटरी स्टोरेज, बिजली का सबसे भरोसेमंद और लचीला (flexible) विकल्प बन चुका है। इन प्रोजेक्ट्स के टैरिफ अब ₹4.3 से ₹5.8 प्रति यूनिट के बीच हैं, और ये लगातार 24×7 उपलब्धता के मानकों को पूरा कर रहे हैं।

🧭 कहानी का सार

  • पहले सवाल था: क्या रिन्यूएबल भरोसेमंद है?
  • अब सवाल है: जब रिन्यूएबल सस्ता और भरोसेमंद दोनों है, तो कोयले पर क्यों टिके रहें?
  • 2032 तक भारत की बिजली ज़रूरतें पूरी तरह क्लीन एनर्जी से पूरी हो सकती हैं
  • नई कोयला परियोजनाएँ अब निवेश नहीं, जोखिम बन रही हैं

भारत की ऊर्जा कहानी अब बदल रही है। पहले सवाल था — क्या रिन्यूएबल भरोसेमंद है? अब सवाल है — जब रिन्यूएबल भरोसेमंद और सस्ता दोनों है, तो कोयले पर क्यों टिके रहें?

New thermal power projects after 2032 are a loss-making proposition, renewables a reliable option

 

2032 तक भारत के पास इतनी क्लीन और किफायती बिजली क्षमता होगी कि कोयला सिर्फ़ एक “बैकअप” भूमिका में रह जाएगा। लेकिन अगर आज भी नई कोयला परियोजनाएँ मंज़ूर की गईं, तो आने वाले दशक में वे घाटे और प्रदूषण दोनों का बोझ बनेंगी।

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