Conflict over trade policies between developing and developed countries

COP29 में CBAM पर तीखा मतभेद: विकासशील और विकसित देशों के बीच व्यापारिक नीतियों पर टकराव

निशान्त, Climateकहानी, कोलकाता। बकू, अज़रबैजान में चल रहे COP29 के जलवायु सम्मेलन के पहले दिन का आरंभिक सत्र विवादों के चलते देरी से शुरू हुआ, क्योंकि भारत और चीन जैसे विकासशील देशों ने सम्मेलन के एजेंडा में यूरोपीय संघ के कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म (CBAM) को शामिल करने की मांग की, जिसका अमीर देशों ने कड़ा विरोध किया। यह मुद्दा शुरू से ही बहस का केंद्र बना रहा और इससे सम्मेलन के एजेंडे पर गहरा असर पड़ा।

CBAM पर विवाद: विकासशील देशों की चिंताएँ
CBAM यूरोपीय संघ का एक प्रस्तावित कर है, जो ऊर्जा-गहन उत्पादों जैसे लोहे, स्टील, सीमेंट, उर्वरक और एल्युमीनियम पर लगाया जाएगा, जो विकासशील देशों से आयात किए जाते हैं। यह शुल्क इन उत्पादों के निर्माण के दौरान उत्सर्जित कार्बन पर आधारित होगा। यूरोपीय संघ का तर्क है कि इस कर से यूरोप के घरेलू उत्पादकों और विदेशी उत्पादकों के बीच उत्सर्जन आधारित लागत समान हो जाएगी और पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

हालांकि, विकासशील देशों का मानना है कि इस प्रकार की नीतियां उनके लिए भारी आर्थिक बोझ बन सकती हैं, और यूरोप के साथ व्यापारिक गतिविधियों को अत्यधिक महंगा कर सकती हैं। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने CBAM को “एकतरफा और मनमाना” करार दिया था और चेताया कि इससे भारत के उद्योगों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा और वैश्विक व्यापार संतुलन बिगड़ सकता है।

Conflict over trade policies between developing and developed countries
दिल्ली स्थित सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) के अनुसार, CBAM के तहत भारत से यूरोप को निर्यात किए गए कार्बन-गहन उत्पादों पर 25% अतिरिक्त कर लगेगा, जो भारत के सकल घरेलू उत्पाद का 0.05% तक प्रभाव डाल सकता है।

COP29 के पहले दिन की मुख्य बातें और वित्तीय एजेंडा पर तनाव
COP29 का पहला सत्र खासा विलंब से आरंभ हुआ, क्योंकि एजेंडा में CBAM को शामिल करने पर विकसित और विकासशील देशों में तीखी बहस जारी रही। COP29 के मेजबान अज़रबैजान ने सभी देशों से आग्रह किया कि वे लंबित मुद्दों का शीघ्र समाधान निकालें ताकि एक नई जलवायु वित्त व्यवस्था पर सहमति बन सके। UNFCCC के प्रमुख साइमन स्टीएल ने इस बात पर जोर दिया कि जलवायु वित्त किसी भी देश के स्वार्थ में है और इसे दान के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए।

BASIC देशों (ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, भारत, चीन) ने UNFCCC के समक्ष CBAM को लेकर एक प्रस्ताव पेश किया, जिसमें इस प्रकार की एकतरफा व्यापारिक नीतियों को छोड़ने का आग्रह किया गया। चीन के जलवायु नीति निदेशक ली शुओ ने BASIC देशों की चिंताओं को स्पष्ट करते हुए कहा कि CBAM जैसी नीतियाँ विकासशील देशों के हितों के लिए हानिकारक हो सकती हैं और यह जलवायु परिवर्तन के खिलाफ वैश्विक प्रयासों में रुकावट डाल सकती हैं।

विशेषज्ञों की राय और CBAM का संभावित प्रभाव
चीन क्लाइमेट हब के निदेशक ली शुओ ने कहा कि BASIC देशों का यह प्रस्ताव बताता है कि इन नीतियों का विकासशील देशों के औद्योगिक हितों पर क्या असर हो सकता है। उन्होंने कहा कि यूरोप और अमेरिका अपनी घरेलू बाजारों को सस्ती हरित तकनीक से भरने की नीति पर चल रहे हैं, जिसका उद्देश्य इलेक्ट्रिक वाहनों और सोलर पैनल जैसे उत्पादों को बढ़ावा देना है।

तीसरी दुनिया नेटवर्क की मीना रमन ने COP29 में वित्तीय सहायता के मुद्दे पर जोर देते हुए कहा कि विकसित देश जलवायु वित्त पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय अन्य मुद्दों को बढ़ावा देने की कोशिश कर रहे हैं। उनका मानना था कि जलवायु वित्त सम्मेलन का केंद्रीय मुद्दा होना चाहिए, ताकि विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद मिल सके।

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निष्कर्ष: CBAM का भविष्य और COP29 में आगे की चुनौतियाँ
CBAM पर जारी इस विवाद ने COP29 को एक गंभीर मंच बना दिया है, जहां केवल जलवायु परिवर्तन पर ही नहीं, बल्कि वैश्विक व्यापार और आर्थिक स्थिरता पर भी ध्यान दिया जाना आवश्यक है। विशेषज्ञों का मानना है कि CBAM जैसी नीतियों में वैश्विक समन्वय का अभाव विकासशील देशों की प्रगति में बाधा बन सकता है और जलवायु वित्त व्यवस्था में असमानता बढ़ा सकता है।

COP29 में इस मुद्दे पर बने समझौते का असर केवल पर्यावरण पर नहीं, बल्कि वैश्विक व्यापारिक नीतियों पर भी पड़ेगा। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि क्या COP29 विकासशील और विकसित देशों के बीच सहयोग का एक नया अध्याय लिख सकता है, जिससे वैश्विक जलवायु लक्ष्यों को साधने में मदद मिल सके।

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