वाराणसी। भगवान होते है और भगवान की पूजा करनी चाहिए। ये बात हमे शास्त्रों से पता चलती है। लेकिन जब वही शास्त्र बताते है कि किसके लिए कैसा विधान है या देवता का पूजन किस तरह होता है, उसे हम अनदेखा या कह देते है कि भगवान तो भाव से पूजे जाते है। जो कि ठीक नही है।
शिवलिङ्ग की पूजा के समय हमें किस तरफ बैठना चाहिए ये बात भी शास्त्रों में बताई गई है।
पूर्व, पश्चिम, उत्तर दिशा में बैठना वर्जित है।
पूर्व दिशा – यह दिशा भगवान् शिव के आगे या सामने पड़ती है (इष्टदेव का सामना रोकना ठीक नहीं है)।
उत्तर दिशा – इस दिशा में भगवान् शंकर का वामांग है, जिसमें शक्तिस्वरूपा देवी उमा विराजमान हैं।
पश्चिम दिशा – ये दिशा आराध्य देव का पृष्ठभाग है (पीछे की ओर से पूजा करना उचित नही है।)
दक्षिण दिशा – यही दिशा ग्राह्य है, उसी का आश्रय लेना चाहिये।
(तात्पर्य यह है कि शिवलिङ्ग से दक्षिण दिशा में उत्तराभिमुख होकर बैठे और पूजा करे।) हमें आशा है कि सनातन की कथाओं को आप तक पहुँचाने का हमारा यह प्रयास आपको पसंद आएगा। इस प्रकार की और अधिक कथाओं को जानने के लिए इस वेब साइट के धर्मकर्म मे देखे।
संदर्भ – श्री शिवमहापुराण
ज्योर्तिविद वास्तु दैवज्ञ
पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री
मो : 9993874848
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