रौशनी नज़र मंज़र उजाला और तलाश में भटकते हम लोग
आज शुरुआत करते हैं इंसान के इंसान को समझने से और चर्चा करेंगे भगवान तक
वो रामगढ़ था ये लालगढ़ ….!!
यादों के जनरल स्टोर में कुछ स्मृतियां स्पैम फोल्डर में पड़े रह कर समय के
अच्छी सच्ची जनता की नाकाबिल झूठी सरकार
ये सवाल कभी शायद खुद आपने भी अपने आप से किया हो। यूं ये सवाल
कौन पहचानता है असली-नकली
जवाहर लाल नेहरू जी के निधन को आज 56 साल हो गये। आज कितने लोग
बदनसीबी को नसीब समझते हैं जो लोग
सच सच बताओ क्या हमारे देश की स्वस्थ्य व्यवस्था जैसी है विश्व भर की उसी
आपके करम भी आपके सितम ही हैं
आपने सत्ता हासिल करने को लाख बार झूठ बोला झूठे सपने दिखलाये वोट पाने को
कुछ कहना है खामोश हैं सभी
यूं तो महफ़िल सजी है कितनी रौनक नज़र आती है मगर हर कोई मिलता है
बन्द हो राज्य सरकारों की नौटंकी
समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध। जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनके
सोने-चांदी के कलम नहीं लिखेंगे आंसू की दास्तां ( गरीबी की पीड़ा )
जो लिखना चाहता हूं उस असहनीय दर्द की व्यथा कथा को लिखने को अश्कों का
आयुर्वेद की हक़ीक़त और धोखे-लूट का बाज़ार
मुझे ऐसे लोग गिद्ध से भी बुरे लगते हैं जो आपदा की दशा में भी