खुद को आईने में देखना
लोग अपनी पुस्तक के पहले पन्ने पर अपने बारे में लेखन और किताब की बात
विश्व कल्याण नहीं खुदगर्ज़ी में अंधे हम लोग
सोच कर दिल घबराता है कि हम कहां से चले थे हमको किधर जाना था
कांच का लिबास संग नगरी
उनकी नकाब हट गई तो उनका असली चेहरा सामने आएगा जो खुद उन्हीं को डराएगा।
हिंदी, हिंदीं दिवस और हिंदी वाले
मेरी ज़िंदगी गुज़री है हिंदी में लिखते लिखते। 44 साल से तो नियमित लिखता रहा
एक रुपये की इज़्ज़त का सवाल
इधर लोग अपनी इज़्ज़त की बात लाखों नहीं करोड़ों में करने लगे थे। मानहानि के
हम जड़ता में जकड़े लोग (तर्कहीन समाज)
दुनिया अनुभव से सबक सीखती है और अनावश्यक अनुपयोगी अतार्किक बातों से पल्ला झाड़कर सही
प्रवासियों के लिए आगे कुआं पीछे खाई
आज पूरे देश के विभिन्न राज्यों में जितने भी प्रवासी मजदूर लॉक डाउन के दौरान
हैवानियत शर्मसार नहीं
समझते हैं अभी भी दुनिया उन्हीं से है जिनको नहीं खबर आना जाना किधर से
देश के सबसे बड़े हिंदी पट्टी यूपी में ही हिंदी कमजोर
आज कलम के जादूगर, उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद जी की जयंती पर बहुत ही दुःख
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राजनीतिक पहचान के लिए भटकता बिहार का दलित पान समाज
एक सभ्य समाज के लोगों में सामाजिक और राजनीतिक चेतना का होना बहुत ही जरूरी