विनय सिंह बैस की कलम से : खेती 1994 बनाम 2024

छोटा भाई : भैया क्या आपको पता है कि बड़े-बड़े कास्तकार जिनका धान खेत से कटकर घर तक पहुंचने में पहले महीनो लग जाते थे, पूरा कातिक बीत जाता था, अब उनकी पूरी सीर एक दिन में ही कट जाती है और उसी दिन धान उनके घर भी पहुंच जाता है।

मैं – अच्छा!

छोटा भाई : क्या आपको पता है कि खेत से धान काटने वाली मशीन केवल 25 से 30 मिनट में एक बीघा खेत का धान काट देती है।

मैं – अच्छा!!

छोटा भाई : क्या आपको यह पता है कि उक्त मशीन एक बीघा धान काटने के ₹1600/- लेती है। दो बार में उक्त मशीन ट्रैक्टर की ट्राली धान से पूरा भर देती है और फिर ट्राली में भरा हुआ धान खेत से सीधे घर पहुंच जाता है।

मैं- अच्छा!!!
लेकिन, तुम यह सब मुझे क्यों बता रहे हो?????

छोटा भाई : इसलिए कि मैं भी आपकी पोस्ट पढ़ता हूँ। इसलिए कि बचपन से लेकर आज तक मुझे ज्ञान देते आये हो। इसलिए मैं भी आपको थोड़ा ज्ञान दे दूं कि- अब ‘नदिया के पार’ वाले गांवों और बैलगाड़ी का जमाना बीत चुका है। सबके हाथ में मोबाइल और पैरों के नीचे बाइक है। अब गांव में भी सबके पास कैश है, खूब ऐश है। इसलिए अब कोई रूपा और उसकी अम्मा किसी का धान काटने नहीं आती। कोई बाबा धान की लौनी (मजदूरी) नहीं देते। कोई सूरज किसी रूपा को छुप-छुप कर नहीं देखता और कोई रूपा सूरज को देखकर शर्माती नहीं है। बल्कि पसंद होने पर सीधे-सीधे ‘आई लव यू’ और नापसंद होने पर ‘गेट आउट’ बोल देती है।

अब सारे सूरज सीधे अपनी रूपा को दिन-रात जब चाहे वीडियो कॉल कर लेते हैं, जहां चाहें वहां मिल लेते हैं। 1994 नहीं, 2024 है अब।”
मने कि घनघोर बेइज्जती है यार!!

विनय सिंह बैस

विनय सिंह बैस, लेखक/अनुवाद अधिकारी

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