“पिघलते ग्लेशियर, जलती ज़मीन — जलवायु संकट अब दरवाज़े पर है”
Climate Story, कोलकाता। जलवायु परिवर्तन अब कोई भविष्य की चिंता नहीं, बल्कि वर्तमान का सबसे बड़ा संकट बन चुका है। जलवायु परिवर्तन अब सिर्फ़ एक भविष्य की चुनौती नहीं रही, बल्कि वर्तमान का कटु यथार्थ है। दुनिया भर में बढ़ते तापमान, लगातार आ रहे प्राकृतिक आपदाएँ, और पर्यावरणीय क्षरण इसके स्पष्ट प्रमाण हैं।
हाल के वर्षों में आई भीषण बाढ़, सूखा, और चक्रवातों ने लाखों लोगों के जीवन को प्रभावित किया है, और अरबों डॉलर का नुकसान पहुंचाया है। वैज्ञानिक चेतावनियां लगातार ज़ोर पकड़ रही हैं, लेकिन वैश्विक कार्रवाई अभी भी सीमित है। आइए तथ्यों और आंकड़ों के साथ समझते हैं कि मामला कितना गंभीर हो चुका है।
- 2024 सबसे गर्म साल रहा
NASA और NOAA की रिपोर्ट के अनुसार, 2024 अब तक का सबसे गर्म वर्ष साबित हुआ, जिसमें वैश्विक औसत तापमान 1.48°C प्री-इंडस्ट्रियल स्तर से ऊपर रिकॉर्ड किया गया। यह 1.5°C की अंतरराष्ट्रीय सीमा के बेहद करीब है, जिसे पार करने से अटूट जलवायु प्रभाव शुरू हो सकते हैं।

- ग्लेशियर पिघलाव रिकॉर्ड स्तर पर
IPCC (Intergovernmental Panel on Climate Change) की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, हिमालयी ग्लेशियर हर साल औसतन 20 मीटर पीछे हट रहे हैं। इससे गंगा, ब्रह्मपुत्र और सिंधु जैसी नदियों में जल प्रवाह प्रभावित हो रहा है, जिसका असर सीधे तौर पर भारत, नेपाल और बांग्लादेश के करोड़ों लोगों पर पड़ेगा।
- चरम मौसम की घटनाओं में 5 गुना वृद्धि
सिर्फ भारत में ही पिछले पाँच वर्षों में बाढ़, सूखा और चक्रवात जैसी चरम मौसम की घटनाएं 5 गुना बढ़ गई हैं। 2023 में भारत में 2 करोड़ से ज़्यादा लोग जलवायु संबंधी आपदाओं से विस्थापित हुए।
- समुद्र स्तर में खतरनाक वृद्धि
विश्व बैंक के अनुसार, अगर यही रुझान जारी रहे, तो 2050 तक मुंबई, कोलकाता और चेन्नई के तटीय इलाके जलमग्न हो सकते हैं। बंगाल की खाड़ी और अरब सागर के जलस्तर में लगातार वृद्धि हो रही है।
- खाद्य सुरक्षा पर खतरा
जलवायु परिवर्तन के चलते भारत में गेहूं और चावल की उपज में 10-20% तक की गिरावट की संभावना जताई गई है। गर्मी बढ़ने से सिंचाई संकट, मिट्टी की गुणवत्ता में गिरावट और कीटों की वृद्धि हो रही है।
- विशेषज्ञों की राय:
डॉ. रजनीश शर्मा, जलवायु वैज्ञानिक (IIT दिल्ली), का कहना है, “अगर हमने अभी ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को नियंत्रित नहीं किया, तो आने वाला दशक विनाशकारी हो सकता है।”
डॉ. मृणालिनी सेन (भारतीय मौसम विज्ञान विभाग) का कहना है, “भारत में हीटवेव, असमय बारिश और मानसून की अस्थिरता सीधा संकेत है कि जलवायु संकट अब हमारे जीवन का हिस्सा बन चुका है।”
डॉ. सुनीता नारायण (सीईओ, सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट – CSE): कहती हैं, “हम जलवायु परिवर्तन के सबसे कम जिम्मेदार हैं, लेकिन सबसे ज्यादा प्रभावित भी। हमें टिकाऊ विकास चाहिए, जिसमें आम नागरिक का हित केंद्र में हो।”
डॉ. रवि चोपड़ा (पूर्व निदेशक, People’s Science Institute, देहरादून): “हिमालयी क्षेत्र सबसे अधिक संवेदनशील है। ग्लेशियर पिघलाव और बादल फटने की घटनाएं अब आम होती जा रही हैं। यह पहाड़ी समुदायों के अस्तित्व का संकट है।”
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भारत सरकार ने 2070 तक नेट ज़ीरो का लक्ष्य रखा है और सौर ऊर्जा, ई-मोबिलिटी, और हरित हाइड्रोजन पर ज़ोर दिया जा रहा है। लेकिन नीति निर्माण और ज़मीनी क्रियान्वयन में अब भी बड़ी खाई है।
- क्या किया जा सकता है?
जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक समस्या है, जिसके लिए वैश्विक स्तर पर सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता है। इसके लिए निम्नलिखित कदम उठाना आवश्यक है:
- कार्बन उत्सर्जन में कमी: जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करके और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों जैसे सौर और पवन ऊर्जा को अपनाकर कार्बन उत्सर्जन में कमी लायी जानी चाहिए।
- सतत विकास को अपनाना: सतत विकास के सिद्धांतों को अपनाकर संसाधनों का कुशलतापूर्वक उपयोग करना और अपशिष्ट को कम करना महत्वपूर्ण है।
- वन संरक्षण: वन जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वनोन्मूलन को रोकना और वनीकरण को बढ़ावा देना आवश्यक है।
- जलवायु अनुकूलन: जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए अनुकूलन रणनीतियों को विकसित करना और उन्हें लागू करना आवश्यक है।
- निष्कर्ष:
जलवायु परिवर्तन कोई दूर की गूंज नहीं, बल्कि हमारे दरवाज़े पर दस्तक दे रहा तूफ़ान है। जलवायु परिवर्तन से लड़ाई में देरी नहीं की जा सकती। सरकारों, उद्योगों, और नागरिकों को मिलकर काम करने की जरूरत है ताकि इस बढ़ते खतरे से निपटा जा सके और एक स्वस्थ और स्थायी भविष्य सुनिश्चित किया जा सके।
यह अब सिर्फ़ एक पर्यावरणीय मुद्दा नहीं है; यह मानवता के अस्तित्व के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती है।
यह समय है जब हर नागरिक, हर सरकार, और हर उद्योग को एकजुट होकर हरित और टिकाऊ भविष्य के लिए प्रयास करना होगा। वरना आने वाली पीढ़ियों को हम सिर्फ़ एक गर्म, असुरक्षित और संघर्षशील धरती सौंपेंगे।
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