विनय सिंह बैस, नई दिल्ली। आज से लगभग 16 वर्ष पूर्व श्री माता वैष्णो देवी के दर्शन करने सपरिवार कोलकाता से आया था। तब जम्मू तक ही ट्रेन आती थी। वहां से बस या टैक्सी से कटरा आना होता था। बस से कटरा पहुंचने के बाद माता वैष्णो देवी के लिए यात्रा शुरू की थी। अगस्त का महीना था, कुछ ही देर चलने के बाद बारिश शुरू हो गई। हम बारिश से बचने के लिए एक दुकान में रुके और बारिश रुकते ही फिर यात्रा शुरू कर दी लेकिन एक-आध किलोमीटर के बाद तेज बारिश शुरू हो गई।
तब मैंने सभी लोगों के लिए प्लास्टिक (पन्नी) से बना रेन कोट खरीदा और आगे की यात्रा शुरू की। हालांकि इस टेंपररी रेन कोट से कोई खास बचाव नहीं हुआ। तेज और लगातार बारिश को देखते हुए हमने अर्धकुमारी में रात्रि विश्राम करने का निर्णय लिया। सिक्योरिटी डिपॉज़िट देकर कंबल मिल गए थे लेकिन वह कंबल बदबूदार और खटमल, सीलन युक्त थे।
खैर, किसी तरह हमने रात गुजारी और भोर होते ही फिर चढ़ाई शुरू कर दी। सांझी छत पहुंचने पर मां के प्रसाद के रूप में एक दोने में थोड़ा सा हलवा मिला। सामान्य हलवा, मां के प्रसाद में बदलते ही विशिष्ट हो जाता है, उसका स्वाद बिल्कुल दैवीय हो जाता है। इस प्रसाद से पेट तो नहीं भरता लेकिन मन भर जाता है, आत्मा तृप्त हो जाती है। सांझी छत से चढ़ाई खत्म हो जाती है।
आगे का तीन किलोमीटर का रास्ता लगभग सपाट है। छोटी बिटिया को गोद में लिए हुए माताजी के दरबार पहुंचते-पहुंचते मेरा पूरा शरीर थककर चूर हो चुका था। पैर तो लगभग जवाब ही दे चुके थे। कंधे और हाथ भी पके हुए फोड़े से टपक रहे थे। भवन के पास पहुंचकर सार्वजनिक स्नानागार में स्नान किया। भीड़ अधिक थी, गंदगी और अव्यवस्था उससे भी अधिक थी। न कोई प्राइवेसी थी, न कोई प्रबंधन। सब कुछ राम भरोसे था।
खैर किसी तरह हमने स्नान किया, उसके बाद घंटों लाइन में लगकर लॉकर में सामान जमा किया। फिर आधा घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद प्रसाद (भेंट) खरीद पाए। तब जाकर माताजी के दर्शन हेतु लाइन में लगे। वायुसेना में होने के कारण यह लाभ मिला कि गेट संख्या पांच से विशेष प्रवेश मिल गया और कुछ ही समय में माताजी के दर्शन आसानी से हो गए।
हालांकि जिस गुफा के अंदर माताजी की पिंडी थी, वह काफी संकरी और बदहाल थी। माता जी की पिंडियों के दर्शन करके आत्मिक शांति मिली। कुछ समय के लिए ही सही यात्रा की सारी थकान और असुविधाओं का कष्ट जाता रहा। स्वयं को भाग्यशाली समझा कि मां के दर्शन करने का सौभाग्य मिला।
मान्यता है कि भैरव बाबा के दर्शन किए बिना माताजी के दर्शन अधूरे माने जाते हैं। यह भी कैसी विडंबना है कि जिसने मां का अहित करने की कोशिश की बल्कि पूरा जोर लगा दिया, उसे भी मां ने न सिर्फ क्षमा कर दिया बल्कि अपने से ऊंचे जगह पर स्थान दिया। मां के इसी करणामयी, भक्तवत्सल स्वभाव के कारण ही तो कोटि-कोटि श्रद्धालु मां के बुलावे पर तमाम कष्ट सहते हुए भी उनके दर पर पहुंच जाते हैं।
अतः मान्यता का अनुसरण करते हुए हम भी माताजी के दर्शन के बाद भैरों बाबा के दर्शन के लिए निकल पड़े। भैरव बाबा पहुंचने के लिए हमें परिवार सहित लगभग दो किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई लिए करनी थी। छोटी बिटिया को गोदी में लेकर चलना मेरे लिए लगभग असंभव हो चला था। अतः बिटिया के लिए पिट्ठू करना पड़ा। तब जाकर हम चढ़ाई पूरी कर पाए। भैरव बाबा के दर्शन के बाद हम संतोष और तृप्ति का भाव लिए वापस लौट आए थे।
उस समय अम्मा हमारे साथ में थी। उन्होंने मन ही मन पता नहीं कब वैष्णो मां से मानता मान ली थी कि- “हे मैया! तुम्हरे आसिर्बाद और किरपा से हमरे मुन्ना के लरिका होई तो हम नाती के साथ तुम्हार दर्शन करै अउबै।”
उन्होंने यह बात उस समय तो किसी को नहीं बताई। लेकिन बेटे के जन्म के कुछ समय पश्चात ही वह इस मानता को पूरा करने के लिए हमारे ऊपर दबाव बनाने लगी। हम भी आजकल करते हुए बात टालते रहे। वर्ष 2023 में अम्मा गंभीर रूप से बीमार हुई तो भावुक होकर कहने लगी- “बच्चा, हमरे जियत-जियत सब मान-मनौती पूरी करि दियो। का पता कब भगवान हमका बोला लियें।”
मैंने अम्मा को (और खुद को भी) आश्वस्त किया कि आपके ऊपर मां वैष्णो देवी का हाथ है, आपको कुछ नहीं होगा। देवी मां के आशीर्वाद से अम्मा मौत को मात देने में सफल तो रहीं लेकिन कीमो और रेडिएशन ने उनके शरीर को बुरी तरह तोड़ दिया था। एक तो उम्र का प्रभाव, ऊपर से कैंसर के कष्टप्रद इलाज ने उन्हें लगभग बेड रिडेन ही कर दिया था।
किसी अनहोनी की आशंका और अम्मा की वर्षों पुरानी मानता पूरी करने के लिए हम अपने सुपुत्र के साथ पिछले वर्ष श्री माता वैष्णो देवी के दर्शन करने के लिए निकल पड़े। इस बार की यात्रा का सबसे सुखद परिवर्तन यह रहा कि अब देश की सबसे आधुनिक ट्रेन वंदे भारत सहित तमाम रेलगाड़ियां दिल्ली से सीधे कटरा तक चलने लगी थी। अब पहले की तरह जम्मू से कटरा के लिए चेंज करने की जरूरत नहीं थी।
पहाड़ों को काटकर, कई सुरंगों और पुलों का निर्माण कर कटरा को रेल लाइन के माध्यम से शेष भारत से सीधे जोड़ दिया गया है। कटरा का रेलवे स्टेशन भी बड़ा सुंदर और आधुनिक बनाया गया है। स्टेशन पूरी तरह दिव्यांग और बुजुर्ग फ्रेंडली है। जगह-जगह मां वैष्णो देवी की फ़ोटो लगी हैं, रेलवे स्टेशन का नाम भी ‘श्री मां वैष्णो देवी कटरा’ है। अतः यहां पहुंचते ही आध्यात्मिक अनुभूति होने लगती है।
अब कटरा से बाणगंगा तक टेंपो, टैक्सी चलने लगे हैं। यात्रियों की बेहतर निगरानी और सुरक्षा हेतु सभी यात्रियों को RFID कार्ड लेना अनिवार्य होता है। कटरा में पहले की अपेक्षा अब कई बजट होटल से लेकर अत्याधुनिक होटल खुल गए हैं। कई दुकानों में लाकर की सुविधा भी उपलब्ध है।
आधार कार्ड होने पर यात्री सिम कार्ड आसानी से मिल जाता है, हालांकि थोड़ा महंगा जरूर है। सेना के सेवारत और रिटायर्ड जवानों और परिवारों के लिए बाणगंगा में ‘बसेरा’ आवास उपलब्ध है। वहां पर रिसेप्शन में आसानी से RFID पास मिल जाता है, लॉकर की सुविधा भी उपलब्ध है।
बाणगंगा से यात्रा शुरू करते ही घोड़ा (पोनी), पालकी की सुविधा पहले की तरह उपलब्ध है। अब एक नई सुविधा बेबी कार्ट भी उपलब्ध है। छोटी कार्ट में बच्चे और बड़ी कार्ट में बड़े भी जा सकते हैं। जिन श्रद्धालुओं के पास समय कम है और पैसा अधिक है, उनके लिए कटरा से सांझीछत तक हेलीकॉप्टर सेवा भी उपलब्ध है।
भवन पहुंचने तक के रास्ते में अब पहले की अपेक्षा बहुत अधिक दुकानें खुल गई हैं। यात्रा के रास्ते के एक बड़े भाग को शेड से ढक दिया गया है जिससे कि धूप और बरसात से श्रद्धालुओं का बचाव होता है। यात्रा मार्ग के दोनों तरफ लोहे की बड़ी और मोटी जालियां लगाई गई हैं। इससे कई फायदे हुए हैं –
1. पहला तो यह कि कोई यात्री असावधानी से, पैर फिसलने से नीचे खाई में नहीं गिरेगा।
2. दूसरा यह है कि बारिश, तूफान के दौरान पत्थर गिरने की घटना होने पर भी यात्री काफी हद तक सुरक्षित रह सकेंगे।
3. तीसरा यह कि प्रेम में धोखा खाये युवक/युवतियां यात्रा मार्ग को सुसाइड पॉइंट नहीं बना सकेंगे।
यात्रा मार्ग में जगह-जगह निःशुल्क शुद्ध पानी की सुविधा उपलब्ध है। यात्री विश्राम के लिए भी कई नए सरकारी और निजी विश्रामालय खुल गए हैं। चरण पादुका से माता के भवन जाने के लिए अब दो रास्ते हैं- एक नया रास्ता हिमकोटि के मार्ग से बन गया है जो कि पुराने अधकुमारी- सांझीछत वाले रास्ते से एक किलोमीटर कम है और सुविधाजनक भी है।
अर्धकुमारी अब कोई छोटा शहर सा दिखने लगा है। बैंक, अस्पताल, होटल, विश्रामालय सभी कुछ यहाँ पर है। भोजन, विश्राम और शौचालय की सुविधा पहले से बेहतर है।
सांझीछत भी बदली-बदली सी नजर आती है। माँ वैष्णो देवी तीर्थ स्थल ट्रस्ट द्वारा संचालित होटल यहां उपलब्ध हैं। प्रसाद की व्यवस्था पहले से बेहतर और व्यवस्थित है। कटरा से उड़ने वाले हेलीकॉप्टर यहीं आकर लैंड करते हैं। यहां से एक रास्ता सीधे माता के भवन और दहिनी तरफ से एक रास्ता भैरों बाबा मंदिर तक जाता है। कई श्रद्धालु यहां आकर कंफ्यूज हो जाते हैं कि यह तो भैरों बाबा मंदिर का मार्ग है, उन्हें पहले माता के भवन जाना था।
माता वैष्णो देवी के भवन के पास लॉकर, शौचालय, स्नान आदि की सुविधा यात्रियों की संख्या को देखते हुए अभी भी अपर्याप्त और अनपयुक्त है। विशेषकर महिलाओं को स्नान और शौच के लिए काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। भवन के पास भीड़ अधिक हो जाने पर श्रद्धालु एक दूसरे से बिछड़ जाते हैं और फिर आसानी से नहीं मिलते।
क्योंकि प्रीपेड सिम यहां काम नहीं करता और पोस्टपेड, यात्री सिम देश की एक बड़ी आबादी के लिए अब भी लक्ज़री है। सेना के जवानों और उनके परिवार के लिए प्रायॉरिटी प्रवेश हेतु बने गेट संख्या पांच के बाईं तरफ लॉकर की सुविधा उपलब्ध है। हालांकि शौचालय, स्नानागार आदि उसमें भी नहीं है।
सामान्य यात्रियों के लिए अभी कुछ समय पूर्व ही अत्याधुनिक, साफ सुथरा स्काईवॉक बनाया गया है। लंबे समय तक माता के दर्शन की कतार में रहने वाले श्रद्धालुओं को ध्यान में रखते हुए इस मार्ग को काफी हद तक खुला और आरामदायक बनाया गया है। स्काई वॉक में सुंदर चित्रकारी और पेंटिंग की गई है। भारी भीड़ होने पर भी इस मार्ग में घुटन जैसी फीलिंग नहीं आती।
जिस गुफा के अंदर मां की पिंडी है, उसे भी अब काफी आधुनिक और सुंदर बनाया गया है। 45 मीटर की यह गुफा पहले से अधिक खुली, हवादार और सुरुचिपूर्ण है।
श्री माता वैष्णो देवी के दर्शन करके बाहर आने के पश्चात बाहर खाने पीने की सुविधा हेतु पहले से अधिक भोजनालय व होटल उपलब्ध हैं। मनोकामना भवन से भैरव मंदिर जाने के लिए एकदम नई और आधुनिक रोपवे सुविधा शुरू गई की गई है जिसमें मात्र ₹100 में आने और जाने का टिकट लिया जा सकता है।
अब पहले का 2 घंटे का कष्टदायी सफर मात्र 3 मिनट में रील बनाते, फ़ोटो खींचते हुए हंसी खुशी तय होता है। यह रोपवे बहुत कम शुल्क में यात्रियों का समय औऱ श्रम दोनों बचाता है। साथ ही यह आधुनिक इंजीनियरिंग का एक अद्भुत नमूना भी है।
सारांशतः श्री माता वैष्णो देवी के दर्शन करना अब पहले से अधिक सरल, सुगम, सुविधाजनक और सस्ता हो गया है। कटरा की छोड़िये, दुनिया का सबसे ऊंचा चिनाब पुल बनने तथा वन्देभारत रेलगाड़ी चलने के बाद अब तो कश्मीर भी रेलमार्ग के माध्यम से शेष भारत से जुड़ गया है। धारा 370 समाप्त होने बाद जम्मू और कश्मीर सच्चे अर्थों में भारत का अभिन्न अंग बन चुका है।
भारतवर्ष की इस पावन भूमि से मजहबी उन्माद और आतंकवाद का समूल सफाया हो जाये तो हिंदुस्तान का यह मुकुट सचमुच ही धरती का स्वर्ग बन जायेगा।
जय माता दी
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