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कोयले पर लगाम की शुरुआत: भारत, चीन और इंडोनेशिया में 2030 तक एमिशन घटने की उम्मीद

Climate कहानी, कोलकाता | 29 अक्टूबर 2025Centre for Research on Energy and Clean Air (CREA) की नई रिपोर्ट के अनुसार, भारत, चीन और इंडोनेशिया जैसे एशिया के तीन सबसे बड़े कोयला उपभोक्ता देश अब उस मोड़ पर हैं,

जहाँ कोयले की खपत अपने चरम से नीचे आने की संभावना है। अगर मौजूदा रफ्तार से स्वच्छ ऊर्जा की ओर बढ़ते रहे, तो 2030 तक पावर सेक्टर से निकलने वाला कुल कार्बन उत्सर्जन घटने लगेगा

📊 वैश्विक असर: 73% कोयला खपत वाले देश अगर बदलें तो…

  • दुनिया की कोयले की कुल खपत का 73% हिस्सा इन्हीं तीन देशों से आता है
  • अगर इन देशों में कोयले की मांग घटती है, तो इसका ग्लोबल एमिशन ट्रेंड पर बड़ा असर पड़ेगा
  • यह बदलाव जलवायु परिवर्तन के खिलाफ वैश्विक लड़ाई में एक निर्णायक मोड़ साबित हो सकता है

रिपोर्ट के अनुसार, चीन ने पहले ही इतनी नई क्लीन बिजली क्षमता जोड़ ली है कि उसकी नई ऊर्जा मांग पूरी तरह कोयले के बिना पूरी हो सकती है।

CREA के को-फाउंडर और लीड एनालिस्ट लॉरी माइलिविर्टा कहते हैं, “चीन का कोयला उपयोग 2024 से ही गिरना शुरू हो गया है। अगर यही रफ्तार जारी रही, तो कोयले की खपत का पीक बहुत करीब है।”

🇨🇳 चीन ने दिखाया रास्ता

  • चीन ने नई क्लीन बिजली क्षमता इतनी जोड़ ली है कि उसकी नई ऊर्जा मांग कोयले के बिना पूरी हो सकती है
  • CREA के को-फाउंडर लॉरी माइलिविर्टा के अनुसार:

    “चीन का कोयला उपयोग 2024 से ही गिरना शुरू हो गया है। अगर यही रफ्तार रही, तो पीक बहुत करीब है।”

भारत के लिए कहानी थोड़ी अलग है, बिजली की मांग लगातार बढ़ रही है, क्योंकि आबादी और अर्थव्यवस्था दोनों तेज़ी से बढ़ रहे हैं।

🇮🇳 भारत पकड़ रहा रफ्तार

  • भारत में बिजली की मांग तेजी से बढ़ रही है, लेकिन
  • प्रधानमंत्री मोदी द्वारा तय 500 गीगावॉट नॉन-फॉसिल पावर कैपेसिटी का आधा लक्ष्य पहले ही पूरा कर लिया गया है
  • CREA के एनालिस्ट मनोज कुमार कहते हैं:

    “अगर भारत अपने मौजूदा टारगेट पूरे करता रहा, तो कोयले का इस्तेमाल 2030 से पहले ही घटने लगेगा”

  • इसके लिए ग्रिड लचीलापन, स्टोरेज और ट्रांसमिशन को मज़बूत बनाना ज़रूरी है

🇮🇩 इंडोनेशिया की भूमिका

  • इंडोनेशिया भी नवीकरणीय ऊर्जा की ओर बढ़ रहा है, हालांकि उसकी गति अपेक्षाकृत धीमी है
  • लेकिन नीति परिवर्तन और निवेश के चलते वहां भी कोयले की खपत में गिरावट की संभावना बन रही है

सबसे बड़ा खतरा: कोयले के हित समूह

रिपोर्ट साफ़ चेतावनी देती है कि अगर कोयले की नई परियोजनाओं को लगातार मंज़ूरी मिलती रही, तो इससे ऐसे ‘हित समूह’ (vested interests) बन सकते हैं जो एनर्जी ट्रांज़िशन को धीमा कर देंगे।

CREA का अनुमान है कि अगर इन देशों में कोयले का इस्तेमाल 2030 के बाद तेज़ी से घटाया जाए, तो कार्बन एमिशन में कमी भारत के 2019 के कुल उत्सर्जन के बराबर होगी, यानि एक ऐसा असर जो ग्लोबल डिकार्बनाइज़ेशन एजेंडा में निर्णायक भूमिका निभा सकता है।

लॉरी माइलिविर्टा ने कहा, “2030 के बाद भी अगर रिन्यूएबल एनर्जी की ग्रोथ दर बरकरार रही,
तो यह कमी बिजली क्षेत्र के लिए ऐतिहासिक साबित होगी। लेकिन अगर रफ्तार धीमी हुई, तो पूरी उपलब्धि खो सकती है।”

Now the sun will say in the closed coal mines- it's my turn!

भारत के लिए संदेश: ट्रांज़िशन अब ‘कब’ का नहीं, ‘कैसे’ का सवाल है

भारत के पास आज दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा रिन्यूएबल पोटेंशियल है। सोलर और विंड दोनों की रफ्तार तेज़ है, और 500 गीगावॉट का टारगेट अब सिर्फ़ कागज़ पर नहीं, ज़मीन पर उतर रहा है।

लेकिन CREA की रिपोर्ट याद दिलाती है कि ग्रिड इंफ्रास्ट्रक्चर, स्टोरेज और डिस्कॉम सुधारों के बिना यह बदलाव अधूरा रहेगा।

एक साझा भविष्य

भारत, चीन और इंडोनेशिया, तीनों देशों की कहानी यह दिखाती है कि एशिया अब सिर्फ़ “कोयले का केंद्र” नहीं रहा, बल्कि क्लाइमेट एक्शन का केंद्र भी बन सकता है।

अगर आने वाले पाँच सालों में इनकी नीतियाँ क्लीन एनर्जी को प्राथमिकता देती रहीं, तो दुनिया की हवा साफ़ करने की शुरुआत यहीं से हो सकती है।

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