
।।बहुत है।।
डॉ. आर.बी. दास
अच्छी थी पगडंडी अपनी,
सड़कों पर तो जाम बहुत है।
फुर्र हो गई फुर्सत अब तो,
सबके पास काम बहुत है।
नहीं जरूरत बुड्ढे की अब,
हर बच्चा बुद्धिमान बहुत है।
उजड़ गए सब बाग, बगीचे,
दो गमलों में शान बहुत है।
मठ्ठा, दही नहीं खाते हैं,
कहते हैं जुकाम बहुत है।
पीते हैं जब चाय, तब कही,
कहते हैं आराम बहुत है।
बंद हो गई चिठ्ठी पतरि,
वाट्सऐप पर पैगाम बहुत है।
झुके झुके स्कूली बच्चे,
बस्तों में, सामान बहुत है।
नहीं बचे कोई संबंधी,
अक्कड़, ऐंठ, अहसान बहुत है।
सुविधाओं का ढेर लगा है,
पर इंसान परेशान बहुत है।

Adv. supreme court,
Advisor (UGC)
National Sec.
SC/ST commission
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