आशा विनय सिंह बैस की कलम से…भगवान जगन्नाथ स्वामी की पूजा

आशा विनय सिंह बैस, बैसवारा, यूपी। हमारे यहां बैसवारा में चैत्र मास के सोमवार को गृहिणियां ‘धन धान्य के देवता भगवान जगन्नाथ स्वामी’ की पूजा करती हैं। इस पूजा में गुझिया, खीर, दही, हलवा-पूरी के अतिरिक्त जौ, गेँहू की सात बालियां तथा कच्चा आम (टिकोरे) चढ़ाना शुभ माना जाता है। अगर सात टिकोरों का गुच्छा मिल जाये तो उसे बहुत ही शुभ माना जाता है। मेरी अजिया (दादी) यह पूजा पूरे विधि विधान से करती थी। उस दिन चैत्र मास का सोमवार था। पूजा की सारी सामग्री की व्यवस्था पहले हो चुकी थी। गुझिया बन चुकी थी, पूड़ी बनाने की तैयारी चल रही थी। तभी अजिया हमसे बोली- “मुन्ना, सब कुछ आ गया है। बस अमिया (आम के टिकोरे) नहीं है। जाओ अपने पेड़ से ले आओ। अगर सात का घौद (गुच्छा) मिल जाये तो और भी अच्छा है लेकिन ज्यादा परेशान नहीं होना, पतली डाल पर तो बिल्कुल नहीं चढ़ना। आसानी से न मिले तो सात अमिया ले आना, काम हो जाएगा।”

आशा विनय सिंह बैस, लेखिका

पेड़ पर चढ़कर फल तोड़ना, दातून लाना, छप्पर पर चढ़कर तरोई, लौकी तोड़ना हमारे प्रिय कार्य हुआ करते थे। इस तरह के काम में हमारा खूब मन लगता था। इसलिए अजिया का आदेश मिलते ही मैं एक बड़े से डंडे में हंसिया बांधकर आम के पेड़ की तरफ दौड़ पड़ा। चारों तरफ घूमकर मुआयना किया कि कहीं कोई सात टिकोरों का गुच्छा नीचे से दिख जाए तो मैं डंडे में बंधी हंसिया से उसे काट लूं। लेकिन मुझे नीचे से कोई भी सात अमिया (टिकोरों) का गुच्छा नहीं दिखा।तब मैंने आदतानुसार पहले आम के पेड़ के पैर छुए और फिर ऊपर चढ़ गया। इधर-उधर नजर घुमाई लेकिन सात का गुच्छा नजर न आया। थोड़ा और ऊपर चढ़ा तो एक सात का गुच्छा दिख गया। लेकिन वह काफी दूर था और वह डाल भी उतनी मोटी न थी।

हमारे गांव के जंगल में ‘कंजी (करंज)’ के खूब पेड़ हैं। जिनमे हम गुलहरि नामक खेला करते थे। खेल के दौरान हम इस से भी पतली-पतली डालों से बेझिझक कूद और चढ़ जाया करते थे। यह डाल तो उस से काफी मोटी थी। यहीं सोचकर मैं उस डाल पर आगे बढ़ना लगा। अब गुच्छा काफी पास था। मैं थोड़ा और आगे बढ़ा तो ऐसा लगा कि गुच्छा अब मेरी रेंज में है। पूरा हाथ आगे बढ़ाया लेकिन करीब आधे फिट का फासला अब भी रह गया था।

इतना पास आकर खाली हाथ तो न जाऊंगा, यह सोचकर थोड़ा और आगे बढ़ गया। हालांकि अब मुझे थोड़ा डर भी लग रहा था। लेकिन थोड़ी हिम्मत करके एक कदम आगे और बढ़ाया, अब गुच्छा बिल्कुल मेरी रेंज में था। बस हाथ बढ़ाकर तोड़ने भर की देर थी। लेकिन जैसे ही मैंने पूरा हाथ बढ़ाकर गुच्छा तोड़ने की कोशिश की, मुझे ‘चर्ररर्र-चर्ररर्र’ जैसी आवाज सुनाई दी। इस से पहले कि मैं कुछ समझता या संभलता, पूरी डाल पेड़ से अलग हो चुकी थी और मैं हाथ में गुच्छा पकड़े हुए डाल सहित धम्म से जमीन पर आ गिरा।

इतनी ऊंचाई और बिल्कुल सूखे खेत में गिरने के कारण मेरी आंखों के आगे अंधेरा छा गया था। एक क्षण के लिए तो मुझे ऐसा लगा कि मेरा परलोक का टिकट कट गया है और गलती से बच भी गए तो हाथ पैर तो सलामत न बचेंगे। लेकिन भगवान जगन्नाथ की कृपा से मैं सही-सलामत बच गया था। कुछ अंदरूनी चोट तो लगी थी और हाथ-पैर भी छिल गए थे लेकिन सारी हड्डियां सुरक्षित थी। पूरी डाल सहित ही सही लेकिन सात अमिया वाला गुच्छा तो मुझे मिल ही गया था और साथ ही यह ज्ञान भी कि “कंजी और आम की डालियां एक जैसी नहीं होती।”

#जय जगन्नाथ

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