पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस से हाथ नहीं मिलाएगी सीपीएम

कोलकाता। मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने पांच राज्यों में आगामी विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के साथ हाथ न मिलाने और अपने गठबंधनों के संबंध में राज्यवार रणनीति अपनाने का फैसला किया है।
माकपा पोलित ब्यूरो, इस राज्यवार रणनीति के तहत इस फॉर्मूले पर इसलिए पहुंची है क्योंकि अगल-अलग राज्यों की इकाइयों की तरफ से अलग-अलग मांग की जा रही है। खासकर पश्चिम बंगाल और केरल इन दो राज्यों की इकाइयों के बीच इस मामले पर कोई सहमति नहीं बन पाई है।

पांच राज्यों के चुनाव में अब कुछ ही समय बचा है इसलिए संसद के शीतकालीन सत्र से ठीक पहले सीपीआईएम ने ये रणनीति बनाई है। फिलहाल पार्टी चुनावी राज्यों- उत्तर प्रदेश, पंजाब, गोवा, मणिपुर और उत्तराखंड में अन्य वाम दलों के साथ गठबंधन करेगी।हालांकि पार्टी मुख्यतौर पर तमिलनाडु मॉडल के पक्ष में है, जहां सीपीआईएस और कांग्रेस दोनों पाटीर्यों ने एक क्षेत्रीय दल के नेतृत्व में गठबंधन में चुनाव लड़ा था। वहीं इन पांचों राज्य जहां चुनाव होने है इनकी समितियों ने कांग्रेस के साथ गठबंधन का विरोध किया है।

बीजेपी को हराने के लिए और कांग्रेस गठबंधन को लेकर सीपीआईएम जब तक कोई अंतिम निर्णय पर नहीं पहुंचती तब तक के लिए ये फैसला लिया गया है। गौरतलब है कि तमाम राज्यों में कांग्रेस का गठबंधन दूसरे अन्य दलों से एक-एक कर टूट रहा है। इसी के मद्देनजर माकपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व राज्यसभा सांसद सीताराम येचुरी ने आईएएनएस से बातचीत में कहा कि माकपा पोलित ब्यूरो ने कांग्रेस से गठबंधन तोड़ने की कोई चर्चा नहीं की। फिलहाल बीजेपी को हराने के लिए माकपा का सभी दलों के साथ गठबंधन बेहद जरूरी है।

गौरतलब है कि पिछले माह अक्टूबर में माकपा की तीन दिवसीय केंद्रीय समिति की बैठक हुई थी। बैठक के एजेंडे में आगामी चुनावों के मद्देनजर कांग्रेस के साथ गठबंधन पर पार्टी की क्या नीति रहेगी, ये तय करना भी शामिल था। फिलहाल सूत्रों के अनुसार पोलित ब्यूरो में कांग्रेस के साथ गठबंधन करने को लेकर मतभेद हैं। केरल का गुट बीजेपी के खिलाफ क्षेत्रीय दलों के साथ वामपंथी नेतृत्व वाले धर्मनिरपेक्ष गठबंधन पर जोर दे रहा है।

पश्चिम बंगाल के नेताओं के गुट का कहना है कि देश के सबसे बड़े विपक्षी दल (कांग्रेस) से गठबंधन के बिना कोई भी गठबंधन करना पार्टी के लिए अव्यावहारिक ही साबित होगा। ऐसे में राष्ट्रीय स्तर और क्षेत्रीय स्तर पर अलग-अलग नीति बनाने की जरूरत होगी। फिलहाल इस मुद्दे पर सहमति न बन पाने के बाद अब पार्टी अगले साल में चर्चा कर आगे की रणनीति तय करेगी।

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