यादों की दराज से … (1) : श्याम कुमार राई ‘सलुवावाला’

आज मैं फिल्मी गानों से संबंधित मजेदार किस्सा बताने जा रहा हूं।
इस क्रम में दो फिल्मी गानों का किस्सा साझा करूंगा। ये दोनों गाने अपने समय में बहुत ही मकबूल रहे थे। आज भी इन गानों की लोकप्रियता बरकरार है।
पहला गाना है 1972 में आई फिल्म ‘एक नजर’ का और गाने के बोल हैं, ‘पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने …’ गीत लिखा है मजरूह सुल्तानपुरी ने और इसकी धुन तैयार की है लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने। जिसे मोहम्मद रफ़ी और लता मंगेशकर ने गाया है।
इस गाने का मुखड़ा कुछ यूं है –
“पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने है
जाने न जाने गुल ही न जाने बाग तो सारा जाने है”
यह गाना दरअसल नामचीन शायर मीर तक़ी ‘मीर’ की ग़ज़ल के मतले (पहले शे’र) को लेकर लिखा गया है। ग़ज़ल के पहले शे’र को ही मतला कहा जाता है। मजरूह सुल्तानपुरी ने इसी मतले को मुखड़े में इस्तेमाल कर बाक़ी का सारा गीत लिखा।
अब दूसरे गाने पर आता हूं। गाना है 1975 की फिल्म ‘मौसम’ का। इसका निर्देशन गुलजार ने किया है। जिस गाने की बात कर रहा हूं वह भी गुलजार का ही लिखा हुआ है और धुन मदनमोहन की है। गाने के बोल हैं –
“दिल ढ़ूढता है फिर वही फुरसत के रात दिन
बैठे रहे तस्सवुरे जाना किए हुए …”
यह गाना फिल्म में दो बार आता है। एक बार फिल्म के शुरूआत में नामावली के साथ जिसे भूपेंद्र सिंह ने गाया है और दूसरी बार युगल गीत के रूप में, जिसे गाया है लता मंगेशकर और भूपेंद्र सिंह ने।
इस गाने का मुखड़ा भी गालिब के ग़ज़ल के एक शे’र (मतला) को लेकर लिखा गया है। और हां, ग़ालिब के शे’र के ‘जी ढ़ूढता’ है’ की जगह ‘दिल ढूंढता है’ किया गया है मतलब ‘जी’ को ‘दिल’ किया गया है।
आशा करता हूं इन दो लोकप्रिय गानों के बनने की कहानी आपलोगों को जरूर अच्छी लगी होगी। धन्यवाद, अब विदा चाहूंगा …।

1 thoughts on “यादों की दराज से … (1) : श्याम कुमार राई ‘सलुवावाला’

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *