कार्बन बॉर्डर टैक्स: भारत के लिए राहत के संकेत, पर अनिश्चितता बरकरार

Climate कहानी, कोलकाता | 22 अक्टूबर 2025 : यूरोपीय संघ द्वारा प्रस्तावित कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज़्म (CBAM) को लेकर भारत और EU के बीच महीनों से चल रहे तनाव के बीच ब्रसेल्स स्थित थिंक टैंक Sandbag की रिपोर्ट ने एक संतुलित तस्वीर पेश की है। रिपोर्ट के अनुसार, CBAM के शुरुआती चरण में भारत पर वित्तीय असर सीमित रहेगा।

🧾 CBAM क्या है?

  • लागू होने की तिथि: जनवरी 2026
  • उद्देश्य: EU उद्योगों को कार्बन लीकेज से बचाना
  • प्रभावित वस्तुएं: स्टील, एल्युमीनियम, सीमेंट, फर्टिलाइज़र, बिजली, हाइड्रोजन
  • प्रभाव: आयातित वस्तुओं पर कार्बन उत्सर्जन आधारित शुल्क

यूरोपीय संघ (EU) के कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज़्म (CBAM) को लेकर भारत और यूरोप के बीच महीनों से जारी तनाव के बीच, एक नई स्टडी ने तस्वीर का एक संतुलित पक्ष दिखाया है।

Carbon border tax: Signs of relief for India, but uncertainty remains

ब्रसेल्स स्थित थिंक टैंक Sandbag की नई रिपोर्ट के अनुसार, CBAM के शुरुआती चरण में भारतीय निर्यातकों पर पड़ने वाला वित्तीय असर “काफी सीमित” रहने की संभावना है।

रिपोर्ट का कहना है कि शुरुआती स्थितियों में EU में भारतीय वस्तुओं के आयातकों को कुल व्यापार मूल्य का लगभग 2.6%, यानी 826 मिलियन यूरो (लगभग ₹7,400 करोड़) का अतिरिक्त लागत भार झेलना पड़ सकता है।

🇮🇳 भारत की प्रतिक्रिया और रणनीति

  • पहले विरोध, अब संवाद और सहयोग की दिशा
  • भारत की कार्बन ट्रेडिंग स्कीम को EU की मान्यता
  • घरेलू कार्बन क्रेडिट को CBAM शुल्क से घटाया जा सकेगा
  • राजस्व भारत में ही रहेगा, जिससे उद्योगों पर दबाव कम होगा

Carbon border tax: Signs of relief for India, but uncertainty remains

रिपोर्ट के अनुसार, भारत का रुख अब कुछ बदलता हुआ दिख रहा है। हाल ही में EU और भारत के बीच एक समझौता हुआ है जिसके तहत भारत की प्रस्तावित कार्बन ट्रेडिंग स्कीम को EU द्वारा मान्यता दी गई है।

इसका अर्थ यह है कि भविष्य में जब CBAM लागू होगा, तो भारतीय कंपनियाँ अपने उत्पादों पर पहले से चुकाए गए घरेलू कार्बन क्रेडिट की राशि को CBAM शुल्क से घटा सकेंगी। यानी, CBAM का राजस्व सीधे EU को जाने के बजाय भारत में ही रहेगा, जिससे घरेलू उद्योग पर दबाव कुछ कम होगा।

Sandbag के विश्लेषण के अनुसार, अगर भारत की कार्बन ट्रेडिंग स्कीम EU के आंतरिक कार्बन मूल्य का केवल 25% भी हासिल कर लेती है, तो CBAM का कुल प्रभाव 42% घटकर 480 मिलियन यूरो (करीब ₹4,300 करोड़) रह जाएगा, जो कि EU–भारत वस्तु व्यापार का केवल 1.5% होगा।

📊 Sandbag रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष

स्थिति अनुमानित प्रभाव
शुरुआती चरण ₹7,400 करोड़ (2.6% व्यापार मूल्य)
भारत की स्कीम लागू होने पर ₹4,300 करोड़ (1.5% व्यापार मूल्य)
  • स्टील सेक्टर सबसे अधिक प्रभावित
  • EU को भारत से दो-तिहाई स्टील निर्यात
  • उत्पादों के कार्बन फुटप्रिंट का प्रमाण देना अनिवार्य होगा

Carbon border tax: Signs of relief for India, but uncertainty remains

भारत के लिए सबसे बड़ा असर स्टील सेक्टर पर

भारत की स्टील इंडस्ट्री, जो देश के कुल उत्सर्जन में बड़ी हिस्सेदारी रखती है, CBAM से सबसे ज़्यादा प्रभावित होगी। वर्तमान में भारत के लगभग दो-तिहाई स्टील निर्यात यूरोप को जाते हैं। CBAM के लागू होने के बाद, इन निर्यातकों को अपने उत्पादों के कार्बन फुटप्रिंट का प्रमाण देना होगा।

हालांकि, भारत अपनी ओर से उत्सर्जन कम करने के लिए ट्रिपल रिन्यूएबल कैपेसिटी (तीन गुना अक्षय ऊर्जा क्षमता) 2030 तक बढ़ाने और राष्ट्रीय कार्बन मार्केट शुरू करने की दिशा में काम कर रहा है। इन कदमों से भविष्य में भारतीय उद्योगों को वैश्विक कार्बन मूल्य प्रणालियों के अनुरूप ढालने में मदद मिलेगी।

🔧 भारत की तैयारी

  • 2030 तक तीन गुना अक्षय ऊर्जा क्षमता
  • राष्ट्रीय कार्बन मार्केट की शुरुआत
  • वैश्विक कार्बन मूल्य प्रणालियों के अनुरूप ढलने की कोशिश

Sandbag ने इस रिपोर्ट के साथ ही अपना नया CBAM सिम्युलेटर लॉन्च किया है – एक ऐसा सार्वजनिक टूल जो नीति-निर्माताओं, व्यवसायों और नागरिक समाज को यह समझने में मदद करेगा कि अलग-अलग देशों या सेक्टरों पर CBAM का कितना असर पड़ेगा।

यह सिम्युलेटर यह भी दिखाता है कि अगर किसी देश की घरेलू कार्बन कीमत बढ़ती या घटती है, या CBAM का दायरा बढ़ाया जाता है, तो व्यापारिक लागत और उत्सर्जन पर क्या प्रभाव होगा।

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🧠 CBAM सिम्युलेटर: नीति का नया उपकरण

  • Sandbag ने CBAM सिम्युलेटर लॉन्च किया
  • नीति-निर्माताओं और उद्योगों को प्रभाव का आकलन करने में मदद
  • घरेलू कार्बन मूल्य में बदलाव या CBAM दायरे के विस्तार का विश्लेषण संभव

EU का कहना है कि CBAM का मकसद विकासशील देशों को नुकसान पहुँचाना नहीं, बल्कि वैश्विक स्तर पर उत्सर्जन को न्यायसंगत तरीके से कम करना है। रिपोर्ट यह स्पष्ट करती है कि भारत और EU के बीच अब “विरोध से संवाद” की दिशा में बदलाव दिख रहा है, जहाँ भारत अपनी घरेलू नीति को अंतरराष्ट्रीय जलवायु नियमों से जोड़ने की कोशिश कर रहा है।

🌐 राजनीतिक संदर्भ

  • CBAM, EU–भारत FTA की बातचीत में विवाद का बिंदु
  • भारत का तर्क: विकसित देशों को अधिक ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए
  • EU का पक्ष: न्यायसंगत उत्सर्जन कटौती का प्रयास

Carbon border tax: Signs of relief for India, but uncertainty remains

Sandbag की रिपोर्ट के अनुसार, शुरुआती असर भले ही सीमित हो, पर यह नीति आने वाले वर्षों में भारतीय उद्योगों के लिए नए अवसर और नई जिम्मेदारियाँ दोनों लेकर आएगी।

EU और भारत के बीच Free Trade Agreement पर चल रही बातचीत में CBAM अब सिर्फ़ विवाद का विषय नहीं, बल्कि एक संवाद का फ्रेमवर्क बनता जा रहा है — जहाँ जलवायु, व्यापार और न्याय तीनों की कसौटी एक साथ रखी जा रही है।

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