
।।अध्यात्म में प्रदूषण।।
इच्छा नहीं इंसान की, ईश्वर तक पहुंचने की
बस औपचारिकता वश, वह पूजा घर तक पहुंचता है!!
चाह नहीं भक्त की, प्रभु को हृदय में बसाने की…
इसलिए उसे वह, सिंहासन पर बिठाता है !!
सम्पदा नहीं इतनी, कि करे तृष्णा सा कोई अर्पण
फलत: चन्दन, पुष्प, मधू व प्रसाद वह चढ़ाता है!
संयम नहीं स्वयं पर, कि करे कुरीति-व्यसनों का त्याग
न जाने क्यों अक्सर! वह ‘अन्न’ त्याग करता है!!
मेधा नहीं इतनी कि समझे प्रलय-सृष्टि की विधा
सुविधा की दृष्टि से बस! धर्म ग्रंथ को समझता है
मानता है अपनी ही तरह, प्रभु को प्रणय का प्यासा
रत्न-जड़ित आभूषणों से, श्रृंगार रचाता है !!
नहीं आस्था उसकी, परम पिता के निर्णय पर
मन्नतों व तृष्णा भरी, आरती सुनाता है!
करे भी क्या? संकुचित है सीमा उसकी!
लालसाएं हैं उसकी सीमा प्रहरी!
वरना बाबाओं के लिए वह,
मिथ्या प्रचार न करता…
नहीं होती, त्रासदी स्त्री-हरण की…
यदि विवाहेत्तर रासलीला का जय-जयकार न करता!
नर्क की भयावहता में, दैहिक यातना का दृश्य न होता!
स्वर्ग की सुखद परिकल्पना में, भौतिक अप्सराओं का नृत्य न होता!!
श्री गोपाल मिश्र
आयाम- अध्यात्म दर्शन
(काॅपी राइट सुरक्षित)

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