
।।यत्र नार्यस्तु पूज्यंते।।
उष्ण तप्त दोपहर है, लड़कियों की जिंदगी।
कंकड़ीली इक डगर है, लड़कियों की जिंदगी।
जिंदगी के नाम पर है, जन्म देती जिंदगी।
बस इसी मुकाम भर है, लड़कियों की जिंदगी।
नर्क का प्रवेश द्वार! लड़कियों की जिंदगी।
गली की झूठी हर खबर, है लड़कियों की जिंदगी।
पत्थरों की इक छुअन से, चनचना उठे जो वो।
ऐसा एक कांच-घर है, लड़कियों की जिंदगी।।
घड़ी-घड़ी सिहर रही है, लड़कियों की जिंदगी!
गर्भ में ही मर रही है, लड़कियों की जिंदगी।
अग्नि-परीक्षा हो, चौसरों की हो विसात।
हर युग में दांव पर लगी है, लड़कियों की जिंदगी!!
उष्ण तप्त दोपहर है लड़कियों की जिंदगी!!
आयाम : सामाजिक वीभत्सता।
रचनाकार : श्री गोपाल मिश्र
(काॅपीराइट सुरक्षित)

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