अशोक वर्मा “हमदर्द” की दिल को छूने वाली कहानी : आखिरी खत

।।आखिरी खत।।
अशोक वर्मा “हमदर्द”

कोलकाता। सर्दियों की एक सुबह थी। दिल्ली की हल्की धुंध और ठंडी हवा के बीच शहर की भीड़भाड़ हमेशा की तरह अपनी रफ़्तार से भाग रही थी। सड़क किनारे बने एक छोटे-से कैफे के कोने में एक लड़की अकेली बैठी थी। उसके सामने कॉफ़ी का कप रखा था, लेकिन उसमें से उठती भाप धीरे-धीरे ठंडी हो रही थी। लड़की के चेहरे पर अजीब-सी उदासी थी, मानो भीतर कहीं कोई तूफान पल रहा हो।

उसी समय दरवाजा खुला और एक युवक अंदर आया। उसके चेहरे पर मासूम-सी मुस्कान थी और आंखों में जीवन के प्रति उत्साह झलक रहा था। वह अपने दोस्तों से मिलने आया था, लेकिन उसकी नजर जैसे ही उस अकेली लड़की पर पड़ी, वह अनायास रुक गया।

वह लड़की किताब में आँखें गड़ाए थी, लेकिन साफ दिख रहा था कि उसके मन में कहीं और ही ख्याल हैं। युवक ने साहस बटोरा और उसके सामने जाकर धीमी आवाज में कहा – “क्या मैं यहाँ बैठ सकता हूँ? बाकी सारी टेबल्स भरी हुई हैं।”

लड़की ने चौंककर उसकी ओर देखा। कुछ पल तक चुप रही, फिर हल्की मुस्कान के साथ बोली – “जी हाँ, बैठ जाइए।”
यहीं से कहानी की शुरुआत हुई।
दोनों ने औपचारिक बातें शुरू की। युवक का नाम अयान था, जो इंजीनियरिंग कर चुका था और अब एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करता था। लड़की का नाम सिया था। वह एक लेखिका थी, अखबारों और पत्रिकाओं में उसकी कहानियाँ छपती थीं।

गुफ़्तगू के दौरान अयान को पता चला कि सिया उसी मोहल्ले में रहती है जहाँ वह नया-नया शिफ़्ट हुआ था। बातचीत धीरे-धीरे इतनी सहज हो गई कि कैफ़े में घंटों बीत गए और उन्हें एहसास ही नहीं हुआ।

अयान को लगा जैसे वह बरसों से सिया को जानता हो। सिया के शब्दों में सादगी थी और उसकी आँखों में अनकही कहानियाँ। विदा होते समय अयान ने कहा – “क्या हम फिर मिल सकते हैं?”
सिया ने थोड़ी देर चुप रहकर मुस्कान दी – “क्यों नहीं? दोस्त बन सकते हैं।”

उस दिन के बाद उनकी मुलाकातें बढ़ती गईं। कभी पार्क में टहलना, कभी कैफे में बैठकर बातें करना, कभी किताबों पर बहस करना। दोनों की दुनिया अलग थी, मगर दोनों को एक-दूसरे की मौजूदगी सुकून देने लगी थी।
दोस्ती कब गहरी होकर रिश्ते की ओर बढ़ने लगी, यह दोनों को खुद भी पता नहीं चला।

सिया अक्सर अयान को अपने लिखे पन्ने सुनाती। कभी दर्द से भरी कहानियाँ, तो कभी उम्मीद से भरी कविताएँ। अयान हैरान होता
“तुम्हारी कहानियाँ इतनी सच्ची लगती हैं, जैसे तुमने खुद जी हों।”
सिया मुस्कुरा देती, लेकिन उसके भीतर एक रहस्य छिपा था जिसे उसने किसी से साझा नहीं किया था।

दूसरी ओर अयान के लिए सिया अब उसकी रोजमर्रा की ज़िंदगी का अहम हिस्सा बन चुकी थी। वह दफ्तर से थका-हारा लौटता तो बस सिया की आवाज सुनने से सारी थकान मिट जाती।

धीरे-धीरे अयान के मन में सिया के लिए प्रेम का बीज अंकुरित हो चुका था।
एक शाम अयान ने हिम्मत करके कहा – “सिया, मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ। शायद यह तुम्हें अजीब लगे, लेकिन सच यही है कि मैं तुम्हारे बिना अपनी ज़िंदगी सोच भी नहीं सकता।”

सिया की आँखें भर आईं। उसने खामोश होकर खिड़की से बाहर देखा और फिर धीमे स्वर में बोली – “अयान, तुम बहुत अच्छे हो। लेकिन मैं तुम्हें एक सच्चाई बताना चाहती हूँ। शायद यह सुनकर तुम्हारा मन बदल जाए।”
अयान चौंक गया – “कैसी सच्चाई?”

सिया ने काँपती आवाज में कहा – “मुझे दिल की एक गंभीर बीमारी है। डॉक्टर ने कहा है कि मेरा दिल बहुत कमजोर है। अचानक कभी भी… कुछ भी हो सकता है। इसी वजह से मैंने अब तक शादी या रिश्तों के बारे में नहीं सोचा। मैं किसी को दुखी नहीं करना चाहती थी।”

यह सुनते ही अयान का दिल जैसे थम गया। कुछ पल तक उसने कुछ नहीं कहा, फिर सिया का हाथ थामते हुए बोला – “पागल हो तुम! ज़िंदगी का भरोसा किसे है? कोई हादसा, कोई बीमारी… कुछ भी कभी भी हो सकता है। लेकिन जब तक हम जिएं, साथ जीना ही असली मायने रखता है। मैं तुम्हारे साथ हूँ, हर हालत में।”
सिया फूट-फूटकर रो पड़ी। उसे पहली बार लगा कि कोई है जो उससे उसके अधूरेपन के साथ भी प्रेम करता है।

दिन बीतते गए। सिया का इलाज शुरू हुआ। अस्पताल के चक्कर, दवाइयाँ, ऑपरेशन की तैयारी – यह सब आसान नहीं था। लेकिन अयान हर समय उसके साथ खड़ा रहा।
सिया अक्सर कहती – “कभी थकते नहीं हो? रोज अस्पताल, दफ़्तर, मेरे नखरे… तुम्हें परेशान नहीं करते?”

अयान हंसकर जवाब देता – “प्यार में थकान कहाँ होती है? तुम बस ठीक हो जाओ, यही मेरी सबसे बड़ी जीत होगी।” इलाज के दौरान कई उतार-चढ़ाव आए। कभी हालत बिगड़ गई, कभी अचानक उम्मीद जग गई। लेकिन दोनों ने हार नहीं मानी।

सिया की माता पिता शुरू में अयान को लेकर चिंतित थे। उन्हें लगता था कि शायद वह मुश्किल देखकर पीछे हट जाएगा। मगर जब उन्होंने उसकी आँखों में सच्चाई और समर्पण देखा, तो उनका मन बदल गया।
आख़िरकार वह दिन आया जब डॉक्टर ने कहा – “सिया की हालत अब स्थिर है। ऑपरेशन सफल रहा। उसे नई ज़िंदगी मिल गई है।”

यह सुनकर अयान की आँखों से आँसू बह निकले। उसने अस्पताल के बाहर जाकर आकाश की ओर देखा और फुसफुसाया – “धन्यवाद भगवान! मेरी दुआ सुन ली।”

कुछ महीनों बाद जब सिया पूरी तरह ठीक हो गई, तब अयान ने उसके सामने अंगूठी निकालकर घुटनों पर बैठते हुए कहा – “क्या अब मुझे तुम्हारी ज़िंदगी का हिस्सा बनने दोगी?”
सिया ने हंसते-रोते हुए ‘हाँ’ कह दिया।

शादी के बाद दोनों ने एक छोटा-सा घर लिया। वह घर सादगी से भरा था, लेकिन उसमें खुशियाँ झलकती थीं। सुबह साथ चाय पीना, रात को छत पर बैठकर बातें करना, वीकेंड पर घूमने जाना – दोनों की दुनिया अब एक-दूसरे में ही सिमट गई थी।

कुछ वर्षों बाद उनके घर किलकारियाँ गूंजने लगीं। एक बेटी और एक बेटा, जिनकी शरारतों से घर हमेशा जीवंत रहता।
अयान अक्सर बच्चों को गोद में लेकर कहता – “तुम्हारी मां दुनिया की सबसे बहादुर इंसान है। उसने ज़िंदगी से हार नहीं मानी।”
सिया मुस्कुराकर उसकी ओर देखती और सोचती – “असल में, यह हिम्मत मुझे इसी ने दी है।”

वक्त बीतते-बीतते दोनों बुजुर्ग हो गए। सफ़ेद बाल और झुर्रियों से भरे चेहरे में भी उनका प्यार वैसा ही ताजा था।
एक दिन सिया ने अपनी पुरानी डायरी अयान को दी और कहा – “यह मेरे दिल की सारी बातें हैं। जब मैं तुम्हें नहीं बताती थी, तब इन्हीं पन्नों में लिख देती थी। अगर मैं पहले चली जाऊं, तो इन्हें पढ़ लेना।”
अयान ने डायरी को सीने से लगा लिया।

सालों बाद जब सिया सचमुच चली गई, तो अयान ने वही डायरी खोली। उसमें लिखा था – “अयान, तुम मेरे लिए भगवान का उपहार हो। मैंने सोचा था कि मैं किसी की ज़िंदगी में सिर्फ़ बोझ बनूँगी। लेकिन तुमने मुझे जीना सिखाया, मुस्कुराना सिखाया। अगर मेरा दिल धड़क रहा है तो उसमें तुम्हारा ही नाम गूंजता है। अगर मैं इस दुनिया से जाऊँ भी, तो जान लेना कि मैं हर पल तुम्हारे साथ हूँ।”

डायरी पढ़ते-पढ़ते अयान की आँखों से आँसू बहते गए। उसने आसमान की ओर देखकर कहा – “सिया, यह सफर यहीं खत्म नहीं होता। जब तक सांस है, मैं तुम्हारा हूँ।”

आज भी उस कैफे के कोने वाली टेबल पर कभी-कभी अयान चुपचाप बैठा दिखाई देता है। उसके सामने एक खाली कप होता है, जैसे सिया अभी आकर कह देगी – “कॉफ़ी ठंडी हो रही है, अयान।”

लोग कहते हैं कि यह महज एक प्रेम कहानी है, लेकिन दरअसल यह जीवन की कहानी है – विश्वास, संघर्ष और साथ निभाने की कहानी। क्योंकि कभी-कभी एक मुलाकात पूरी ज़िंदगी का रूप ले लेती है।

अशोक वर्मा “हमदर्द”, लेखक

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