
कोलकाता। भारतीय खाद्य निगम, मंडल कार्यालय बीरभूम के मंडल प्रबंधक समर विजय चकमा महोदय के अनुमोदन से कार्यालय परिसर में “संघ की राजभाषा हिंदी का सांस्कृतिक पक्ष” विषय पर एक कार्याशाला का आयोजन 27 मार्च 2025 दिन वृहस्पतिवार को सम्पन्न हुआ। जिसमें अतिथि वक्ता के रूप में बैरकपुर राष्ट्रगुरु सुरेन्द्रनाथ महाविद्यालय के सहायक प्राध्यापक डॉ. बिक्रम कुमार साव उपस्थित रहें।
कार्यशाला का संचालन बीरभूम के समरेन्द्र दास, प्रबंधक (राजभाषा) एवं जय प्रकाश यादव, स.श्रे.।।(राजभाषा) ने की। कार्यशाला में उत्पल दे – प्रबंधक (लेखा), प्रदीप सोय – प्रबंधक (सा), स्वप्निल रजत – प्रबंधक (गु.नि.), काकली चटर्जी (राय), आतिष कुमार मिश्रा – त.स.श्रे.।।।, सुभश्री नस्कर – त.स.श्रे.।।।, सुमन दास – स.श्रे.।।। (डिपो), केयाई प्रमाणिक – त.स.श्रे.।। अरूणिमा साहा – स.श्रे.।। (लेखा)
अमित बसाक – त.स.श्रे.।।, अचिंत्य कुमार पाल – त.स.श्रे.।।।, सत्य दुलाल सरदार – स.श्रे.। (सा), पार्थ प्रतिम मंडल – स.श्रे.।। (डिपो), ध्रुवज्योति दास – स.श्रे.।। (डिपो), स्वपन कुमार पाल – स.श्रे.। (सा), सुप्रभात वैद्य – स.श्रे.।।। (डिपो), अमित कुमार साव, स.श्रे.।। (सा), अइका स्वाति, स.श्रे.।।। (सा), कांचन दे, स.श्रे.।।(लेखा), रोहन बाल्मिकी, स.श्रे.।।।(लेखा) की उपस्थिति सराहनीय रही।
विषय पर अपनी बात रखते हुए अतिथि वक्ता डॉ. बिक्रम कुमार साव ने विशेष जोर देते हुए कहा कि ‘भारतीय खाद्य निगम’ राजभाषा के प्रचार के साथ-साथ समूचे भारत को राष्ट्रीय और सांस्कृतिक सूत्र में पिरोने का कार्य कर रहा है। संघ की राजभाषा नीति संपूर्ण भारतवर्ष में हिंदी भाषा के प्रसार हेतु संकल्पबद्ध है, क्योंकि हिंदी भाषा भारत की समृद्ध और विविध संस्कृति के सभी तत्वों को अभिव्यक्त करने में सक्षम है।
यह भाषा एक ऐसी सेतु है जो अतीत और वर्तमान, स्थानीय और वैश्विक, प्राचीनता और आधुनिकता को जोड़ती है। यह भाषा इंडो-आर्यन भाषाओं और संस्कृतियों की विरासत है जो संस्कृत, अरबी, फारसी, तुर्की, अंग्रेजी, द्रविड़ और अन्य भारतीय भाषाओं एवं बोलियों के प्रभाव से समृद्ध हुई है। बहुत से भ्रामक तथ्य इस भाषा के संदर्भ में फैलाएं जाते हैं जिससे हमें सचेत होने की जरूरत है।
संविधान में वर्णित राजभाषा से संबंधित विविध धारा, नियम-अधिनियमों की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि देश की सांस्कृतिक साहचर्य को बनाए रखने हेतु हमें महेंद्र भट्टाचार्या, भारतेंदु हरिश्चंद्र, जस्टिस शारदा चरण मित्र, मोटूरी सत्यनारायण, गोविंद बल्लभ पंत, सीताकांत महापात्रा, प्रो. रामेश्वर मिश्रा, डॉ. चंद्रकांत बांडिवडेकर, प्रो. अमरनाथ, प्रो. ए. अरविंदाक्षन, प्रो. अरुण होता, प्रो. बजरंगी बिहारी तिवारी सरीखे भाषा चिंतकों के चिंतन से अपनी समझ को विकसित करना होगा।
राजा राममोहन राय, ईश्वर चंद्र विद्यासागर, महात्मा गांधी, बाल गंगाधर तिलक, सुब्रमण्यम भारती, केशव चंद्र सेन, दयानंद सरस्वती, रविंद्र नाथ टैगोर, भूदेव मुखोपाध्याय जैसे राष्ट्र नायकों और संस्कृति उन्नायकों ने हिंदी को संपूर्ण भारतीय भाषाओं के बीच एकता को मजबूत करने की कड़ी के रूप में स्वीकार किया था। बहुभाषा भाषी भारत गणराज्य में जब-जब भाषाई मनमुटाव पैदा हो तब-तब इन मनीषियों द्वारा दिखाए गए मार्ग को हमें ध्यान में रखना होगा और हमारी सांस्कृतिक विरासत को क्षतिग्रस्त होने से बचना होगा।
कार्यशाला के अंत में एक पारिभाषिक शब्दावली ज्ञान प्रतियोगिता का आयोजन किया गया जिसमें स्वप्निल रजत, प्रथम, धीरज कमार विश्वकर्मा, द्वितीय एवं उत्पल दे, तृतीय स्थान प्राप्त किए। कार्यशाला का समापन समरेन्द्र दास, प्रबंधक (राजभाषा) के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ।
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