Climate story. AI's attack on heat

Climate कहानी ।। गर्मी की मार पर AI का वार

  • जब डेटा, अल्गोरिदम और देसी समझ मिलकर शहरों को हीटवेव से बचाने निकले

निशान्त, Climate कहानीकोलकाता। जब शहर जल रहे हों और सिस्टम सो रहा हो, तब डेटा बोलता है, किसी मोहल्ले की गली में लगे पानी के नल के नीचे बैठे रिक्शेवाले से पूछो—हीटवेव क्या होती है? वो आपको थर्मल इंडेक्स नहीं बताएगा, लेकिन कहेगा, “साँस लेना भी मुश्किल होता है साब… रात में भी पसीना चूता है।”

लेकिन अब AI की मदद से उसी मोहल्ले का डेटा देखिए—PM2.5 की रीडिंग 250, वेट बल्ब टेम्परेचर 31 डिग्री, और ह्यूमिडिटी 72%।
मतलब? मतलब ये कि मौत की तैयारी अपने नाम से नहीं, कोडवर्ड में आ रही है। यही गैप भरने उतरी है टेक्नोलॉजी। और इसी गैप को समझा रहे थे Prof. S.N. Tripathi और उनकी टीम इंडिया हीट समिट 2025 में।

Climate story. AI's attack on heat

  • स्मार्ट सिटी नहीं, स्मार्ट सिस्टम चाहिए

IIT कानपुर की Erawat Research Foundation ने एक सिंपल बात कही—तूफान का सामना करने के लिए दीवार बाद में बनाओ, पहले चेतावनी दो।
उन्होंने बताया कि कैसे उनके AI मॉडल, शहरों को एक-एक किलोमीटर के ब्लॉक लेवल पर बता सकते हैं कि:

  • किस गली में तापमान ख़तरनाक स्तर छू रहा है,
  • कहाँ पर फ्लड का खतरा है,
  • और कौन-से इलाक़े PM2.5 + हाई टेम्परेचर के दोहरी मार झेल रहे हैं।

इसे कहते हैं “हाइपरलोकल डेटा”—जहाँ न सिर्फ़ मौसम बताया जाता है, बल्कि समझाया भी जाता है कि “यह तापमान आपकी सेहत के लिए क्या कर सकता है?”

  • बिहार से दिल्ली तक सेंसर का जाल

बिहार में पहले जहाँ हर 3000 वर्ग किलोमीटर में एक ही एयर मॉनिटर था, वहाँ अब Erawat ने 500+ सेंसर लगाकर हर 200 स्क्वायर किमी में डेटा उपलब्ध कराया है। दिल्ली जैसे शहर में जहाँ केवल 40 मॉनिटर्स हैं, वहाँ इनकी ज़रूरत कम से कम 1000 है—जैसे बीजिंग में है। और ये कोई महंगे, विदेशी उपकरण नहीं हैं—इन्हें लोकल लेवल पर कैलिब्रेट किया गया है, ताकि इनका डेटा सही हो और तुरंत उपयोग में आ सके।

Climate story. AI's attack on heat

  • Heat + Pollution = Death Multiplier

हीट और प्रदूषण—ये मिलकर कुछ वैसा करते हैं जैसे धूप में चिपक कर बैठी खामोश मौत। Prof. Tripathi ने बताया कि PM2.5 और वेट बल्ब टेम्परेचर जब एक साथ बढ़ते हैं, तो उसका असर “जोड़” नहीं होता, “गुना” होता है।

उन्होंने दिल्ली के कुछ इलाकों का डेटा दिखाया जहां ये दोनों इन्डिकेटर्स dangerously overlap कर रहे थे—dark red spots यानी “red zone of health collapse.”

  • पुराने ज्ञान की नई टेक में वापसी

और मज़ेदार बात ये कि Prof. Tripathi ने AI को कोई नई भगवान नहीं बताया, बल्कि कहा—”ये टेक्नोलॉजी तभी टिकेगी जब हम अपने पारंपरिक ज्ञान को साथ लेंगे।” उदाहरण दिए—उदयपुर की जल व्यवस्था, कुंभ मेले की सफाई, और हाथियों के साथ इंसानों का रिश्ता। संदेश साफ़ था: पुराना जो सिखा गया, वो नया बना सकता है।

Climate story. AI's attack on heat

  • बात सिर्फ़ डेटा की नहीं, भरोसे की भी है

Prof. Tripathi और उनकी टीम सिर्फ़ डेटा इकट्ठा नहीं कर रही—वे उसे आम आदमी की भाषा में समझाने की कोशिश कर रहे हैं। मोबाइल ऐप्स, वॉर्निंग सिस्टम, गवर्नेंस डैशबोर्ड—इन सबके ज़रिए वो कोशिश कर रहे हैं कि हीट अलर्ट सिर्फ़ रिपोर्ट न हो, रेस्क्यू बने।

“सिर्फ़ इमारतों को नहीं, शहरों की सोच को स्मार्ट बनाना है”

आख़िरी बात, जो शायद सबसे अहम है—Erawat का मक़सद स्मार्ट सिटी नहीं, सस्टेनेबल और जिंदा शहर बनाना है। जहाँ डेटा, गवर्नेंस और नागरिक—तीनों मिलकर हीट से लड़ें। शहरों की सबसे बड़ी ताक़त उनकी दीवारें नहीं, उनके लोग होते हैं—और AI उस ताक़त को संगठित करने का एक औज़ार बन सकता है।

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