आशा विनय सिंह बैस की कलम से… परीक्षा केंद्र के बाहर पानी भरी हुई बाल्टी

नई दिल्ली। हाई स्कूल की परीक्षा में मेरा सेंटर (परीक्षा केंद्र) इंटर कॉलेज अंबारा पश्चिम था यानि लालगंज बैसवारा से लगभग 6 किलोमीटर दूर। अन्य बच्चों की तरह मैं भी साइकिल से परीक्षा देने जाता तो गेट पर एक व्यक्ति पानी भरी हुई बाल्टी लेकर बैठा रहता। पानी भरा बर्तन किसी शुभ कार्य से पूर्व या कहीं जाने से पहले दिख जाना शुभ माना जाता था । परीक्षा वह भी हाई स्कूल की परीक्षा उस समय “लाइफ चेंजिंग इवेंट” हुआ करती था। इसी परीक्षा से तय हो जाता था की लड़का आगे भी पढ़ाई करेगा या शादी ब्याह करके खेती- पाती करेगा और घर की गाय भैंस संभालेगा।

हम छात्रों के पास रुपए तो खैर क्या हुआ करते थे। बस 1-2 रुपए घरवाले इसलिए दे देते थे कि रास्ते में कहीं साइकिल पंचर हो जाए तो बनवा लेना। उसी पैसों में से कुछ छात्र 10,20,50 पैसे बाल्टी में डाल दिया करते थे। वह व्यक्ति परीक्षा शुरू होने के पहले छात्रों के प्रवेश करते समय आधा घंटे सुबह की शिफ्ट में और लगभग इतनी ही देर दोपहर की शिफ्ट में बैठकर सभी छात्रों के लिए शुभ शकुन बनाया करता था।

हालांकि भरी बाल्टी देखने के बाद भी उत्तीर्ण वहीं छात्र हुआ करते थे जिन्होंने पढ़ाई की होती थी। बाकी छात्रों की मदद यह शुभ शकुन भी नहीं कर पाता था। लेकिन वह व्यक्ति एक घंटे में ही पूरी परीक्षा के दौरान प्रतिदिन लगभग दस-बारह रुपए कमा लिया करता था। आज के जमाने के हिसाब से 10-12 रूपये उस समय बड़ी रकम हुआ करती थी।

आशा विनय सिंह बैस, लेखिका

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