अशोक वर्मा “हमदर्द” की रचना- बिछुड़न : अधूरी मोहब्बत

अशोक वर्मा “हमदर्द” की लेखनी से निकलती मोहब्बत की आखिरी दास्तां

कोलकाता। आलोक की जिंदगी अब केवल यादों का संग्रहालय बन चुकी थी। जमीला के बिना हर लम्हा अधूरा था, लेकिन उसने खुद से एक वादा किया था कि जमीला की ख्वाहिश को पूरी करेगा। उसकी शायरी और किताबों ने न केवल उसे जिंदा रखा, बल्कि उन अनगिनत दिलों को भी उम्मीद दी, जो अधूरी मोहब्बत के दर्द से जूझ रहे थे।

आलोक की पुस्तक “तेरी यादों का चिराग” जब प्रकाशित हुई, तो उसने दुनिया भर में धूम मचाई। यह किताब हर उस दिल तक पहुँची, जो मोहब्बत के जख्मों को महसूस कर सकता था। लेकिन इस सबके बीच आलोक खुद को और अकेला महसूस करने लगा। उसकी रचनाओं ने उसे अमर बना दिया, पर उसके भीतर का खालीपन दिन-ब-दिन गहराता जा रहा था।

एक दिन आलोक की लाइब्रेरी में रखी किताबों को सजाते हुए उसे जमीला की एक और चिट्ठी मिली। यह चिट्ठी उसकी पहली किताब “बिछुड़न” की पन्नों के बीच रखी थी। चिट्ठी पर जमीला के हाथों से लिखा हुआ था :
आलोक, अगर कभी यह चिट्ठी तुम्हें मिले, तो समझ लेना कि मैंने तुम्हें हमेशा के लिए अपना मान लिया था। मुझे पता था कि मैं तुम्हारे साथ लंबे वक्त तक नहीं रह पाऊँगी। पर मैं चाहती हूँ कि जब भी तुम यह पढ़ो, तो तुम अपने आपसे वादा करो कि हमारी अधूरी मोहब्बत को सिर्फ दर्द के साथ नहीं, बल्कि एक खूबसूरत याद के तौर पर देखोगे।
तुम्हारी,
जमीला

इस चिट्ठी ने आलोक को तोड़कर रख दिया। वह घंटों उस कागज को सीने से लगाए रोता रहा। उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे जमीला उसके पास बैठी हो, उसके आँसू पोंछ रही हो।

कुछ दिन बाद आलोक ने एक आखिरी बार गंगा किनारे जाने का फैसला किया। उसने जमीला की तस्वीर अपने साथ ली और अपनी पसंदीदा डायरी भी। गंगा की लहरों के सामने बैठकर उसने सोचा, “जमीला, मैं तुम्हें कभी भुला नहीं पाया। पर अब मैं तुम्हारे पास आना चाहता हूँ।”

गंगा की लहरें शांत थीं। आलोक ने अपनी डायरी खोली और उसमें आखिरी शेर लिखा :
“तेरी रूह गंगा की लहरों में है,
तेरी यादें इन हवाओं में हैं।
मैं जी रहा हूँ बस इस यकीन के साथ,
कि तेरा नाम मेरी दुआओं में है।”

उस रात गंगा किनारे आलोक ने अपनी डायरी को बंद किया और जमीला की तस्वीर को देखते-देखते चुपचाप सो गया। अगली सुबह जब लोग वहाँ पहुँचे, तो उन्होंने आलोक को शांत और मुस्कुराते हुए पाया। उसके हाथों में जमीला की तस्वीर और उसकी आखिरी डायरी थी।
मोहब्बत का अमर संदेश…

आलोक की मृत्यु के बाद उसकी डायरी पढ़ी गई। उसमें लिखा था :
जमीला, अब मैं थक गया हूँ। मैं अपनी हर सांस में तुम्हें महसूस करता रहा, लेकिन अब मैं तुम्हारे पास आना चाहता हूँ।
हमारी कहानी अधूरी थी, पर हमारी मोहब्बत अमर है। मैं तुम्हारे बिना अधूरा था, और अब तुम्हारे साथ पूरा हो जाऊँगा।
तुम्हारा,
आलोक

आलोक और जमीला की अधूरी मोहब्बत अब भी लोगों के दिलों में जिंदा है। उनकी कहानी यह सिखाती है कि सच्चा प्यार सिर्फ साथ होने का नाम नहीं, बल्कि उन यादों और एहसासों का नाम है, जो वक्त के साथ भी खत्म नहीं होते।

आज भी, जब गंगा की लहरों पर चाँद की रोशनी पड़ती है, तो ऐसा लगता है जैसे आलोक और जमीला की मोहब्बत उन लहरों में नृत्य कर रही हो। उनकी अधूरी कहानी हर दिल को यह संदेश देती है :
“मोहब्बत कभी खत्म नहीं होती,
वह हमेशा किसी न किसी रूप में जिंदा रहती है।”
I love you जमीला

अशोक वर्मा “हमदर्द”, लेखक

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