विनय सिंह बैस की कलम से : गुप्ता जी ग्वालियर वाले!!

रायबरेली। हमारे मित्र गुप्ता जी बहुत ही समझदार और कोमल प्रकृति के व्यक्ति हैं। वह किसी भी कार्य मे महिला-पुरुष का भेदभाव नहीं करते हैं। इसलिए गुप्ताजी सर्दियों के मौसम में लहसुन, मटर आदि भाभी की सहायता के लिए छील दिया करते थे। गर्मियों में प्याज, खीरा छीलने में भी उन्होंने कभी ना-नुकर नहीं किया। फ्रिज में पानी के बोतलें भरकर रखने को वह काम ही नहीं मानते हैं। चाय बनाना भी उनके लिए बाएं हाथ का खेल है। छुट्टी के दिन भोजन भी पका देते हैं।

गुप्ता जी के सहयोग और गुप्ताइन भाभी की कृपा से दोनों का जीवन हंसी खुशी से बीत रहा था। बड़े बूढ़े कह गए हैं कि जहां चार बर्तन साथ रहते हैं, वहां खटपट हो ही जाती है। शायद इसीलिए कभी-कभी गुप्ता जी की गुप्ताइन भाभी से कहासुनी भी हो जाती थी। इसमें यह बात नोट करने की है कि “कहती” गुप्ताइन भाभी थी और “सुनते” गुप्ता जी थे।

पिछले साल की 01 अप्रैल की रात को गुप्ता जी सोते समय ऑल आउट लगाना भूल गए। परिणाम यह हुआ कि ‘महिला सशक्तीकरण’ के सुलेमानी कीड़े ने जोर से उन्हें काट लिया। प्रभाव यह हुआ कि सुबह उठते ही भाभी से बोले- “अरे सुनो बब्बू की अम्मा, तुम दिन भर कितना काम करती हो। मेरा और बच्चों का ध्यान रखती हो। तुम्हारा कष्ट मुझसे देखा नहीं जाता। इसलिए आज से अपने कपड़े मैं खुद धुल लिया करूंगा। तुम बस अपने और बच्चों के कपड़े धुल लिया करो।”

हालांकि भाभी ने बहुत मना किया। एकदम ऊपर-ऊपर से बोली- “आप ऑफिस के काम और ग्वालियर के दमघोंटू ट्रैफिक से इतना थक जाते हो। सब्जी-भाजी लाना, आटा-पानी का इंतजाम करना, बच्चों के और पूरे परिवार के बाहर के सारे काम करना आप ही के तो जिम्मे है। सुबह-शाम पानी की मोटर भी आप ही चलाते हो। अब मैं आपको और कोई लोड नहीं दे सकती।

वैसे भी आपको कपड़े धुलने कहाँ आते हैं?? पिछली बार मेरे बीमार होने पर जब आपने मेरे कपड़े धुले थे, तो आपकी दो सफेद रंग की शर्ट मेरी साड़ी के कलर से लगभग नीली हो गई थी। आपने नहाने वाला साबुन और कपड़े धोने वाला साबुन एक ही साबुनदानी में रख दिया था। बेटा तो यह भी कह रहा था कि पापा ने जिस साबुन से कपड़े धुले थे, उसी से नहा भी लिए थे।

यह सब मैं भूल भी जाऊं तो शर्माइन भाभी को तो आप जानते ही हो, कभी भी मुंह उठाए घर में घुस आती हैं। उन्होंने आपको कपड़े धुलते हुए देख लिया तो समझो बवाल हो जाएगा। फिर पूरे मुहल्ले को जब तक बता नहीं देंगी, तब तक उनके पेट में पानी नहीं पचेगा। आपकी इज्जत का पता नहीं, लेकिन मुहल्ले में मेरी बड़ी इज्जत है। जरा से काम के लिए मैं अपनी इज्जत मिट्टी में नहीं मिला सकती।”

भाभी जी ने और भी बहुत सारे तर्क दिए। शर्माइन भाभी से लेकर तमाम बातों का हवाला दिया लेकिन गुप्ता जी टस से मस न हुए। वह बीमारी के उस स्टेज में पहुंच चुके थे, जिसमें कोई दवा और दुआ काम नहीं करती। उन पर महिला सशक्तीकरण का बुखार 104 डिग्री चढ़ चुका था। उन्हें न मानना था और न वे माने। द्वापर में भीष्म द्वारा की गई प्रतिज्ञा के बाद इतनी कठिन प्रतिज्ञा कलयुग तक शायद ही किसी ने की होगी।

खैर, फिर वही हुआ जो होना था। होनी को कौन टाल सकता है भला। अगले रोज से गुप्ता जी अपने कपड़े खुद ही धुलने लगे। ऐसा कुछ हफ्तों तक चला। लेकिन कुछ हफ्तों के बाद गुप्ताजी पाते हैं कि बाल्टी में कपड़ों की संख्या कुछ बढ़ गई है। उनके खुद के कपड़ों के साथ ही कुछ छोटे कपड़े भी बाल्टी में दिखने लगे हैं। गुप्ता जी ने इस पर आपत्ति की तो भाभी बोली- “अरे जी! वह बच्चों के कपड़े गलती से चले गए होंगे। अब चले गए हैं तो धुल लो। काहे इतना नखरा कर रहे हो?? ”

गुप्ता जी हमेशा की तरह मान गए। लेकिन छोटे कपड़े वाली गलती अब तो रोज ही होने लगी थी। गुप्ता जी कुछ कहते भी तो भाभी कभी प्यार से तो कभी धमकाकर चुप करा देती थी। पर एक दिन तो हद ही हो गई। जब गुप्ताजी कपड़े धोने के लिए बैठे तो देखते हैं कि उनके और बच्चों के कपड़ों के साथ कुछ ‘लेडीज वस्त्र’ भी नजर आ रहे हैं।

अब गुप्ताजी से नहीं रहा गया। वह गुस्से में भाभी के पास भड़कते हुए पहुंचे और दहाड़े- “यह क्या हो रहा है?? मैंने सिर्फ अपने कपड़े धोने की बात कही थी। तुमने पहले होशियारी से बच्चों के कपड़े घुसाये, अब चालाकी से अपने कपड़े भी बाल्टी में डाल दे रही हो?? ऐसा बिल्कुल नहीं चलेगा, मैं सिर्फ अपने कपड़े धोऊंगा। ज्यादा से ज्यादा बच्चों के कपड़े धो दूंगा। तुम्हारे कपड़े बिल्कुल नहीं धोऊंगा?? आखिर मैं भी आदमी हूँ। मेरी भी कोई इज्जत है समाज में” गुप्ता जी के अंदर का मर्द जाग उठा था और वह गुस्से से लाल हो रहे थे।

गुप्ताइन भाभी सरकारी क्वार्टर में रहते-रहते तमाम बहन जी से ज्ञान लेकर अब तक यह जान चुकी थी कि कपड़े धोने से नेल पॉलिश उतर जाती है और हाथ की स्किन का रंग ‘डल’ हो जाता है। फिर कपड़े धोने के चक्कर में उनका मनपसंद ‘पति भी कभी शेर था’ धारावाहिक छूट जाता था। अतः उन्होंने भी तुरंत जवाब दे दिया -“तो आज से मैं भी अपना और ज्यादा से ज्यादा बच्चों का खाना बना लिया करूंगी। तुम अपना भोजन खुद बना लेना या बाहर से मंगा लेना।”

इतना सुनते ही गुप्ता जी ठंडे हो गए। सुना है मार्च की सैलरी जो कि 03 अप्रैल को मिलेगी और हालिया बढ़े हुए दो प्रतिशत डीए की भारी भरकम रकम मिलते ही, गुप्ता जी 8 kg वाली फ्रंट लोड ऑटोमेटिक वाशिंग मशीन खरीदने की सोच रहे हैं।
#अप्रैल फूल

(विनय सिंह, रायबरेली वाले)
गुप्ता जी के बिल्कुल सगे मित्र

विनय सिंह बैस, लेखक/अनुवाद अधिकारी

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