Climate कहानी, कोलकाता। 24 अक्टूबर 2025 : भारत में इस साल का मॉनसून औसतन 108% वर्षा के साथ ‘सामान्य से अधिक’ रहा, लेकिन यह राहत नहीं, बल्कि एक गंभीर जलवायु संकेत है। भारत मौसम विभाग (IMD) के अनुसार, यह लगातार दूसरा साल है जब मॉनसून ने सामान्य से अधिक बारिश दी, लेकिन बारिश के दिन घटे हैं और तीव्रता बढ़ी है।
भारत में इस साल का मॉनसून औसतन 108% वर्षा के साथ ‘above normal’ रहा, लेकिन यह राहत नहीं, बल्कि चिंता का संकेत है। बारिश के दिन घट रहे हैं, लेकिन जब होती है, तो अत्यधिक और विनाशकारी होती है। यह ट्रेंड अब लगातार दूसरे साल दर्ज किया गया है।
📊 बारिश का असंतुलन: एक देश, दो कहानियाँ
- 36 मौसम ज़ोन में से:
- 12 में ज़्यादा बारिश
- 2 में बहुत ज़्यादा
- 19 में सामान्य
- 3 में कम बारिश
बारिश नहीं, अब ‘एक्सट्रीम इवेंट’ हो गई है
IMD के डेटा बताते हैं कि इस साल मॉनसून के दौरान 2,277 बार भारी या अत्यधिक बारिश हुई। इन घटनाओं में 1,528 लोगों की जान गई, जिनमें सबसे ज़्यादा मौतें मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हिमाचल और जम्मू-कश्मीर में हुईं। 14 में से 18 हफ़्तों में मॉनसून का पानी “अधिक या बहुत अधिक” श्रेणी में रहा।यानी चार महीने में मुश्किल से कुछ ही दिन ऐसे गए जब देश के किसी हिस्से में भारी बारिश नहीं हुई।

⚠️ मॉनसून अब ‘एक्सट्रीम इवेंट’ क्यों?
- 2,277 बार भारी या अत्यधिक बारिश
- 1,528 मौतें, सबसे ज़्यादा मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हिमाचल, जम्मू-कश्मीर में
- 14 में से 18 हफ्तों में मॉनसून “अधिक या बहुत अधिक” श्रेणी में रहा
- 59 जगहों पर Highest Flood Level (HFL) दर्ज
- गंगा बेसिन में 32 घटनाएँ, यमुना में 10
नदियों ने तोड़े रिकॉर्ड
🧪 वैज्ञानिक कारण
- समुद्रों का गर्म होना
- अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में तापमान बढ़ा
- हवा में नमी ज़्यादा, जिससे बारिश की तीव्रता बढ़ी
- वेस्टर्न डिस्टर्बेंसेज़ का शिफ्ट
- अब गर्मियों में भी सक्रिय, मॉनसून को उत्तर की ओर खींचते हैं
- मध्य-पूर्व की गर्म हवाएँ
- उत्तर-पश्चिम भारत में बिजली और तूफ़ान वाली बारिश बढ़ी
🏔️ हिमालय में बढ़ता ख़तरा
- ग्लेशियर ग्लोबल एवरेज से तीन गुना तेज़ पिघल रहे हैं
- पिघलती झीलें और कमजोर ढलानें बाढ़ और लैंडस्लाइड को बढ़ा रही हैं
- तेज़ बारिश + ग्लेशियर मेल्ट = फ्लैश फ्लड
🧭 विशेषज्ञों की राय
- डॉ. के. जे. रमेश (पूर्व मौसम महानिदेशक):“पहले 60 दिन में फैलने वाली बारिश अब 20–25 दिनों में हो रही है”
- महेश पलावत (Skymet Weather): “कम दबाव वाले सिस्टम ज़्यादा टिकाऊ हो गए हैं, बादल फटने की घटनाएँ बढ़ रही हैं”
- डॉ. अर्घ बनर्जी (IISER पुणे): “हिमालयी धाराएँ अब फ्लैश फ्लड में बदल रही हैं”
📈 दीर्घकालिक डेटा
- 1979–2022 के बीच उत्तर-पश्चिम भारत में मॉनसून वर्षा 40% बढ़ी
- कारण: भारतीय महासागर और अरब सागर की गर्मी, जो ज़्यादा वाष्प और नमी पैदा करती है
📌 निष्कर्ष
बारिश अब सिर्फ़ मौसम नहीं, जलवायु परिवर्तन का संकेत है। कहीं खेतों में राहत, कहीं सड़कों पर तबाही — लेकिन एक बात साफ़ है: ग्लोबल वार्मिंग अब भारत के मॉनसून में खुलकर दिखने लगी है।
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