डॉ. मधु आंधीवाल की लघुकथा : पापा की नसीहत

डॉ. मधु आंधीवाल, अलीगढ़ । शायद रोमा की बहुत बड़ी गलती थी कि अपनी जुड़वा बहन सौम्या को उसका दुख देख कर अपने घर ले आई। रोमा और सौम्या की मां बचपन में ही चल बसी थी। पापा ने ही दोनों की परवरिश की थी। एक से वातावरण में रहने के बाद भी रोमा बहुत शान्त और संस्कार वान थी जबकि सौम्या उतनी ही चंचल और लापरवाह थी। लगता था की सारी आधुनिकता उसी के हिस्से में आगयी थी। रोमा की शादी अपूर्व से हुई। अपूर्व बहुत स्मार्ट पढ़ा लिखा अच्छा प्रशासनिक अधिकारी था। अपूर्व एक आधुनिक परिवेश में पला था। रोमा देखने में सुन्दर पढ़ी लिखी थी पर शायद कहीं अपूर्व की चाहत पर पूर्ण खरी नहीं उतर पा रही थी।

रोमा की शादी के कुछ दिन बाद ही पापा का देहान्त हो गया। अब सौम्या बिलकुल अकेली हो गयी। घर में सबकी स्वीकृति से ही वह अपनी जुड़वा बहन को ले आई। कुछ दबे स्वर में जेठानी ने रोमा से मना भी किया कि अपने पास ना लाये क्योंकि वह अपने देवर के स्वभावत से परिचित थी। रोमा सौम्या का बहुत ख्याल रखती थी। अपूर्व के हर फंक्शन में अब रोमा के साथ सौम्या भी दिखाई देने लगी। धीरे धीरे सौम्या का रंग अपूर्व पर चढ़ने लगा।

एक दिन रात को जब रोमा की नींद खुली तो बिस्तर पर अपूर्व नहीं था। वह कुछ दिन से अपूर्व में बहुत बदलाव देख रही थी। उसने सोचा हो सकता है कुछ उनकी सर्विस की उलझन होगी। वह उठ कर बाहर आई तो सौम्या के कमरे से बातों की सुगबुगाहट सुनी वह कान लगा कर सुनने लगी सौम्या कह रही थी अपूर्व मै तुम्हारे बिना नहीं रह सकती, अपूर्व ने कहा हां सौम्या रोमा का रिश्ता तो मै झेल रहा था पंसद तो शुरू से तुम ही थी पर मै उसे तलाक किस कारण दूं समझ नहीं आ रहा।

रोमा कमरे में आई उसने अपना कुछ सामान लिया और एक पत्र लिखा। सौम्या तुम संस्कार भूल गयी पर मै पापा की सीख नहीं भूली मै स्वयं घर छोड़ कर जा रही हूँ। तुम और अपूर्व स्वतंत्र हो शादी करने के लिये। रोमा पहुँच गयी अपने पापा के बन्द मकान में एक नया मुकाम पाने के लिये पापा की यादों और नसीहतों के साथ।

डॉ. मधु आंधीवाल
अलीगढ़
madhuandhiwal53@gmail.com

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