पता नहीं कौन अधर्मी एक विष घोल गया,
सनातन धर्म को भिन्न-भिन्न जातियों में तोड़ गया।
हम सदैव थे सदैव रहेंगे यह श्रीमद्भागवत गीता का सार है,
हम एक थे हम एक हैं हम एक ही रहेंगे यह समय की मांग है।
शूद्र, ब्राह्मण, राजपूत, वैश्य हम एक पिता माता की संतान है,
मत करो विभेद छोड़ दो यह विष घोलना ऊंच नीच का भेद।
एक दूजे के बिना अधूरे क्षत्रिय ब्राह्मण शूद्र वैश्य,
इस पूज्य भारत की धरा धारणी के तुम हो पुत्र अनेक।
अनेक रहकर बनो एक समय यही पुकार रहा,
अभी नहीं तो कब जागोगे हे भारत वंशियों संगठित रहो यही देता मैं संदेश।

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