बेंगलुरु। कर्नाटक उच्च न्यायालय ने बुधवार को छात्राओं के हिजाब पहनकर कॉलेजों में जाने की अनुमति देने के मामले में कोई अंतरिम आदेश देने से इनकार कर दिया और मामले को वृहत पीठ के पास भेज दिया। न्यायमूर्ति कृष्णा दीक्षित की एकल पीठ ने सुनवाई के बाद कहा कि वृहत पीठ इस मामले में अंतरिम राहत पर भी विचार करेगी। न्यायमूर्ति दीक्षित ने कहा,“ अदालत का विचार है कि सुनवाई में जिन महत्वपूर्ण सवालों पर बहस हुई है, उनसे संबंधित कागजात मुख्य न्यायाधीश के समक्ष रखे जाएं ताकि यह तय किया जा सके कि इस विषय में क्या एक वृहत पीठ का गठन किया जा सकता है। ”

पीठ ने कहा​ कि इस मामले में अंतरिम राहत पर वृहत पीठ विचार करेगी, जिसे मुख्य न्यायाधीश अपने विवेक से गठित कर सकते हैं। न्यायमूर्ति दीक्षित ने इन परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, रजिस्ट्री को इस मामले में तत्काल विचार के लिए मुख्य न्यायाधीश के समक्ष कागजात पेश करने का आदेश दिया। मुख्य न्यायाधीश के एक वृहत पीठ के संबंध में निर्णय लिए जाने के बाद याचिकाकर्ताओं के लिए अंतरिम राहत की मांग का रास्ता खुलेगा। न्यायमूर्ति दीक्षित ने कहा कि याचिकाकर्ताओं को मुख्य न्यायाधीश के इस मामले को वृहत पीठ को भेजे जाने का निर्णय लेने के बाद अंतरिम राहत की मांग करने की आजादी होगी।

महाधिवक्ता प्रभुलिंग नवदगी ने अंतरिम राहत देने का विरोध करते हुए तर्क दिया कि इस स्तर पर अंतरिम राहत देना याचिका को अनुमति देने के बराबर होगा। उन्होंने कहा कि याचिकाओं को ठीक से नहीं समझा गया और राज्य ड्रेस कोड पर निर्णय नहीं लेता है।
उन्होंने तर्क दिया, “ याचिकाओं में सरकारी आदेश पर सवाल उठाया गया है। मैं अपने विद्वान मित्र (वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत्त कामत) को बताना चाहता हूं कि प्रत्येक संस्थान को स्वायत्तता दी गई है और ड्रेस कोड के मामलों में राज्य का कोई दखल नहीं है। ”

नवदगी ने यह भी तर्क दिया कि हिजाब धार्मिक अभ्यास का अभिन्न अंग नहीं है। केरल उच्च न्यायालय ने हालांकि हिजाब पहनने का अधिकार बरकरार रखा है। इससे स्पष्ट है कि इस पर अलग दृष्टिकोण हो सकता है। क्या हिजाब पहनना एक आवश्यक धार्मिक प्रथा है? यह एक बड़ा मुद्दा बन गया है और हर कोई निर्णय के लिए अदालत की ओर देख रहा है।”
याचिकाकर्ताओं में से एक के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े ने पीठ से छात्रों को अंतरिम राहत देने की अपील की, जबकि मामला एक वृहत पीठ को भेजा गया है। उन्होंने तर्क दिया कि शैक्षणिक वर्ष के केवल दो महीने शेष हैं। इसलिए यह याचिकाकर्ताओं के हित में नहीं होगा कि वे कक्षाओं में भाग लेने से वंचित रहें।

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