
।।हे ऋतुराज! जाओ, पर जल्दी ही आना।।
हे ऋतुराज! जाओ, पर जल्दी ही आना।
अपने साथ सौंदर्य लाकर प्रकृति में बिखेर देना।
खेतों में खड़े सरसों पर पीले-पीले, तीसी पर नीले-नीले,
आम डाली पर छोटी मंजरियाँ, बागों में खुशबू ले आना।
हे ऋतुराज! जाओ, पर जल्दी ही आना।
पौधों पर मसृण पत्ते व फूलों की पंखुड़ियों को सजाना।
संग भवरों को बुलाना, कानों में मधुर गीत गवाना।
प्यारी कोयलिया न छूटे, उसको भी तुम संग ही लाना।
हे ऋतुराज! जाओ, पर जल्दी ही आना।
तुझको पाकर ही प्रकृति हर्षित हो लुभाने लगती।
इंद्रधनुषी सुरभित धानी को पहन इठलाने लगती।
भौर-तितली-पक्षी सब मिल तुझको रिझाने लगते।
हे ऋतुराज! जाओ, पर जल्दी ही आना।
प्रभात का भगवा, तो रात की चांदनी भी संग ले आना।
श्याम अम्बर में अनगिनत झिलमिलाते लघु दीपों को सजाना।
सुबह हरि घास पर कीमती मोती समृद्ध बिखेर देना।
हे ऋतुराज! जाओ, पर जल्दी ही आना।
मधुर सपनों में यदि मुझे तुम पाओ, कोमल स्पर्श से मुझे जगाना।
फिर, मित्रों सहित तेरे संग खेलेंगे, घूमेंगे, गायेंगे, लहराएंगे।
हे ऋतुराज! आकर तू मौन अजनबी-सा चले न जाना।
हे ऋतुराज! जाओ, पर जल्दी ही आना।
अपने साथ मेरे देश की पावन खुशबू को संग ले आना।
जिसमें शामिल हो भारत की शान और आजादी के गाना।
बार-बार आना होगा तुम्हें, अपने वादे से मुकर न जाना।
आयुष कुमार यादव
कक्षा नवम
श्री जैन विद्यालय, हावड़ा
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