आश्विन शरद् नवरात्र 03 अक्तूबर गुरुवार से प्रारंभ होंगे और इस बार डोली पर सवार होकर आएगी मां दुर्गा

वाराणसी। घट स्थापना/कलश स्थापना, ज्योति प्रज्वलन करें तथा देवी दुर्गा जी की साख लगाने के लिए 03 अक्तूबर गुरुवार सुबह 06 बजकर 30 मिनट से लेकर दोपहर 03 बजकर 32 मिनट तक शुभ मुहूर्त रहेगा। इस वर्ष 03 अक्टूबर को डोली पर माता का आगमन होगा।

इस वर्ष सन् 2024 ई. आश्विन शरद् नवरात्र 03 अक्तूबर गुरुवार से प्रारंभ हो रहे हैं। 03 अक्तूबर गुरुवार घटस्थापना/कलशस्थापना, ज्योति प्रज्वलन करें तथा देवी दुर्गा की साख लगाने के लिए 03 अक्तूबर गुरुवार सुबह 06 बजकर 30 मिनट से लेकर दोपहर 03 बजकर 32 मिनट तक शुभ मुहूर्त रहेगा। लेकिन समय हो तो सुबह-सुबह ही सभी कार्य कर लेने चाहिए।

इस बार शरद् नवरात्र आश्विन शुक्लपक्ष प्रतिपदा का आरम्भ गुरुवार को हस्त नक्षत्र, ऐन्द्र योग, किस्तुघ्न करण तथा कन्या राशि के गोचर काल के समय में हो रहा है। इस वर्ष 11 अक्तूबर को नवमी अष्टमीविद्धा और 12 अक्तूबर 2024 ई. को दशमी है अतः इस वर्ष पूजा व्रत उपवासर्थ महानवमी 11 अक्तूबर 2024 ई. को और बलिदान होम आदि के लिए 12 अक्तूबर 2024 ई. को होगी। जबकि 12 अक्टूबर शनिवार को ही विजय दशमी (दशहरा) मनाया जाएगा।

आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से आश्विन शुक्ल पक्ष नवमी तिथि तक यह व्रत किये जाते हैं, इस महापर्व में मां भगवती के नौ रूपों क्रमशः शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धदात्री देवी की पूजा की जाती है।

इन दिनों भगवती दुर्गा का पूजन, दुर्गा सप्तशती का पाठ स्वयं या विद्वान पण्डित जी से करवाना चाहिए।
देवीभागवत् में बताया गया है कि…
‘शशिसूर्ये गजारूढ़ा शनिभौमे तुरंगमे।
गुरौ शुक्रे च दोलायां बुधे नौका प्रकीर्त्तिता।।’
अर्थात- रविवार और सोमवार को प्रथम पूजा यानी कलश स्थापना होने पर मां दुर्गा हाथी पर सवार होकर आती हैं, शनिवार और मंगलवार को कलश स्थापना होने पर माता का वाहन घोड़ा होता है, गुरुवार और शुक्रवार के दिन कलश स्थापना होने पर माता डोली पर चढ़कर आती हैं, जबकि बुधवार के दिन कलश स्थापना होने पर माता नाव पर सवार होकर आती हैं।

इस वर्ष 03 अक्तूबर गुरुवार शरद् नवरात्र का आरंभ गुरुवार के दिन हो रहा है। ऐसे में देवीभाग्वत पुराण के कहे श्लोक के अनुसार दुर्गा का वाहन डोली होगा। इस बार गुरुवार नवरात्र शुरू होने के कारण डोली पर माता का आगमन होगा। जब धरती पर डोली या पालकी में आती हैं तो इसे बहुत अच्छा संकेत नहीं माना जाता है दरअसल माता रानी का पालकी में आना चिंता का विषय बन सकता है। इससे अर्थव्यवस्था में गिरावट, व्यापार में मंदी, हिंसा, देश-दुनिया में महामारी के बढ़ने और अप्राकृति घटना के संकेत मिलते हैं।

तांन्त्रिकों व तंत्र-मंत्र में रुचि रखने वाले व्यक्तियों के लिये नवरात्रों का समय अधिक उपयुक्त रहता है। गृहस्थ व्यक्ति भी इन दिनों में भगवती दुर्गा की पूजा आराधना कर अपनी आन्तरिक शक्तियों को जागृत करते हैं। इन दिनों में साधकों के साधन का फल व्यर्थ नहीं जाता है। इन दिनों में दान पुन्य का भी बहुत महत्व कहा गया है।

नवरात्रों के दिनों में किसी भी प्रकार की तामसिक वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए। प्याज, लहसुन, अंडे और मांस-मदिरा आदि नशे से भी दूर रहना चाहिए, नाखून, बाल आदि नहीं काटने चाहिए, भूमि पर शयन करना चाहिए। ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए, किसी के प्रति द्वेष की भावना नहीं रखनी चाहिए। चमड़े की चप्पल, जूता, बेल्ट, पर्स, जैकेट आदि नहीं पहनना चाहिए और कोई भी पाप कर्म करने से आप और आपके भविष्य पर भी दुष्परिणाम होते है।

नवरात्रों के दौरान सेहत के अनुसार ही व्रत रखें इन दिनों में फल आदि का सेवन ज्यादा करें रोजाना सुबह और शाम को माँ दुर्गा का पाठ अवश्य करें।

चैत्र या वसंत नवरात्रों के बारे में सभी जानते हैं लेकिन इसके अतिरिक्त दो और भी नवरात्र हैं जिनमे विशेष कामनाओं की सिद्धि की जाती है। पहला गुप्त नवरात्र माघ महीने के शुक्ल पक्ष में आता है। दूसरा आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष में, कम लोगों को इसके बारे में जानकारी होने और इसके पीछे छिपे रहस्यमयी कारणों की वजह से इन्हें गुप्त नवरात्र कहते हैं।

ज्योतिर्विद रत्न वास्तु दैवज्ञ
पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री
मो. 99938 74848

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