कैसा रहा बीते दशक में बांगला फिल्मों का प्रदर्शन

बद्रीनाथ साव, कोलकाता। सत्यजीत रे की फिल्म पॉथेर पाचाली ने बांग्ला फिल्मों को वैश्विक स्तर पे पहचान दिलाई जिसके बाद बांग्ला भाषा में कई उम्दा फ़िल्में बनी जिनको भारतीय सिनेमा के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाता है, इनमें मृणाल सेन, ऋत्विक घटक, बासु चटर्जी, बुद्धदेव दासगुप्ता, अपर्णा सेन, तपन सिन्हा, गौतम घोष, ऋतुपर्णा घोष इत्यादि जैसे दिग्गज फिल्मकारों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।कोलकाता के टालीगंज क्षेत्र से उभरी बांग्ला फिल्म उद्योग ने समय के साथ कई बेहतरीन फिल्मों का निर्माण किया जिन्होंने ना केवल देश – विदेश में तारीफें बटोरी बल्कि कमाई के मामले में भी उम्दा प्रदर्शन किया।

अगर हम बीते दशक में बांग्ला फिल्मों पे नज़र डाले तो इसकी पौढ़ता के बारे में साफ़ अनुमान लगाया जा सकता है। दशक के शुरुआत में ही सृजित मुख़र्जी के निर्देशन में बनी फिल्म बाइशे श्रावोंन(२०११) ने ये दर्शा दिया था कि ये दशक पूरी तरह से क्लासिकल फिल्मों का रहेगा जहाँ स्टार का दम नहीं स्टोरी का दम चलेगा दिखा भी यही जहॉँ प्रसेनजित जैसे दिग्गज अभिनेता ने अपनी स्टार पावर इमेज तो तोड़ा और फ़िल्म के चरित्र के साथ घुलमिल गए। बाइशे श्रावोंन , ऑटोग्राफ जैसी फिल्मों में प्रसेनजित के बदले इमेज को जिस तरह से दर्शकों ने हाथो हाथ लिया था उसने ये बता दिया कि बांग्ला फिल्मों के दर्शक अब घिसीपिटी मारधाड़ जैसी उबाऊ फ़िल्में देखना नहीं चाहते बल्कि तकनीक के हर क्षेत्र में अव्वल बाइशे श्रावोंन जैसी उम्दा फ़िल्में देखना पसंद करेंगे।

दर्शकों की इसी चाहत को समझते हुवे कौशिक गांगुली जैसे फिल्मकार ने शब्दों , नगरकीर्तन , सिनेमावाला , विशोरजोन,ओपुर पांचाली , खाद , बिजोया जैसी फ़िल्में बनायीं तो कमलेश्वर मुख़र्जी ने मेघे ढाका तारा , अतनु घोष ने मयूराक्षी , अपर्णा सेन ने गोयनार बाक्सो जैसी उम्दा फिल्मों से बांग्ला फ़िल्म जगत को गर्व महसूस करवाया। बीते दशक में जैसे ही बांग्ला फिल्मों ने स्टार दम का चोला उतारा हमें कई उम्दा अभिनेता / अभिनेत्री दिखने को मिलें जिनमे परमब्रता , ऋत्विक , कौशिक सेन , जीशु सेन गुप्ता , आबिर , राइमा सेन , पाओली डाम , स्वास्तिका मुख़र्जी , पारनो मित्रा , अपराजिता ऑडी , ऋद्धि सेन इत्यादि प्रमुख है।

बीते दशक में हमने कई बेहतरीन उभरते निर्देशकों के बारे में भी जाना जिनमे , सृजित मुख़र्जी , अतनु घोष , कमलेश्वर मुख़र्जी , देबेश चटर्जी , शिबोप्रसाद मुख़र्जी , नंदिता राय , अनिन्दिया चटर्जी , इंद्रनील रॉय चौधुरी इत्यादि उल्लिखित है। कुल मिलाकर यह कहा कि २०११ से २०२० तक का बांग्ला फिल्मों का दौर कई मायनों में सफल रहा जहाँ बांग्ला फिल्मों ने वर्षों से चली आ रही कई भ्रांतियों को तोड़ा जिसमें स्टारडम का खत्म होना महत्वपूर्ण रहा।

उपरोक्त पंक्तियों में लिखित फिल्मों के अलावा भी ये कुछ फ़िल्में है जिन्होंने बीते दशक में अपनी अमिट छाप छोड़ी है। इति मृणालिनी (२०११) , अबोशेषे (२०११) , भूतेर भविश्योत (२०१२) , फोरिंग (२०१३), बाकीटा व्यक्तिगोतो (२०१३) , चतुष्कोण (२०१४) , आसा जावार माझे (२०१४), रामधनु (२०१४) , नाटोकेर मोतो (२०१५) , ओपन टी बायस्कोप , बौधोन (२०१५) , सोहोज पाठेर गोप्पो (२०१६ ) , सोनार पाहाड़ (२०१८) , केदारा (२०१९), तारीख (२०१९)।

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