ये कौन सी दुनियां है, कहां हूं मैं…
डॉ. आर.बी. दास
खुद में जरा सा बचा हूं मैं,
देख कर खुद को हैरा हूं मैं,
यकीन नहीं होता सोच कर ये,
कि दिलों में लोगों के रहा हूं मैं,
समझ नहीं आता की अपना कौन है,
किस मिट्टी का आखिर बना हूं मैं,
कोई मुझे भी अपना ले दिल से,
ये कैसी-कैसी बातें सोचता हूं मैं,
अपनी-अपनी किरदारों में सब अच्छे,
जहां में अकेला शायद बुरा हूं मैं,
लोग लूटे हुए को भी लूट लेते हैं,
ये कौन सी दुनियां है, कहां हूं मैं…
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