बेटी अब IAS अफसर है, पिता का मान बढ़ चुका है। लेकिन अब वह समाज के गहरे जख्म को भरने निकली है
एक बेटी की लड़ाई अब समाज से है
शादी एक सौदा – दूसरा अध्याय
अशोक वर्मा “हमदर्द”, कोलकाता। पटना जिले का एक पिछड़ा गाँव धमरिया। सीमा की बतौर SDM तैनाती होते ही गाँव में हलचल मच गई। पहले दिन ही जब वो अपनी सरकारी गाड़ी से उतरी, लोगों की निगाहें ठहर गई। “वो देखो, वही है जो मास्टर रामस्वरूप की बेटी है…अब अफसर बन गई है!” सीमा मुस्कराई, लेकिन उसकी आँखें किसी और दर्द को ढूंढ रही थीं। गाँव के भीतर जाते हुए उसे जगह-जगह लड़कियों के चेहरे सहमे मिले और माँ-बाप के चेहरे चिंता में डूबे।
उसे अहसास हुआ – दहेज का दानव अब भी ज़िंदा है।
सीमा के पोस्टिंग का यह पहला केस है जब तीसरे ही दिन उसे सूचना मिली – गाँव की एक 19 वर्षीय लड़की गीता ने कुएँ में कूदकर जान दे दी। कारण – ससुराल वालों की मारपीट और दहेज की माँग। सीमा खुद पोस्टमार्टम हाउस पहुँची। शव देखकर उसकी रूह काँप गई। गीता की माँ पागल सी चिल्ला रही थी- “हम गरीब हैं बेटी, दहेज कहां से दें? अब तो तू ही चली गई…”
सीमा का अतीत उसकी आँखों में कौंध गया- उसके पिता की बेइज्जती, ठुकराए गए रिश्ते, आँसू और अपमान… उसी दिन रात को उसने निर्णय लिया – अब वह सिर्फ प्रशासन नहीं, एक बेटी बनकर न्याय दिलाएगी। ‘बेटी सौदा नहीं है’ सीमा ने एक योजना बनाई – हर स्कूल और कॉलेज में दहेज विरोधी शिविर लगाए जाएँगे।
पंचायत स्तर पर “नो डाउरी डिक्लेरेशन” लिया जाएगा, शादी से पहले दोनों पक्ष लिखित दें कि दहेज नहीं लिया जाएगा। अगर कोई शिकायत करे, तो तुरंत FIR होगी और केस को फास्ट ट्रैक कोर्ट में भेजा जाएगा।
शुरुआत में गाँव वालों ने इसका विरोध किया – “मैडम जी, परंपरा है ये तो…” “बेटी को विदा करना है तो कुछ देना ही पड़ता है…”
सीमा ने कहा – “तो क्या बेटी को जलाना भी परंपरा है?” फिर वह सबके सामने बोली – “मैं रामस्वरूप मास्टर की बेटी हूँ… और अगर कोई पिता फिर अपमानित हुआ, तो मैं अफसर नहीं, उनकी बेटी बनकर बदला लूँगी!”
धीरे-धीरे माहौल बदलने लगा। सीमा की सख्ती और ईमानदारी का असर हुआ। गाँव की 5 लड़कियों की बिना दहेज की शादी हुई। सीमा खुद शादी में मौजूद रही- “जब अफसर बारात में बैठी हो, तो दहेज माँगने की हिम्मत कौन करेगा?”
एक दिन रामस्वरूप जी भी एक ऐसे विवाह में गए जहाँ दूल्हे ने मंच पर कहा – “मेरी दुल्हन ही सबसे बड़ा दहेज है।”
रामस्वरूप जी की आँखें भर आई – “सीमा, तूने हर बाप का सिर ऊँचा कर दिया…।”
टकराव : MLA का भतीजा, लेकिन यह लड़ाई आसान नहीं थी। एक दिन विधायक जी का भतीजा राहुल सिंह एक लड़की को दहेज के लिए छोड़ देता है। लड़की के पिता भोला प्रसाद सीमा से मिलने आते हैं – “मैडम, मेरी बेटी को प्रेग्नेंट करने के बाद अब कह रहे हैं कि 15 लाख दो वरना नहीं लाएँगे…”
सीमा ने बिना देर किए केस दर्ज करवाया। विधायक का फोन आया – “सीमा जी, राजनीतिक मामला है, संभाल लीजिए।”
सीमा बोली – “माननीय विधायक जी, ये मामला राजनीतिक नहीं, पिता के सम्मान का है। अगर आपकी पार्टी इस लड़के को बचाएगी, तो मैं मीडिया के सामने पूरा सच रखूँगी।”
राहुल सिंह को गिरफ्तार किया गया। मामला अखबारों की सुर्खी बना – “IAS सीमा ने विधायक भतीजे को दिलाया सबक।”
सीमा की खुद की शादी – एक प्रतीक बनी : तीन साल बाद जब सीमा की शादी का प्रस्ताव आया, लड़का था — एक IAS ट्रेनिंग बैचमेट, अभय चौहान। जब अभय के पिता ने कहा- “कुछ रस्में निभानी होंगी, थोड़ा बहुत तो देना ही होता है…”
सीमा ने वहीं रिश्ते से इनकार कर दिया। लेकिन अभय ने खुद आगे आकर कहा – “सीमा, अगर तुम मेरी जीवनसाथी नहीं बनी, तो मेरी सेवा अधूरी रह जाएगी। मैं वचन देता हूँ, दहेज नहीं, बराबरी का रिश्ता दूँगा।”
शादी सादगी से हुई और मीडिया ने इसे भारत की सबसे बड़ी दहेज विरोधी शादी घोषित किया।
समाप्ति नहीं, शुरुआत है ये…
सीमा अब बिहार में दहेज विरोधी आयोग की प्रमुख बनी। उसकी लड़ाई अब गाँव से लेकर राजधानी तक पहुँच चुकी है।
वह हर मंच पर एक ही बात कहती है “बेटी कोई वस्तु नहीं, जो खरीदी-बेची जाए।
शादी सौदा नहीं, सम्मान का संगम है।
और जब तक समाज बेटी के बाप को अपमानित करेगा, तब तक हर सीमा जैसे बेटी लड़ती रहेगी।”
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लेखकीय टिप्पणी :
सीमा की ये कहानी केवल एक लड़की की नहीं, बल्कि हर उस बेटी की आवाज है जो चुप रहकर अपने पिता की बेइज्जती देखती है और फिर एक दिन समाज से कहती है – “अब बहुत हुआ।”
क्रमशः…………………..

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