विनय सिंह बैस की कलम से… डिजिटल इंडिया!!

नई दिल्ली । आज अपनी तारीफ खुद ही कर लेते हैं। हमारी सेहत का राज यह है कि हम लंच करने के बाद टहलते जरूर हैं। गर्मियों में ऑफिस के आसपास ही टहल लेते हैं और सर्दियों में जरा दूर निकल जाते हैं। कल भी लंच करने के बाद अपने अजीज मित्र और बैच मेट डॉ. अजय पूर्ति, जेएनयू वाले के साथ टहलने निकल पड़ा। एक तो नवंबर के महीने में मौसम खुशगवार हो चला है और सर्दियों की धूप भी अच्छी लगने लगी है। दूसरे मित्र अजय पूर्ति ने अपने जेएनयू के बड़े रोचक किस्से सुनाने शुरू कर दिए। इस चक्कर में समय और दूरी का पता ही न चला और हम ऑफिस से काफी दूर निकल आए।

वापस ऑफिस की तरफ मुड़ने को हुए तो अजय बोले- “मुझे बहुत जोर प्यास लग रही है।” चूंकि हमारी कैंटीन में सिर्फ कार्ड से पेमेंट होता है इसलिए पर्स न मेरे पास था और न अजय के पास। हम दोनों के पास बस प्रीपेड कार्ड और मोबाइल फोन ही था। पास ही हमें एक महिला की छोटी सी दुकान दिखी जिसमें पानी की बोतले रखी हुई थी। हमने उनसे पूछा कि कार्ड से पेमेंट हो जाएगा क्या?
तो वह बोली-” कार्ड से तो नहीं लेकिन पेटीएम स्कैन करके पेमेंट कर सकते हैं।”
मेरे मोबाइल में पेटीएम ऐप तो नहीं था, लेकिन गूगल पे है। तभी मुझे टेलीविजन पर आने वाले एक ऐड की पंच लाइन याद आ गई और मैंने डायलाग दे मारा -“दोस्त तो मुंह चला, गूगल पे सब जगह चलता है।”
मेरे आश्वासन पर उधर अजय ने बोतल खोल कर पानी पीना शुरु किया और इधर मैंने गूगल पे से पेमेंट कर दिया।

ऐड यानी रील लाइफ में तो महिला मॉडल के पेमेंट करते ही दुकानदार को पैसे ट्रांसफर हो जाते हैं। लेकिन रियल लाइफ में पुरुष मॉडल के पैसे महिला दुकानदार को नहीं पहुंचे। पता नहीं क्या गड़बड़ हुई कि मेरे एकाउंट से तो पैसा कट गया लेकिन मैडम के पेटीएम से धन प्राप्त होने की कोई आवाज न आई। पहले तो मैंने सोचा कि एक बार और पेमेंट कर देता हूँ लेकिन फिर दिमाग में यह आया कि पहली बार के पैसे अटक गए हैं, दूसरी बार की क्या गारंटी है।

दुकान वाली मैडम ठहरी दिल्ली वाली। बोली- “जब तक पैसा नहीं आता, तब तक तुम दोनों जाओगे नहीं। सुबह भी दो स्मार्ट लड़कियां हाफ स्कर्ट पहने आई थी और ₹200 का चूना लगा गई।”

मैंने विनम्रता से कहा- “मैडम हम शरीफ लोग हैं। मेरी छोड़िए, मेरा दोस्त तो इतना शरीफ है कि इसने अब तक शादी तक नहीं की। फिर लड़कियों की गलती की सजा हमें क्यों दे रही हो?” लेकिन मैडम ने कोई मुरव्वत नहीं बरती। वह रूखी आवाज में बोली- “जब तक हमारे पास मैसेज नहीं आता, तब तक तुम लोग हिलोगे भी नहीं।”

हालांकि इस मुसीबत से छुटकारा पाने हेतु मैंने तो ‘प्लान बी’ भी सोच लिया था। मैं यह कहने ही वाला था कि मैडम मैं इस लड़के को नहीं जानता। यह कुंवारा है, जहां रात को ठहर जाए वही इसका घर है। इसे अपने पास रख लो। वैसे भी जिसने पानी पिया, आप उससे पेमेंट लो, मैं चला। ”

लेकिन मेरे दोस्त अजय पूर्ति की किस्मत इतनी भी अच्छी नहीं थी। थोड़ी ही देर बाद मैडम जी के पेटीएम से सुमधुर आवाज आई कि – “आपके पेटीम में ₹20 प्राप्त हुए हैं।” तब जाकर अजय पूर्ति की जान में जान आई। बताओ, डिजिटल इंडिया के चक्कर में आज शादी से पहले ही मेरे दोस्त को बर्तन मांजने पड़ जाते!

विनय सिंह बैस

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